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________________ आदमी को एक तरह की सिगरेट पसंद पड़ती है, दूसरे आदमी तुम्हारा मन सक्रिय रूप से भाग न ले ज्ञान की खोज में, निष्क्रिय को दूसरी तरह की पड़ती है। एक आदमी को एक तरह का रहे; एक्टिव न हो, पैसिव रहे। स्त्रैण हो तुम्हारा चित्त! सिर्फ जो साबुन पसंद है, दूसरे को दूसरी तरह का पसंद है। एक आदमी | हो रहा है उसको स्वीकार करे; लेकिन कैसा होना चाहिए, कैसा को एक तरह का फूल लुभाता है, दूसरे को दूसरी तरह का होता, ऐसी कोई धारणा प्रक्षेपण न करे। इसे खयाल में लेना। लुभाता है। कोई कहता है सुबह बड़ी सुंदर है, कोई कहता है मुझे | जगत में खोज के दो उपाय हैं-एक निष्क्रिय, एक सक्रिय। जंचती नहीं तो कोई झगड़ा खड़ा नहीं होता; विवाद का कोई सक्रिय में तुम चेष्टा करते हो कुछ खोजने की; निष्क्रिय में तुम कारण नहीं, यह व्यक्तिगत रुझान है। लेकिन अगर कोई आदमी केवल निष्पक्ष भाव से खड़े होते हो। सक्रिय चेष्टा विचार बन कहे, यह स्त्री सुंदर है, यह वैज्ञानिक सत्य है, तो फिर झगड़ा जाती है; निष्क्रिय चेष्टा ध्यान बन जाती है। जब तुम सक्रिय खड़ा होगा। वैज्ञानिक सत्य कहने का अर्थ यह हुआ कि यह होकर खोज में लग जाते हो तो तुम विचारों से भर जाते हो; सभी के लिए सुंदर है। तो फिर अड़चन आयेगी। क्योंकि विचार मन के सक्रिय होने का अंग हैं। मन जब सक्रिय अब तक वैज्ञानिक मानते थे कि उनका सत्य वैज्ञानिक है और होता है तो विचार से भर जाता है। मन जब निष्क्रिय होता है तो बाकी जो वक्तव्य हैं वे कवियों के हैं। लेकिन पोल्यानी की कोरा रह जाता है। आकाश में बादल हों तो सक्रिय; आकाश में किताब ने और पोल्यानी की खोजों ने जीवनभर यह सिद्ध करने | कोई बादल न हो तो निष्क्रिय, कोई क्रिया नहीं हो रही। की कोशिश की कि विज्ञान भी वैयक्तिक है। आइंस्टीन जो कह महावीर कहते हैं, मन की सारी क्रिया शून्य हो जाये, रहा है, वह आइंस्टीन कह रहा है। न्यूनट जो कह रहा है, वह | नय-पक्षरहित हो जाये-सव्वणयपक्खरहिदो-तो जो शेष रह न्यूटन कह रहा है। यद्यपि आइंस्टीन जो कह रहा है वह इतने | जाता है उस निष्क्रिय चित्त की दशा में जिसको लाओत्स ने प्रबल तर्क से कह रहा है कि अभी हम उसका विरोध न कर वू-वेइ कहा है-ऐसी निष्क्रियता, दर्पण जैसी निष्क्रियता; जैसे पायेंगे जब तक कि प्रबलतर आइंस्टीन न आ जाये। और यह दर्पण 'जो है' उसको झलका देता है। अगर दर्पण कुछ जोड़ता तीन सौ साल में निरंतर हुआ। न्यूटन ने जो कहा वह आइंस्टीन है, घटाता है, तो सक्रिय हो गया; जैसा है वैसा का वैसा, तैसे ने गलत कर दिया। ऐसी-ऐसी चीजें जिनके बाबत हम सोचते थे का तैसा झलका देता है। उस स्थिति को महावीर कहते हैं, बिलकुल सही हैं, वह भी सही न रहीं। ज्यामति जैसा शास्त्र भी उपलब्ध हो जाओ तो वही समयसार है। वही अध्यात्म का सही न रहा। इकलेट ने जो सिद्ध किया था, वह गलत हो गया। निचोड़ है। वहीं से तुम्हें अनुभव का जगत शुरू होगा। उसी को दूसरे लोगों ने उससे विपरीत मान्यताएं सिद्ध कर दीं। गणित सम्यक दर्शन और उसी को सम्यक ज्ञान की संज्ञा दी है। जैसा विषय भी अब वैज्ञानिक नहीं रहा। क्योंकि गणित की महावीर कहते हैं, और सब तो शब्द हैं, मगर असली बात वही सामान्य मान्यताओं के विपरीत भी मान्यताएं लोगों ने सिद्ध कर है। सम्यक ज्ञान कहो, सम्यक दर्शन कहो या कुछ और कहना दी और नये गणित विकसित हो गये। तो अब तो दिखायी पड़ता हो-ध्यान, समाधि, निर्विकल्प दशा जो भी कहना हो कहो। है कि सारा ज्ञान व्यक्तिगत है, रुझान है। वह आदमी के ऊपर लेकिन एक बात तय है कि वह निष्क्रिय दशा है। जिसमें तुम निर्भर है। कुछ भी हिस्सा नहीं बंटाते; तुम सिर्फ खड़े रह जाते हो। इसे महावीर कहते हैं, जो परम सत्य को मानने चला है, मान्यता तो थोड़ा अभ्यास करना शुरू करो। यह मेरे कहने भर से साफ न हो दूर, हाइपोथिसिस, परिकल्पना भी ठीक नहीं, नय भी ठीक जायेगा-इसका थोड़ा अभ्यास करना शुरू करो। कभी इसकी नहीं। नय का अर्थ होता है : बड़ी सूक्ष्म-सी रेखा दृष्टि की; कोई झलक मिलेगी। नाच उठोगे तुम, जब इसकी पहली झलक दृष्टिकोण; कोई हाइपोथिसिस। वह भी ठीक नहीं। उसे खाली मिलेगो। तुम भरोसा न कर पाओगे कि अरे, मैं अब तक यह जाना चाहिए-कोरा। तुम्हारे मन के कागज पर कुछ भी न क्या करता रहा! तुम्हारा सारा जीवन तब एक नयी रूप-रेखा से लिखा हो, अन्यथा जो लिखा है उसका प्रक्षेपण हो जायेगा। भर जायेगा। थोड़ा अभ्यास करो। तुम्हारा मन का कागज बिलकुल कोरा हो। इसका अर्थ हुआ, शांत बैठकर वृक्ष को देखते हो तो देखते ही रहो। सक्रिय मत Wat ducation International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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