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________________ GILSHREENE सम्यक दर्शन के आठ अग क्या पाओगे? बच्चे से ज्यादा कोमल और तुम क्या पाओगे? तुम आत्म-रूपांतरण को पा सकोगे, अन्यथा नहीं। क्योंकि जो पति अगर नाराज हो जाता है दफ्तर में मालिक से, तो घर पत्नी आदमी अपनी भूलें छिपाता है और दूसरों के गुण दबाता है, वह पर निकाल लेता है। पत्नी नाराज हो जाती है, बच्चे पर निकाल आदमी कभी गुणवान न हो सकेगा। दूसरे के गुण को देखना, लेती है। बच्चे को तुमने देखा। जाकर अपने कमरे में बैठकर या पहचानना, स्वीकार करना; क्योंकि दूसरे में देखकर ही तो तुममें तो किताब फाड़ डालेगा, या अपनी गुड़िया की टांगें तोड़ देगा, भी उसके जन्म का सूत्रपात होगा। किसी के मधुर कंठ को क्योंकि अब और कहां निकाले! | सुनकर ही तो तुम्हें भी खयाल उठेगा कि मेरा कंठ भी मधुर हो सारा संसार वहां खतम हो जाता है। सकता है। किसी कोयल की कह-कुह सुनकर तो तुम्हारे भीतर हम अपने दोषों को भी बड़ी सुंदर व्याख्या देते हैं। हम दूसरों भी रस का संचार होगा। के गुणों को भी स्वीकार नहीं करते, अस्वीकार करते हैं। और | लेकिन तुमने कहा, 'यह क्या कुहू कुहू है? यह सब शोरगुल हम अपने दोषों को भी बचाते हैं। | है! यह सब उत्पात है! यह कोई संगीत है?' अगर तुमने मुल्ला नसरुद्दीन का बेटा उससे पूछ रहा था। एक आदमी कुहू-कुहू को इनकार किया तो तुमने अपने भीतर भी कुहू-कुहू मसलमान था, हिंद हो गया था। उसके बेटे ने पछा कि पिताजी, की संभावना को इनकार कर दिया। इसको हम क्या कहें? उसने कहा, 'क्या कहना, गद्दारी है! जो तो दूसरे में जब कोई महिमा दिखाई पड़े तो सम्मान और आदमी मुसलमान से हिंदू हो गया, यह गद्दारी है।' पर उसके समादर से, अहोभाव से, उसे स्वीकार करना। उस स्वीकृति में, बेटे ने कहा कि कुछ ही दिन पहले, एक आदमी हिंदू से तुम्हारे भीतर भी महिमा के जन्म का पहला बीजारोपण होगा। मुसलमान हुआ था, तब आपने यह न कहा? उसने कहा कि और अपने भीतर जब कोई दोष दिखाई पड़े तो उसे छिपाना मत, वह धर्म-रूपांतरण था। उस आदमी को बुद्धि आई थी, क्योंकि छिपाने से दोष मिटते नहीं, छिप जाते हैं, और सदबुद्धि का आविर्भाव हुआ था। भीतर-भीतर बढ़ते रहते हैं। जिसे तुमने छिपाया वह बढ़ेगा। तो जब हिंदू मुसलमान बने, तो मुसलमान कहता है, अपना दोष हो तो उसे प्रगट कर देना; उसे स्वीकार कर लेना। सदबुद्धि और जब मुसलमान हिंदू बन जाये तो गद्दार! यही तुमने कभी खयाल किया, दोष स्वीकार करते से ही तुम्हारे हिंदू के लिए मूल्य है। भीतर क्रांति घटित हो जाती है! उस दोष का तुम्हारे ऊपर कब्जा मैं एक जैन संत को जानता था। वे हिंदू थे और जैन हो गये। छूट जाता है। तो जैन उनसे बड़े प्रसन्न थे, हिंदू बड़े नाराज थे। हिंदू उनकी बात ईसाइयों में कन्फैशन का बड़ा मूल्य है। उसी कन्फैशन की भी न करते। लेकिन जैन उन्हें बड़ा सम्मान देते, उतना सम्मान तरफ महावीर का इशारा है। कन्फैशन का अर्थ होता है: अपनी देते, जितना कि उन्होंने कभी जैन संतों को भी नहीं दिया था। बड़ी से बड़ी भूल को भी स्वीकार कर लेना। स्वीकार करते ही क्योंकि इस आदमी का हिंदू से जैन हो जाना, इस बात का सबूत तुम हलके हो जाते हो। प्रगट करते ही तुम निर्विकार हो जाते हो। था कि जैन धर्म सही है। तब तो कोई हिंदू जैन होता है, नहीं तो छिपाया, दबाया, तो जो आज छिपाया है उसे कल भी छिपाना क्यों होगा! तो जैनों से भी ज्यादा आदृत जैनों में वे थे; लेकिन पड़ेगा। और मजा यह है कि जिसे तुम छिपाओगे, दूसरे उघाड़ने हिंदुओं में उनका बड़ा अनादर था क्योंकि यह गद्दार था। इसने की कोशिश करेंगे। क्योंकि जो तुम उनके साथ कर रहे हो, वही हिंदू धर्म की अवमानना की। वे तुम्हारे साथ कर रहे हैं। तुम उनके गुणों को दाब रहे हो, उनके तुम इसे जरा गौर करना। हमारे जीवन में दोहरे मूल्य होते हैं। दुर्गुणों को उघाड़ रहे हो-वे तुम्हारे गुणों को दाब रहे हैं, तुम्हारे अपनी भल को भी हम सोने से ढंक लेते हैं: दसरे के सौंदर्य को दर्गणों को उघाड़ रहे हैं। तो तम जो छिपाओगे, उसे लोग भी हम मिट्टी से पोत देते हैं। इसको महावीर कहते हैं जुगुप्सा। उघाड़ेंगे। और अगर तुमने छिपाया और न छिपा पाये और लोगों जुगुप्सा के अभाव का नाम है : निर्विचिकित्सा। ने उघाड़ा तो भी दुख होगा, पीड़ा होगी, नाराजगी होगी, क्रोध यह बहुत बहुमूल्य सूत्र है। इसे अगर खयाल में रखा तो ही होगा। इससे अंधेरा बढ़ेगा, प्रकाश घटेगा। जो हो गई हो भूल, सापाकासा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrar og
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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