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________________ 484 जिन सूत्र भाग: 1 परमात्मा दूर है, ऐसा तो सोचना ही नहीं। क्योंकि जो दूर हो सकता है, वह तो परमात्मा न होगा। परमात्मा तो वही है जिसने तुम्हें सब तरफ से घेरा है, बाहर और भीतर सब तरफ से भरा है। उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। परमात्मा सर्वस्व है । परमात्मा सब कुछ का नाम है। परमात्मा कोई व्यक्ति नहीं है, परमात्मा समष्टि है। इसलिए उससे दूर तो हम नहीं हैं, लेकिन जरा हम बेहोश हैं। अल्लारे बेखुदी कि तेरे पास बैठकर तेरा ही इंतजार किया है कभी-कभी। हम बेहोश हैं, बस इतनी ही बात है। और हम बेहोश तब तक रहेंगे, जब तक हम हैं । हमारा होना हमारा बेहोश होना है। तो खाक तो होना पड़ेगा। जलना तो पड़ेगा। राख तो होना पड़ेगा। मगर यही वास्तविक होने का उपाय है। मैं एक किताब पढ़ रहा था । उसमें एक अमरीकी प्रार्थना करता है कि हे प्रभु! सुनते हैं धीरज की बड़ी जरूरत है, तो धीरज अभी तो हम नाममात्र को कहने मात्र को हैं। अभी हमारे दे–लेकिन अभी और यहीं ! धीरज की बड़ी जरूरत है ! तो दे, धीरज दे -- लेकिन अभी और यहीं ! जीवन में कुछ चीजें समय मांगती हैं - और जितनी महत्वपूर्ण हों उतना ज्यादा समय मांगती हैं। अगर किसी व्यक्ति से केवल वासना का संबंध बनाना हो तो अभी और यहीं बन सकता है, प्रेम का बनाना हो तो समय लगेगा। और प्रार्थना का बनाना हो तो अनंत काल लग जायेंगे । और परमात्मा का बनाना हो तो शाश्वतता चाहिए। इसका यह मतलब नहीं है कि तुम्हें प्रतीक्षा करनी पड़ेगी शाश्वतता तक। क्योंकि शाश्वतता ने अभी और यहां भी तुम तक अपना हाथ पहुंचाया है। तुम शाश्वत के लिए तैयार हुए कि अभी और यहीं भी घट सकता है। इसमें जरा विरोधाभास लगेगा। इसे स्पष्ट करके कहूं। होने में क्या है ? कोई सत्व नहीं, कोई सार नहीं । तो घबड़ाओ मत। और यह भी माना कि'आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक कौन जीता है तेरे जुल्फ के सर होने तक हमने माना कि तगाकुल न करोगे, लेकिन खाक हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक।' हो जाओ ! तमाम उम्र तेरा इंतजार कर लेंगे मगर ये रंज रहेगा कि जिंदगी कम है। I करो! उम्र छोटी पड़ जाये, इंतजार बड़ा हो जाये । अनेक उम्रे समा जायें, इंतजार इतना बड़ा हो जाये । प्रतीक्षा ऐसी घनी हो जाये कि जन्म और जीवन पलक के झपने जैसे बीतने लगे। | लेकिन इंतजार का सिलसिला जारी रहे। शरीर बदलें, जीवन बदलें, योनि बदले, रूप बदलें, रंग बदलें, नाम बदलें, सब बदलता जाये - लेकिन भीतर की प्रतीक्षा का एक सूत्र अनस्यूत रहे, एक धागा पिरोया रहे सारे मनकों में । घटना तो इस क्षण भी घट सकती है, लेकिन प्रतीक्षा अनंत चाहिए। और घटना बहुत देर होगी घटने के लिए, अगर प्रतीक्षा में थोड़ी कमी रही। जल्दबाजी न करना । नये युग ने बड़ी जल्दबाजी की है। इसलिए प्रतीक्षा के गहरे रूप खो गये हैं। कोई प्रतीक्षा करने को राजी नहीं है। पश्चिम से एक बड़ा बुखार सारे जगत में फैला है - तेजी, जल्दी, स्पीड ! तो जैसे इंस्टेंट काफी, ऐसा सारा जीवन, सभी कुछ अभी हो जाये, इसी क्षण हो जाये, आज ही हो जाये! तो मनुष्य के जीवन की कुछ गहराइयां खो ही गयीं, क्योंकि कुछ चीजें धीरे-धीरे होती हैं । कुछ चीजें मौसमी फूलों की तरह होती हैं- आज लगायीं, तीन सप्ताह में पौधे हो जायेंगे, छह सप्ताह में फूल आ जायेंगे — लेकिन आये नहीं कि गये भी नहीं। लेकिन देवदार और चीड़ के वृक्ष वर्षों लेंगे, वर्षों लगेंगे, बड़े धीरे-धीरे बढ़ेंगे। और यह तो परमात्मा की खोज तो शाश्वत वृक्ष है; इसको रोपना अपने हृदय में, तो बड़ी अनंत प्रक्रिया है। अब यह अभी इसी क्षण नहीं हो सकता। Jain Education International अगर तुम शाश्वत प्रतीक्षा करने को राजी हो तो अभी और यहीं घट सकता है; क्योंकि शाश्वत प्रतीक्षा का अर्थ हुआ अब कोई जल्दी नहीं; तुम शांत हुए; शिथिल तुमने छोड़ा; तनाव हटा। अब तुम्हारी कोई मांग नहीं है- हो, जब हो । अब कोई जल्दी न रही। बस इस शिथिल और शांत मन में अभी और यहीं घट सकता है I | तुमने मांगा अभी और यहीं घट जाये तो तुम इतने तन गये, इतने परेशान हो गये कि कहीं न घटा और समय बीत गया तो कहीं समय फिजूल न चला जाये। तुम्हारे तनाव के कारण ही न घट पायेगा। मांग में तनाव है। यही अभीप्सा शब्द की खूबी है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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