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________________ जिनसत्र भाग:23 INHAR THER मीरा के पति ने अगर उसके लिए जहर भेजा था, तो वह | क्योंकि यहां आंसू आने से प्रतिष्ठा मिल सकती है। यहां तो इसीलिए भेजा था। कुछ मीरा से विरोध न था, विरोध था मीरा | जिसको नाच न भी आता हो, वह भी नाच सकता है। जिसके के कारण उसकी तक प्रतिष्ठा धूल में मिली जाती थी। शाही घर | भीतर उमंग न भी उठती हो, वह भी दिखला सकता है कि बड़ी की महिला, सड़कों पर नाचने लगी आवारा, तो राणा के मन को उमंग उठ रही है। क्योंकि यहां तो उमंग उठने से प्रतिष्ठा मिलती चोट पहुंचती होगी। लोग आकर कहते होंगे कि तुम्हारी पत्नी है। यहां तो पागलपन और प्रतिष्ठा में विरोध नहीं है। यहां तो राह पर नाच रही है, भीड़ लगाकर लोग खड़े होकर देखते हैं, पागलपन प्रतिष्ठा का कारण बन सकता है। वस्त्र तक उतर जाते हैं, हाथ से गिर जाता है साड़ी का पल्ला, घर जाकर हालत उलटी होगी। पागलपन और प्रतिष्ठा, दोनों ऐसा तो कभी न हआ था। चूंघट के जो कभी बाहर न निकली के बीच चुनाव करना होगा। इतना ही मैं तुमसे कह सकता हूं कि थी, सड़कों पर नचा रहे हो! कुछ करो! प्रतिष्ठा दांव पर लगी| अगर तुम्हें रस आया हो आंसुओं में, तो फिर फिक्र मत करना। होगी। मीरा को मार डालना चाहा होगा। हट ही जाए यह ! यह दो-चार दिन की बात है। लोग दो-चार दिन हंस लेते हैं। हंस कलंक मालूम पड़ा होगा। लेकिन मीरा नाचती रही। जहर भी पी लेने, देना। तुम भी उनकी हंसी में सम्मिलित हो जाना। तुम भी गयी और नाचती रही। अपने पर हंस लेना। दो-चार दिन लोग कहते हैं पागल, फिर जहर दिया या नहीं दिया, यह बात बड़ी नहीं। लेकिन बात कौन बैठा रहता है तुम्हारे लिए। सोचने की लोगों को फुर्सत कहां | इतनी खयाल रखना, जहर पी गयी और नाचती रही। जहर है! किसको समय रखा है! कौन चिंता करता है! फिर लोग स्वीकार कर लिया, नाच को त्यागना स्वीकार न किया। तो घर | स्वीकार कर लेते हैं कि हो गये पागल, बात खतम हो गयी। जाकर अगर रोना चाहोगे, तो कई तरह का जहर पीना पड़ेगा। दो-चार दिन में सब व्यवस्था बैठ जाती है। पत्नी भी मान लेती उतनी हिम्मत हो, तो जहां तुम हो वहां तुम्हारा नाच, वहां तुम्हारे है कि अब ठीक है, तम्हारे साथ ही जीना है। बच्चे भी मान लेते आंसू, वहां तुम्हारे गीत कौन छीन सकता है! लेकिन लोग छीन हैं कि ठीक है। दो-चार दिन की ही हिम्मत, जीवनभर के लिए लेते हैं, क्योंकि हम लोगों से कुछ चाहते हैं- इज्जत, प्रतिष्ठा। स्वतंत्रता का मार्ग खोल देती है। लेकिन हर स्थान पर कीमत तो स्वभावतः इज्जत और प्रतिष्ठा वे अपने ही मापदंड से देते हैं। चुकानी ही पड़ेगी। अगर तुम उनका मापदंड पूरा करो, तो इज्जत और प्रतिष्ठा देते पूर्ण होकर रुदन भी युग-गान बनता है, हैं। इसी आधार पर तो उन सबने तम्हारी गर्दन को जकड़ लिया मधुरतम गान बनता है। है। हाथों में जंजीरें डाल दी हैं। जब हृदय का एक आंसू प्रतिष्ठा चाहते हो, तो सौदा साफ है। तुम्हें समाज के अनुसार सब समर्पण-भाव लेकर चलना होगा। लोग जैसा कहते हैं वैसा ही मानना होगा। इस नैन-सीपी में उतर कर बदले में वे तुम्हें आदर देंगे। अगर तुमने उनके नियम तोड़े, | अर्चना का अर्ध्य बनता, स्वभावतः तुम्हें अनादर मिलेगा। एक क्षण पाषाण भी भगवान बनता है वही है जहर-अनादर का, अप्रतिष्ठा का, अपमान का। उसे पूर्ण होकर रुदन भी युग-गान बनता है, तुम पीने को राजी हो, तो तुम्हारी आंखें सदा ही मेघों की भांति मधुरतम गान बनता है। बरसती रहेंगी। और तुम्हारे आंसू कहीं भी गिरें, परमात्मा के तुम्हारी आंख से जिस क्षण आंसू बहे, अगर समर्पण का हो, चरणों में पहुंच जाएंगे। गीत का हो, अर्चना का हो, प्रभु के चरणों में चढ़ाने के लिए हो, भय तुम्हें उठ रहा है, तुम्हारे ही भीतर। यहां तो एक वातावरण | तो उस आंसू के क्षण में ही, अगर तुम पत्थर की प्रतिमा के सामने है। यहां तो और भी पागल हैं, तुम अकेले थोड़े ही। यहां तो भी बैठे हो-एक क्षण पाषाण भी भगवान बनता है। तो उस तुमसे बड़े पागल हैं। यहां तो हालत ऐसी उलटी है कि जिसको न आंसू के बीच, उतर आने से आंख में, सामने रखा हुआ पाषाण | भी आंसू आते हों, वह भी लाने की कोशिश कर सकता है। भी भगवान बनता है। तुम्हारे आंसू में बड़ा बल है। अगर तुमने 108 Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001819
Book TitleJina Sutra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages668
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size25 MB
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