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जिन सूत्र भाग 2
की कविताओं को जन्म देते हैं।
नहीं कि मनुष्य के प्रेम पर अंत है, लेकिन शुरुआत है। मनुष्य विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात
के प्रेम से हम पहला अ, ब, स...क, ख, ग सीखते हैं। मनुष्य वेदना में जन्म, करुणा में मिला आवास
पर प्रेम का अंत नहीं है। मनुष्य पर प्रेम की समाप्ति नहीं, क्योंकि अश्रु चुनता दिवस इसका अश्रु गिनती रात...
प्रेम तो विराट के साथ ही तप्त हो सकता है। मनुष्य के साथ कैसे ऐसे लोग दख का संग्रह करने लगते हैं: दख की तलाश करने तप्त होगा। लेकिन प्रेम के पहले चरण उथले में ही उठते हैं। लगते हैं। कहां-कहां दुख मिलेगा वहां-वहां जाते हैं। ऊपर से | जैसे कोई तैरना सीखने जाता है तो पहले उथले में सीखता है।
कहते हैं हम सुख चाहते हैं, लेकिन दुख की खोज करते हैं। और एकदम से सागर में नहीं उतर जाता। किनारे पर सीखता है। | जब सुख आये तो द्वार बंद कर लेते हैं, दुख आये तो द्वार पर खड़े जहां कोई भय नहीं है वहां सीखता है। फिर किसी का संहारा | मिलते हैं। ऐसा बहुतों के साथ हो गया है। इसीलिए तो संसार लेकर सीखता है। फिर जब तैरना आ जाता है, तो किसी के में इतना दुख है। यह दुख होना नहीं चाहिए। मैं कल एक पंक्ति सहारे की जरूरत नहीं रह जाती। फिर अकेला दूर गहरे में चला पढ़ रहा था। किसी ने कहा है
जाता है। रोग पैदा कर कोई तू जिंदगी के वास्ते
मनुष्य का प्रेम परमात्मा के लिए किनारा है। मनुष्य का सहारा सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं
तो सीखने भर के लिए है। फिर तो नाव छोड़ देनी है अनंत के खूब बात कही है!
सागर में। लेकिन जो किनारे पर ही नहीं आया, वह सागर में सिर्फ सेहत के सहारे जिंदगी कटती नहीं।
कैसे उतरेगा? सिर्फ स्वस्थ रहने से कहीं जिंदगी कटी है!
'किसी के प्रेम के साये मैं बैलूं।' सोचना नहीं है, बैठो! रोग पैदा कर कोई त जिंदगी के वास्ते
सोचना प्रेम के बिलकुल विपरीत है। सोचनेवाले सोचते ही रह तो लोग रोग पैदा कर लेते हैं। उन्होंने अनेक-अनेक नाम रखे जाते हैं। प्रेम करनेवाले और सोचनेवालों में बडा भेद है। हैं। महत्वाकांक्षा, राजनीति रोगों के नाम हैं। धन, पद, प्रतिष्ठा मैंने सुना है इमेनुअल कांट एक बड़ा विचारक हुआ, एक स्त्री रोगों के नाम हैं। सेहत तो प्रेम की है। प्रेम के अतिरिक्त सब रोग ने उससे प्रेम निवेदन किया। दो-तीन वर्ष तो उसके प्रेम में रही, है। प्रेम चूक जाता है, तो आदमी और रोग खोजने लगता है। राह देखी कि वह निवेदन करे। क्योंकि स्त्रियां प्रतीक्षा करती हैं। क्या करें! कुछ तो करना होगा, व्यस्त तो रहना होगा। जिंदगी निवेदन भी आक्रमण है। वह स्त्रैण-मन को ठीक नहीं लगता। है, तो खाली तो न बैठे रहेंगे।
वह राह देखती है कि प्रेमी निवेदन करे। लेकिन कांट कुछ बोला जिस महिला ने पूछा है उसे जागना चाहिए। उसने बड़ा ही नहीं। तीन साल बीत गये। मजबूरी में उस स्त्री ने कहा कि खतरनाक चुनाव कर लिया है : 'सोचती हूं दुख से छूटने के क्या कहते हो, कुछ कहो। ऐसे जिंदगी बीत जाएगी। मैं तुम्हारी लिए किसी का सहारा पकडूं।' सोचना क्या है? पकड़ो! होना चाहती हूं सदा के लिए। कांट ने कहा, मुझे डर था कि कभी
साचते-सोचते तो दिन निकल जाएंगे। सोचते-सोचते तो जीवन न कभी यह सवाल उठेगा। मैं इस पर सोचूंगा। | निकल जाएगा। इसमें सोचना क्या है? इसमें इतने वह बड़ा दार्शनिक था। बड़ी अदभुत कथा है। और कथा ही |
सोच-विचार की बात ही कहां है? क्रोध करते वक्त नहीं होती तो भी ठीक था, सही है। वह सोचता रहा, सोचता रहा। सोचते, प्रेम करते वक्त बड़ा सोच-विचार करते हो! | कहते हैं तीन साल बाद उसने जाकर उस यवती के घर पर दस्तक
'सोचती हूं दुख से छटने के लिए किसी का सहारा पकडूं, दी। युवती के पिता ने द्वार खोला। उसने पूछा कि कैसे आये, किसी के प्रेम के साये में बैठं।'
बहुत दिन से दिखायी नहीं पड़े। उसने कहा कि मैं यह कहने बैठो! क्योंकि प्रेम की सुगंध में ही परमात्मा की पहली खबर | आया हूं कि मैंने निर्णय कर लिया कि विवाह करूंगा। पिता ने मिलती है। और जिसका प्रेम का फूल अनखिला रह गया, | कहा, तुम बड़ी देर से आये। उसका तो विवाह हो भी चका, एक उसकी प्रार्थना का फूल कैसे खिलेगा?
बच्चा भी पैदा हो गया। तम इतनी देर कहां रहे? कांट ने कहा,
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