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________________ जिन सूत्र भागः1 करना। महावीर की श्रद्धा को समझ लेना। उनका विशेष शब्द राजी हो जाते हैं। विश्वास मरा हुआ है, लाश है। है: श्रद्धान। यह तुम जिसे साधारणतः श्रद्धा कहते हो उससे हां, महावीर को दिखायी पड़ा होगा। जो उन्होंने कहा वह महावीर का कोई प्रयोजन नहीं है। लोग कहते हैं, हमारी तो उनकी श्रद्धा थी; जो तुमने सुना वह तुम्हारा विश्वास है। ईश्वर में बड़ी श्रद्धा है। जिसे तुमने देखा नहीं, श्रद्धा होगी इसलिए खयाल रखना, अगर मैं कुछ कह रहा हूं तो वह मेरी कैसे? श्रद्धा कान से नहीं होती, श्रद्धा आंख से होती है। श्रद्धा है। और तुमने अगर सुनकर मान लिया तो तुम धोखे में इसलिए श्रद्धान का दूसरा नाम महावीर 'दर्शन' कहते हैं। पड़ गये। तुम्हारे लिए वह विश्वास होगा। चूंकि मेरे लिए श्रद्धा श्रद्धान और दर्शन महावीर की भाषा में पर्यायवाची हैं; एक ही है, इसलिए तुम्हारे लिए श्रद्धा न हो जायेगी। जैसा मैंने देखा, अर्थ रखते हैं, उनमें जरा भी फर्क नहीं है। तुम भी देखो। इसलिए तुम कहते हो, ईश्वर में हमारी श्रद्धा है। देखा? तो मैं तुम्हें श्रद्धा नहीं दे सकता; मैं तुम्हें सिर्फ कुछ इशारे दे अनुभव किया? स्पर्श हुआ? जीये उसमें? तुम्हारा हृदय सकता हूं, जिनसे तुम भी आंख खोलो और देखो। जब तुम देख उसके साथ धड़का? तुम नाचे उसके साथ? कोई पहचान है? लोगे तभी श्रद्धा होगी। फिर तुम्हारे देखे को कोई छीन न नहीं, तुम कहते हो मान्यता है। और लोग कहते हैं, बड़े बुजुर्ग सकेगा। क्योंकि देखते ही हृदय में विराजमान हो जाता है। कहते हैं, सनातन से चली आयी बात, परंपरा में है। लेकिन इसलिए महावीर ने श्रुतियों को, स्मृतियों को, सभी को इनकार इससे श्रद्धा पैदा न होगी। यह तुम्हारा विश्वास है, श्रद्धा नहीं। कर दिया; वेद को इनकार कर दिया। यह शब्द विचारणीय है। विश्वास और श्रद्धा का भेद यही है। विश्वास उधार; श्रद्धा हिंदू कहते हैं, वेद उपनिषद श्रुतियां हैं। सुना ऐसा हमने; ऐसा अपनी। श्रद्धा होती है निज की, विश्वास ऐसा है जैसे बाजार से सदपुरुषों ने कहा; ऐसा जो जागे, उनका बोध है-श्रुति! फिर खरीद लाए कागज या प्लास्टिक के फूल और घर को सजा हमने उसे याद रखा; सदियों सदियों तक सम्हाला धरोहर की लिया। श्रद्धा ऐसे है जैसे बीज बोया, वृक्ष को सम्हाला, पानी तरह-स्मृति! सभी शास्त्र पहले श्रुति बनते, फिर स्मृति बन दिया, खाद दी-फिर एक दिन फूल आये और हवाएं सुगंध से जाते। महावीर ने कहा, न श्रुति न स्मृति-श्रद्धा। भर गयीं। शास्त्र को तुम्हें स्वयं ही निर्मित करना होगा। तुम्हारा शास्त्र श्रद्धा के फूल तुम्हारे जीवन में लगते हैं—उधार और बासे तुम्हें जन्म देना होगा। ऐसे गोद लिए शास्त्र काम न पड़ेंगे। नहीं; किसी और से नहीं; मांगे हुए नहीं। फर्क देखा! एक स्त्री मां बनती है-गोद लेकर मां बन जाती विश्वास बड़ा सस्ता है। इतने सस्ते तुम सत्य को न पा है। ऐसा मां बनने का धोखा देती है। न तो गर्भ रहा, न गर्भ की सकोगे। सत्य जो सर्वोपरि है, उसे तुम विश्वास से न पा पीड़ा सही, न नौ महीने के लंबे कष्ट भोगे, न वमन हआ, न दर्द सकोगे। उधार कब किसने सत्य को जाना है। उठा, न मितली आयी, न बोझ सहा, फिर प्रसव की पीड़ा भी न उपनिषद कहते हैं : सत्यम् परं, परं सत्यम्; सत्य सर्वोत्कृष्ट है सही, कि जैसे प्राण संकट में पड़े, कि बचेंगे कि न और जो सर्वोत्कृष्ट है वही सत्य है। सर्वोत्कृष्ट को इतने सस्ते बचेंगे।...उस अज्ञात जीवन के लिए जो पेट में है अपने ज्ञात कैसे पा सकोगे? अपने को दांव पर लगाना होगा। इसलिए मैं | जीवन को दांव पर लगाया—उस अनजान के लिए जो अभी कहता हूं, दुकानदार सत्य तक नहीं पहुंचते; जुआरी पहुंचते हैं। आया नहीं; कौन है, कैसा है, कुछ पता नहीं है; जो ज्ञात है, क्योंकि सत्य की पहली शर्त यह है: अपने को गंवाओ तो परिचित है, पहचाना है, उसको खतरे में डाला; अपने प्राण मिलेगा; दांव पर लगाओ तो मिलेगा। यह बिलकुल जुए जैसा जोखिम में डाले। है। मिलेगा कि नहीं, यह पक्का नहीं है। तुम तो गंवा दोगे अपने तो एक तो मां बनती है गर्भ को धारण करके। फिर होशियार को, तब मिलेगा। गंवाने के पहले कोई सुनिश्चित नहीं कर लोग हैं। वे कहते हैं, 'इतनी परेशानी में क्या पड़ना! बच्चे तो सकता कि मिलेगा ही। गोद भी लिए जा सकते हैं।' गोद ले लो। लेकिन गोद लेने में इसलिए दुकानदार, गणित, तर्क बिठानेवाले लोग विश्वास से और गर्भ लेने में बड़ा फर्क है। कामचलाऊ मां पैदा हो जायेगी. 538 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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