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________________ जिन-शासन अर्थात आध्यात्मिक ज्यामिति तुमने ठीक तर्क-शास्त्र का शिक्षण नहीं लिया। अरे नासमझ! समझ लेना। दर्शन का अर्थ फिलासफी नहीं है। दर्शन का अर्थ जब मैं पीठ पर तेरी बैठा हूं और डंक मारूंगा तो तू डूबेगा वह तो है: देखने की क्षमता; तुम्हारी आंखों का निष्कलुष हो जाना; ठीक, मैं भी तो डूबूंगा! मैं भी तो मरूंगा! तो यह बात तर्क के तुम ऐसे देख सको कि देखने में तुम अपने भावों को मिश्रित न विपरीत है। ऐसा मैं कैसे कर सकूँगा? तेरी ही मौत होती होती करो; तुम निर्भाव से देख सको; तटस्थ, निष्पक्ष, निर्विकार, तुम तो समझ में आ सकता था; तेरी मौत तो मेरी मौत भी बनेगी। अपने को बीच में न डालो; तुम अपने को बिना डाले देख इसलिए यह बात तर्क के अनुकूल नहीं है।' केंकड़े ने कहा, | | सको। तो फिर तुम्हारे जीवन में दर्शन उपलब्ध होगा। 'बात तो ठीक है। तर्क के बिलकुल अनुकूल नहीं है। आओ क्रोध आये, क्रोध को गौर से देखना। क्रोध को रोककर चरित्र बैठ जाओ!' बैठ गया पीठ पर बिच्छ, चल पड़े दोनों और बीच निर्मित करने की कोशिश मत करना। क्रोध को गौर से देखना। मझधार में जो होना था हुआ। बिच्छु ने डंक मारा। जब डंक | इतने गौर से देखना कि तुम्हें क्रोध का सारा अर्थ समझ में आ मारा और दोनों डूबने लगे तो मरते-मरते केंकड़े ने पूछा कि जाये। इतने गौर से देखना कि तुम क्रोध से पृथक और अलग महानुभाव, तर्क का क्या हुआ? उस बिच्छू ने कहा, 'तर्क का साक्षी हो, यह तुम्हारी अनुभूति में आ जाये। इतने गौर से देखना इससे क्या संबंध है? यह मेरा चरित्र है।' कि क्रोध वहां पड़ा रह जाये वस्तु की तरह, तुम यहां द्रष्टा की लोग जैसा जी रहे हैं वैसा जीने को मजबर हैं। उनके पास दष्टि तरह खडे रह जाओ: तम्हारे दोनों के बीच का सेत टट जाये। ही वैसी जीने की है। तुम सोचते हो, कोई आदमी शराब पीता है, दर्शन का अर्थ होता है सारे सेतुओं का टूट जाना। व्यक्ति इसलिए मूर्छित है। असलियत और है। वह मूर्छित है, अलिप्त खड़ा होकर देखता है-क्रोध है तो क्रोध को; काम है| इसलिए शराब पीता है। तुम सोचते हो, एक आदमी मांसाहार तो काम को; हिंसा है तो हिंसा को; प्रेम है तो प्रेम को; राग है तो करता है, इसलिए हिंसक है। तुम गलत सोचते हो। वह आदमी राग को अलिप्त भाव से देखता है, सिर्फ देखता है। जिसको हिंसक है, इसलिए मांसाहार करता है। अगर तुमने ऐसा सोचा | कृष्णमूर्ति अवेयरनेस कहते हैं, होश; जिसको बुद्ध ने सम्यक कि मांसाहार करने के कारण हिंसक है तो तुम्हारी चेष्टा यह होगी स्मृति कहा है, ठीक-ठीक स्मृति, जिसको गुरजिएफ ने कि मांसाहार छुड़ा दो। मांसाहार तो छूट जायेगा, लेकिन अगर सेल्फ-रिमेंबरिंग कहा है, आत्म-बोध; उसी को महावीर दर्शन वह हिंसक होने के कारण मांसाहारी था, तो हिंसा नहीं छूटेगी। कहते हैं। इधर दर्शन की क्षमता घनी होगी कि दर्शन से जो-जो फिर हिंसा नये मार्ग खोज लेगी। किसी और तरफ से हिंसक हो | तुम्हें दिखाई पड़ेगा, वह जो दर्शन का सार इकट्ठा होने लगेगा वह जायेगा वह। किसी और बहाने से हिंसा करेगा। है ज्ञान। तो एक तो ज्ञान है जो शास्त्र से मिलता है और एक ज्ञान ध्यान रखना, हम जैसे हैं वह हमारे भीतरी चित्त की अवस्था के है जो जीवन के साक्षी-भाव से मिलता है। उसको महावीर ज्ञान कारण है। कहते हैं। पढ़ लोगे शास्त्र में, उससे क्या होगा? अकसर ऐसा बाहर से भीतर को नहीं बदला जा सकता। आचरण से अंतस हुआ है। नहीं बदला जा सकता। लेकिन अंतस बदल जाये तो आचरण | अहले-दानिश आम हैं, कमयाब हैं अहले-नजर तत्क्षण बदलना शुरू हो जाता है। क्या तअज्जुब कि खाली रह गया तेरा अयाग। __ महावीर का सूत्र बिलकुल साफ है : दर्शन, ज्ञान, चरित्र। इन | अहले-दानिश आम हैं-शास्त्रों के जानकार बहुत हैं। तीन को जैनों ने त्रिरत्न कहा है। ये उनकी तीन मणियां हैं, जिन तथाकथित बुद्धिमान बहत हैं। तथाकथित बुद्धिशाली बहत हैं। पर मोक्ष का भवन निर्मित होता है। ये आधार हैं। और ये तीन कमयाब हैं अहले-नजर-लेकिन जिनके पास द्रष्टा की दृष्टि रत्न जिसके पास हैं उसके पास सब आ गया-सारी संपदा सारे है, अहले-नजर, जिनके पास शुद्ध आंख है, देखने की क्षमता जगत की। त्रिलोक की सारी संपदा उसके पास आ गई। है, ऐसे बहुत-बहुत विरले हैं।। दर्शन उपलब्ध होता है-जागरण से, अप्रमत्तता से, होश से। अहले-दानिश आम हैं, कमयाब हैं अहले-नजर दर्शन का अर्थ तुम जैन दर्शन, हिंदू दर्शन, बौद्ध दर्शन, ऐसा मत क्या तअज्जुब कि खाली रह गया तेरा अयाग। 461 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org|
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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