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________________ जिन सत्र भागः1 का।' वह आदमी बड़ा नाराज हो गया। उसने कहा कि उसमें कोई आकांक्षा मत रखना। क्योंकि आकांक्षा ही संसार है। सालभर! गुस्से में उसने अपने खीसे से नोटों के बंडल निकाले अगर सत्य की खोज पर भी आकांक्षा लेकर गये, तो तुम अपने और जो कचरा फेंकने की टोकरी थी, उसमें डालकर दरवाजे के को धोखा दे रहे हो, तुम संसार में ही दौड़ रहे हो। तुम्हें भ्रांति हो बाहर हो गया। दुकानदार भी चकित हो गया। और बहुत धनी | गई है कि तम सत्य की खोज पर जा रहे हो। सत्य की खोज पर लोग देखे थे, मगर यह आदमी अदभुत है। हजारों डालर, ऐसे | वही जाता है जिसकी आकांक्षा गिर गई। कचरे में डालकर चला गया। उसने जल्दी से नोट निकलवाये, आकांक्षा को हम समझें। फिर नकारात्मक शब्द है: गिनती करवाई; दुगने थे, जितने कि कार के दाम हो सकते थे। निष्कांक्षा। आकांक्षा क्या है? जैसे हम हैं उससे हम राजी नहीं उसने फौरन अपने आदमियों को कहा कि जाकर कार उसके घर हैं। एक बड़ी गहरी बेचैनी है-कुछ होने की, कुछ पाने की, पहुंचा दो। कार घर पहुंचा दी। दूसरे दिन वह हैरान हुआ। भागा कहीं और होने की, कहीं और जाने की। जहां हम हैं वहां हुआ उस आदमी के घर गया और कहा, 'महानुभाव! वह सब अतृप्ति! जैसे हम हैं वहां अतृप्ति! जो हम हैं उससे अतृप्ति! नोट नकली हैं।' उस आदमी ने कहा, नकली न होते तो हम कुछ और होना था, कहीं और होना था। किसी और मकान में, कचराघर में फेंकते? . किसी और गांव में। किसी और पति के पास, किसी और पत्नी एक बार तुम्हें दिखाई पड़ जाये कि नोट नकली हैं, तो कचराघर के पास! कोई और बेटे होते! कोई और देह होती! कोई और में फेंकना भी आसान है। अड़चन कहां है? वस्तुतः ढोना तिजोड़ी होती! लेकिन कुछ और! 'कुछ और' की दौड़ मुश्किल हो जायेगा। उस बोझ को तुम किसलिये ढोओगे! उस आकांक्षा है। बोझ को किस कारण ढोओगे! तुम थोड़ा सोचो। कहीं भी तुम होते, क्या इससे आकांक्षा की महावीर तुमसे श्रद्धा जन्माने को नहीं कहते। यही महावीर का दौड़ रुक जाती? तुम सोचते हो, जिस महल में तुम्हें होना और अन्य शिक्षकों का भेद है। महावीर कहते हैं, तुम अपनी चाहिए था, उसमें कोई है, उससे तो पूछो! वह कहीं और होने की आशंका को ठीक से पहचान लो, वह गिर जाएगी। जो शेष रह दौड़ में लगा है। तुम जिस पद पर नहीं हो और सोचते हो, होना जायेगा, वही श्रद्धा है। इसलिये महावीर श्रद्धा शब्द का उपयोग चाहिए थे, उस पद पर भी कोई है। उससे तो पूछो! वह कहीं नहीं करते। एक-एक शब्द खयाल करना। यहां महावीर श्रद्धा और जाने की तैयारी में लगा है। जिस गांव तुम पहुंचना चाहते कह सकते थे, लेकिन नहीं कहा; साहस कह सकते थे, नहीं हो, वहां भी कोई रहता है। उससे तो पूछो! वह बिस्तर-बोरिया कहा। नकारात्मक शब्द उपयोग किया ः निःशंका। कोई बांधे बैठा है कि कब ट्रेन मिल जाये कि वह कहीं और चल पड़े। विधायक शब्द उपयोग न किया, क्योंकि विधायक की कोई यहूदियों में एक कहानी है। एक यहूदी धर्मगुरु ने—गरीब जरूरत नहीं है। सिर्फ आशंका की समझ आ जाए कि व्यर्थ है, आदमी था—एक रात सपना देखा। सपना देखा कि देश की कोरी है, अकारण है-जैसे ही आशंका गिर जाती है तो जो राजधानी में जो पुल है नदी के ऊपर, उसके एक किनारे बिजली शंकारहित चित्त की दशा है वही श्रद्धा है, वही साहस है, वही के ठीक खंभे के नीचे बड़ा धन गड़ा है। उसने धन भी अभय है। तुम्हारे भीतर एक अनूठी ऊर्जा का जन्म होगा। वह देखा-हीरे-जवाहरात चमकते हुए! सुबह उठा, सोचा सपना दबी पड़ी है। तुम्हारी चट्टान ने, आशंका की चट्टान ने उस झरने है। लेकिन दूसरी रात सपना फिर आया, ठीक वैसा का वैसा। को फूटने से रोका है। हटा दो चट्टानः झरना अपने से फूट दूसरे दिन सुबह जागकर वह एकदम यह न कह सका कि सपना पड़ेगा। झरना तो है ही! झरना तुमने खोया नहीं है। है, क्योंकि सपने इस तरह नहीं दुहरते। फिर भी उसने सोचा कि इसलिए महावीर नहीं कहते कि झरने को खोजो। महावीर नहीं क्या भरोसा, कहां जाना! लेकिन तीसरी रात सपना फिर आया, कहते कि श्रद्धा को आरोपित करो। महावीर कहते हैं, सिर्फ तब रुकना मुश्किल हो गया। उसने कहा, कोई राजधानी इतनी आशंका को उघाड़ो। दूर भी नहीं है, जाकर देख तो आऊं मामला क्या है! वह कभी दूसरा चरण है : निष्कांक्षा। जो भी तुम करो सत्य की खोज में, राजधानी गया भी न था। जब वह गया तो चकित हुआ। ठीक 666 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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