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________________ Hindi प्यास ही प्रार्थना है न अगर एक बार तुम्हारा मुझसे तारतम्य बंध जाए तो किताब को पढ़ते-पढ़ते भी तुम मुझे सुनने लगोगे। तो जिन्होंने मुझे ठीक से सुना है, वे किताब को पढ़ते वक्त भी किताब को नहीं पढ़ेंगे, मुझे सुनेंगे। किताब उनसे बोलने लगेगी। एक बार तुमने मुझे अपने हृदय में जगह दे दी, तो फिर किताब से भी मैं तुम्हारे पास आ सकूँगा। बिना किताब के भी आ सकूँगा। तुमने जरा मेरी याद की तो भी पास आ जाऊंगा। तम पर निर्भर है। और जब मैं कहता हूं 'अगर ठीक से सुना', तो मेरा अर्थ है: अगर प्रेम से सुना, सहानुभूति से सुना, सहयोग किया मुझसे, श्रद्धा से सुना, संदेह को हटाकर सुना, अपने मन को हटाकर सुना; कहा अपने मन को कि हट, थोड़ी जगह दे। तो, तो मेरा प्रेम तुम्हें बेहोश भी बनाएगा और मेरा प्रेम तुम्हें होश में भी लाएगा। यह बेहोशी कुछ ऐसी है कि इसमें होश बढ़ता चला जाता है। यह होश कुछ ऐसा है कि इसमें बेहोशी बढ़ती चली जाती है। हमें भी देख जो इस दर्द से कुछ होश में आए अरे दीवाना हो जाना मुहब्बत में तो आसां है। प्रेम में पागल हो जाना तो बहुत आसान है। हमें भी देख जो इस दर्द से कुछ होश में आए हैं! मैं तम्हें जो प्रेम दे रहा है, वह एक दर्द है. वह एक पीडा है। उस पीड़ा से तुम निखरो! वह एक आग है जो तुम्हें जलाएगी। तुम घबड़ा मत जाना! तुम मेरे साथ चलना, सहयोग करना। हमें भी देख जो इस दर्द से कुछ होश में आए अरे दीवाना हो जाना मुहब्बत में तो आसां है। बहुत आसान है पागल हो जाना प्रेम में, लेकिन जागना बड़ा कठिन है। यह प्रेम तुम्हें जगाए तो ही सार्थक हुआ। यह प्रेम तुम्हें उठाए तो ही सार्थक हुआ। यह प्रेम तुम्हें तुम तक पहुंचा दे तो ही सार्थक हुआ। हो सकता है। मेरा हाथ बढ़ा है, तुम भी अपना हाथ बढ़ाओ और उसे पकड़ लो! आज इतना ही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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