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________________ वासना का अर्थ है: मांग है, तनावपूर्ण । अभीप्सा का अर्थ है : मांग है, तनावशून्य। मांगते भी हैं, जल्दी भी नहीं है; देना, जब तुझे देना हो! तेरी मर्जी! न देना हो, उसके लिए भी राजी हैं ! तीसरा प्रश्न : आपके प्रवचन के समय मैंने संन्यासियों के चेहरे का अवलोकन किया है। ऐसा लगता है कि वे गहरी नींद में पहुंच गये हैं । और मेरा अपना अनुभव भी यही है कि जैसी मीठी, गहरी और लुभावनी नींद प्रवचन के समय लगती है वैसी और कभी अनुभव में नहीं आती। क्या कारण है ? अलग-अलग लोगों के अलग-अलग कारण होंगे। एक कारण तो बताया नहीं जा सकता, क्योंकि यहां बहुत लोग हैं। लेकिन फिर भी प्रश्न विचारणीय है। पहली बात, कुछ लोग तो निश्चित ही सभी धर्म सभाओं में सो जाते हैं। यह बचने की एक तरकीब है। यह मन की एक बड़ी सूक्ष्म व्यवस्था है। जिससे तुम बचना चाहते हो तो बीच में एक नींद का पर्दा डाल लेते हो । सुना ही नहीं, तो अपने साथ ही कूटनीतिक खेल खेल गये। सुनने भी गये तो रस भी ले लिया कि धार्मिक व्यक्ति हैं और सो भी गये तो सुना भी नहीं। तो दुनिया को दिखाई भी पड़ा कि धार्मिक हैं और झंझट भी न हुई । धार्मिक होने की झंझट में भी न पड़े। तो एक तो वर्ग ऐसे लोगों का है, जो धर्म की बात पड़ी नहीं उनके कान में कि उन्हें नींद आई नहीं। यह उनके भीतर करीब-करीब यांत्रिक हो गया है। मंदिरों में, चर्चों में तुम उन्हें सोता हुआ पाओगे। एक पादरी पूछ रहा था अपने एक भक्त को; क्योंकि पादरी देखता था, जब भी वह आता है, सोया ही रहता है चर्च में | उसने उससे एक दिन पूछा कि क्या रात नींद ठीक से नहीं होती ? उस आदमी ने कहा, रात तो नींद लगती ही नहीं। हजार चिंताएं हैं संसार की, मगर उसकी कोई चिंता नहीं । जब आपका प्रवचन सुनता हूं तो खूब गहरी नींद लग जाती है। । संसार की तो चिंता है, परमात्मा की तो कोई चिंता है नहीं संसार के तो विचार हैं, परमात्मा का तो कोई विचार है नहीं । संसार की तो भाग-दौड़ है, तो नींद को खलल डालती है। परमात्मा की कोई भाग-दौड़ तो है नहीं। तो परमात्मा की बात Jain Education International परमात्मा के मंदिर का द्वार प्रेम सुनकर कोई महत्वाकांक्षा तो जगती नहीं कि पाना है, उठना है, जाना है। तो जब जहां कोई महत्वाकांक्षा नहीं उठती तो आदमी सो जाता है, करेंगे भी क्या और? तुमने देखा, जब तुम्हारे पास कुछ भी करने को नहीं होता, तब तुम सो जाते हो। करोगे क्या और ? जब तक कुछ करने को होता है, तब तक तुम करते रहते हो। और तुमने यह भी देखा होगा जब तुम्हारे पास करने को इतना कुछ होता है कि तुम बिस्तर पर भी पड़ जाते हो, लेकिन मन में काम जारी रहता है, तो नींद नहीं आती। तो जहां काम है वहां नींद में बाधा है। परमात्मा तुम्हारा कोई काम तो है नहीं। वहां कुछ करने को तो है नहीं । तुम्हारे भीतर कोई अभीप्सा तो है नहीं; उसे पाने की कोई आकांक्षा तो है नहीं । सुन लिया, नींद आ गयी । त एक तो ऐसे लोग हैं। दूसरे ऐसे लोग हैं जो वस्तुतः नींद में चले जाते हैं आकांक्षा के रहते भी । परमात्मा को पाने की प्यास भी है, किसी को धोखा देने नहीं आये हैं; लेकिन फिर भी नींद में चले जाते हैं। अपने को भी धोखा नहीं दे रहे हैं, लेकिन नींद बरबस पकड़ लेती है। उसका कारण है— जन्मों-जन्मों की मन की आदत । जिस दिशा में मन कभी गया नहीं है, उस दिशा में जाने से मन इनकार करता है, जिस दिशा में मन को कभी ले नहीं गये हो पहले, अनभ्यस्त है, रास्ता अपरिचित वह वहां जाने से बिलकुल इनकार कर देता है। वह जमीन पर ही बैठ जाता है। वह आंख ही बंद कर लेता है। वह कहता है, हम सो ही जायेंगे । यह मन का इनकार है। त दूसरा वर्ग है जो निष्ठापूर्वक समझना चाहता है; लेकिन उसका मन इनकार कर रहा है। फिर एक तीसरा वर्ग है, जिसकी नींद बड़े और कारण से पैदा हो रही है। अगर तुम हृदयपूर्वक मेरी बातों को सुन रहे हो तो एक तरह की तंद्रा उतर ही आयेगी। पर वह नींद नहीं है । उसको योग अलग नाम देता है— तंद्रा । वह नींद जैसी है, निद्रा जैसी है, लेकिन निद्रा नहीं है। वह तंद्रा है। तंद्रा का अर्थ है : जब तुम मधुर संगीत सुनते हो तो एक ताल बंध जाती है भीतर, एक सुर बंध जाता है, एक सन्नाटा खिंच जाता है, विचार शांत हो जाते हैं। एक बड़ी झपकी, जिसको तुम जागना भी नहीं कह सकते, सोना भी नहीं कह सकते; जो दोनों के मध्य है— तंद्रा – ऐसी घड़ी आ जाती है। न बाहर न भीतर, देहली For Private & Personal Use Only 485 www.jainelibrary.org.
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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