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________________ सम्यक दर्शन के आठ अंग जरा भी संदेह हुआ तो संदेह पैर को पीछे खींच लेता है। संदेह बात ही नहीं है, मेरे पास कुछ है नहीं...। पैर को आगे बढ़ने ही नहीं देता। अगर तुम्हें जरा भी डर रहा और मैंने सुना है, मुल्ला नसरुद्दीन के द्वार पर एक भिखारी आया। पता, पता नहीं होगा ऐसा, न होगा ऐसा-अगर ऐसी तुम तो मुल्ला ने उसे देखते ही से कहा कि मालूम होता है गांव में आशंका में घिरे रहे, तो कदम उठेगा नहीं। नये-नये आये हो। इसलिए पहला कदम महावीर कहते हैं : निःशंका। लेकिन हम उस भिखारी ने कहा, आप कैसे पहचान गए? बिलकल ठीक तो बड़ी आशंका से भरे हैं। और हमारी आशंकाएं बड़ी अदभुत कहते हैं। मैं अभी स्टेशन से ही उतरकर चला आ रहा हूं। मगर हैं। हमारी आशंकाएं ऐसी हैं कि जैसे कोई नंगा कहे कि मैं नहाऊं | आप पहचाने कैसे? आप कोई ज्योतिषी हो? कैसे, क्योंकि नहा लूंगा तो फिर कपड़े कहां निचोडूंगा, कपड़े। उसने कहा कि मैं कोई ज्योतिषी नहीं, लेकिन गांव के भिखारी कहां सुखाऊंगा! नंगा है, कपड़े हैं नहीं; लेकिन स्नान नहीं जानते हैं कि यहां कुछ मिलेगा नहीं। करता इस डर से कि कहीं कपड़े भीग न जायें। भिखारी है, डरता भिखारी को भी देने योग्य हमारे पास क्या है! हमारे पास है ही है कि कहीं चोर-लुटेरे न मिल जाएं। पास कुछ भी नहीं। लुटेरे | कहां कुछ! लेकिन हम मानकर बैठे हैं, मान्यता है, और मान्यता मिल भी जाएंगे तो उन्हीं को लुटना पड़ेगा, कुछ देकर जाना में हम काफी रस लेते हैं। मान्यता के ढक्कन को उघाड़कर भी पड़ेगा। लेकिन, भिखारी भी डरता है कि कहीं चोर-लुटेरे न | भीतर के खाली बर्तन को नहीं देखते। डर लगता है कि कहीं मिल जाएं। हमारी दशा ऐसी ही है। हमारे पास कुछ भी नहीं| ऐसा न हो कि खाली ही हो! मुट्ठी हम बांधकर रखते हैं, खोलते और आशंका बहुत है कि कहीं खो न जाये। | नहीं, क्योंकि कहीं दिखाई न पड़ जाये कि खाली है। हम अपने कभी तुमने सोचा, क्या है तुम्हारे पास जो खो जायेगा? हाथ को समझाये रखते हैं कि है, बहुत है। हम गुनगुनाते रहते हैं कि तुम्हारे खाली हैं, हृदय तुम्हारा रिक्त है, संपत्ति के नाम पर कुछ बहुत है। और फिर आशंका पैदा होती है कि कहीं छिन न जाये। ठीकरे इकट्ठे कर रखे हैं जो मौत तुमसे छीन ही लेगी। तुम लाख | महावीर जब तुमसे कहते हैं, आशंका नहीं चाहिये, निःशंका उपाय करो तो भी अंततः मौत से तुम हारोगे। कितने ही बचो, की स्थिति चाहिये, तो वे यह नहीं कह रहे हैं कि तुम निःशंका को इधर बचो उधर बचो, इधर छिपो उधर छिपो, एक न एक दिन | आरोपित करो। वे इतना ही कह रहे हैं कि तुम अपनी आशंका मौत तुम्हारी गर्दन पकड़ ही लेगी। को जरा गौर से खोलकर, आंखों के सामने बिछाकर तो देख अंततः मौत जीतेगी, तुम न जीत पाओगे—इतनी बात निश्चित लोः वहां कोई कारण है? कोई भी कारण नहीं है! जिस दिन है। बीच में कितनी देर तुम धोखा दे लेते हो, मौत को इससे क्या तुम्हें ऐसी दृष्टि उपलब्ध होगी कि डरने का कोई भी कारण नहीं फर्क पड़ता है? अंततोगत्वा मौत तुम्हारी गर्दन पकड़ लेगी और है, खोने का कोई उपाय नहीं, क्योंकि है ही नहीं, उसी क्षण तुम्हारे तुम्हारे ठीकरों को उगलवा लेगी। जिसे तुमने इनकमटैक्स जीवन में एक नई ऊर्जा का आविर्भाव होगा। उस नई ऊर्जा को आफिस से बचा लिया होगा, उसको तुम मौत से न बचा | कहोः श्रद्धा, भरोसा, ट्रस्ट। उस नई ऊर्जा को कहो : निःशंका। सकोगे। जिसको तुमने चोरों से, डाकुओं से बचा लिया होगा, | तब तुम असंदिग्ध भाव से बिना पीछे लौटकर देखे, सत्य की उसको तम मौत से न बचा सकोगे। | खोज में निकल जाओगे। वह भाव तुम्हें, यह अनुभव कि मेरे यहां, पहली तो बात ः तम्हारे पास कुछ है नहीं, और जो तुम्हारे पास कुछ भी नहीं है, ना-कुछ ही दांव पर लगाना है, मिला तो पास है वह सब मौत छीन लेगी। तो गवाने का डर क्या है? भय | ठीक न मिला तो कुछ खोता नहीं तो फिर दांव पर लगाने में क्या है? लेकिन तुम बड़े भयभीत होते हो।। तुम झिझकोगे नहीं। तुम सभी दांव पर लगा दोगे। महावीर कहते हैं, ठीक से अपनी स्थिति को समझो तो | मैंने सुना है, एक आदमी अमरीका की एक कार बेचनेवाली आशंका का कोई कारण ही नहीं है। आशंका के लिए जरा भी दुकान में गया। वह जिस कार को खरीदना चाहता था, उसका कोई आधार नहीं है। आशंका कल्पित है और जब आशंका गिर मिलना मुश्किल था। दुकानदार ने कहा, 'कम से कम साल भर जाये, और तुम देख लो खुली आंख से कि आशंका की तो कोई रुकना पड़ेगा। लंबा क्यू है। और कोई उपाय नहीं अभी देने 668 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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