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________________ मा HTRA साधु का सेवन आत्मसेवन महावीर ने कोई शास्त्रार्थ नहीं किया; किसी से कोई विवाद | कि महावीर जो कहते हैं, वह सही ही कहते हैं; इसीलिए महावीर नहीं किया। महावीर शंकराचार्य की तरह मुल्क में नहीं घूमे से दूर हो गया है। विवाद करते। महावीर की पकड़ बड़ी गहरी है। महावीर कहते | महावीर के साथ तो केवल वही खड़ा हो सकता है जो निष्पक्ष हैं, विवाद से क्या होगा? अगर कोई पहले से मानकर बैठा है है-इतना निष्पक्ष कि यह भी नहीं कहता कि महावीर ठीक हैं। तो उसे मनाया नहीं जा सकता। और अगर जबर्दस्ती उसे चुप इतना ही कहता है कि मुझे पता नहीं; मैं खोजने को तैयार हूं। करा दिया जाये, तर्क से हो सकता है, तो भी उसका हृदय थोड़े सूरज की कहीं से भी किरण आये, मैं पीछे जाने को तैयार हूं। मैं ही राजी होता है। कभी-कभी ऐसा हुआ है कि तर्क में तुम किसी अनंत की यात्रा के लिए तैयार हूं। से हार गये हो, तो भी दिल में तो तुम घाव लिए रहे हो हो कि और बिना मान्यता के यात्रा पर निकलना बड़ा दूभर है। ठीक है, देखेंगे; आज जरा मुश्किल हो गयी, हम तर्क ठीक न क्योंकि तुम कहते हो कि जब कोई मान्यता ही नहीं है, तो हम खोज पाये! चुप कर दिये गये हो तुम, लेकिन तुम्हारा हृदय यात्रा पर कैसे निकलें! वैज्ञानिक तक प्रयोग करने के पहले रूपांतरित तो नहीं हुआ। जबर्दस्ती तुम्हारी जबान रोक दी गयी हाईपोथिसिस निर्मित करता है। हाईपोथिसिस का मतलब है, है। यह हो सकता है, कोई तुमसे ज्यादा कुशल हो तर्क में। पक्ष तय करता है। तय करता है कि यह हो सकता है कम से तो तर्क में जो जीत जाता है, जरूरी नहीं कि उसके पास सत्य कम। फिर यात्रा पर निकलता है। हो। और तर्क में जो हार जाता है जरूरी नहीं कि उसके पास सत्य महावीर का विज्ञान वैज्ञानिक के विज्ञान से भी ज्यादा गहरा है। न हो। यह भी हो सकता है, जिसके पास सत्य है उसके पास महावीर कहते हैं, उतना पक्षपात भी खतरनाक है। क्योंकि उसी सत्य को सिद्ध करने का तर्क न हो। यह भी हो सकता है, पक्षपात के कारण तुम वह देख लोगे जो नहीं था। और यह बात जिसके पास सत्य को सिद्ध करने के तर्क हैं उसके पास कोई अब वैज्ञानिकों को भी समझ में आने लगी।। सत्य न हो। और जो कोई तर्क के द्वारा तुम्हें पराजित कर देता है। पोल्यानी ने एक बहुत अदभुत किताब लिखी हैः पर्सनल वह केवल इतना ही सिद्ध कर रहा है कि वह तुमसे ज्यादा कुशल नालेज। तीन सौ वर्ष की वैज्ञानिक खोज के बाद वैज्ञानिकों को है, तुमसे ज्यादा अनुभवी है; इतना। उससे कुछ सिद्ध नहीं भी यह सिद्ध हो गया है कि हमारा जो ज्ञान है वह इम्पर्सनल नहीं होता। और यह भी हो सकता है कि वह तुम्हारे पीछे चलने लगे, है, अवैयक्तिक नहीं है; वह भी वैयक्तिक है। क्योंकि जो हार जाये तो तुम्हारे पीछे चले, तुम्हें मान ले। कल कुछ और वैज्ञानिक खोज करने जाता है, उसकी धारणा वह जो खोज करता मानता था, आज तुम्हें मान ले-लेकिन मान्यता तो मान्यता है। है उस पर आरोपित हो जाती है, उसको रंग देती है। इसलिए हम कल मानता था, ईश्वर नहीं है; आज तुमने तर्क दे-देकर सिद्ध जो भी जानते हैं, वह वस्तुतः ऐसा है, कहना मुश्किल है। कर दिया और उसने मान लिया कि ईश्वर है। कल एक मान्यता | खोजनेवाला उस पर हावी हो जाता है। से भरा था, आज दूसरी मान्यता से भर गया है-विपरीत तो पहले तो हम सोचते थे...अभी एक बीस वर्ष पहले तक मान्यता से; लेकिन मान्यता तो दोनों ही मान्यताएं हैं। ज्ञान का वैज्ञानिक यही सोचते थे कि विज्ञान निष्पक्ष है। अगर कोई जन्म न हुआ। आदमी किसी स्त्री के संबंध में कहता है, बड़ी सुंदर और तुम्हें महावीर कहते हैं, एक पक्ष को दसरे में नहीं बदलना है-पक्ष संदर नहीं लगती, तो तुम कहते हो, पसंद-पसंद की बात है। को गिरा देना है; तुम्हें निष्पक्ष होना है। इसलिए जैन भी महावीर इसमें कोई झगड़ा खड़ा नहीं होता। के अनुयायी नहीं हैं। क्योंकि जैन होने में ही खराबी हो गयी। तुम कहते हो, 'चाहत की बात है। अपने रुझान की बात है। महावीर जैन न थे। महावीर के पास जैन होने का उपाय नहीं है। तुम्हें सुंदर मालूम पड़ती है, मुझे सुंदर नहीं मालूम पड़ती।' क्योंकि महावीर की मौलिक दृष्टि यही है कि सभी पक्ष भ्रष्ट कर झगड़ा खड़ा नहीं होता। क्योंकि जो आदमी कहता है, यह स्त्री देते हैं। अब जैन तो पहले से मानकर बैठ गया है कि महावीर सुंदर है, वह इतना ही कह रहा है कि मुझे सुंदर मालूम पड़ती है। ठीक हैं। इसीलिए वंचित हो गया है। पहले से मानकर बैठ गया यह पर्सनल, वैयक्तिक बात है; इसमें झगड़ा नहीं है। एक 583 SE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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