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सीह-गय-वसह-मिय-पसु, मारूद-सुरूवहि-मंदरिदु-मणी। खिदि-उरगंवरसरिसा, परम-पय-विमग्गया साहू।।९६।।
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बुद्धे परिनिव्वुडे चरे, गाम गए नगरे व संजए। संतिमग्गं च बूहए, समयं गोयम ! मा पमायए।।९७।।
ण ह जिणे अज्ज दिस्सई, बहमए दिस्सई मग्गदेसिए। संपइ नेयाउए पहे, समयं गोयम! मा पमायए।।९८।।
भावो हि पढमलिंगं, ण दव्वलिंगं च जाण परम त्थं। भावो कारणभूदो, गुणदोसाणं जिणा बिंति।।९९।।
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भावविसुद्धिणिमित्तं, बाहिरगंथस्स कीरए चाओ। बाहिरचाओ विहलो, अब्भंतरगंथजुत्तस्स।।१००।।
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देहादिसंगहिओ, माणकसाएहिं सयलपरिचत्तो। अप्पा अप्पमि रओ, स भावलिंगी हवे साहू।।१०१।।
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