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जिन सत्र भागः
या निर्वाण।
'दर्शन' का अर्थ है : देखने की क्षमता; द्रष्टा, साक्षी। लेकिन बुद्ध और महावीर दोनों ने निर्वाण शब्द का उपयोग 'ज्ञान' का अर्थ है : साक्षी को जो दिखाई पड़ता है; द्रष्टा के जो अलग-अलग अर्थों में किया है। बुद्ध के निर्वाण का ठीक वही | अनुभव में आता है। और 'चारित्र्य' का अर्थ है: जो जागा, अर्थ होता है जो दीये के बुझने का होता है। दीये को फूंककर बुझा जिसने देखा, जिसने जाना—उस जानने के कारण जो जीवन में देते हैं, उसको हम कहते हैं दीये का निर्वाण हो गया। महावीर के उतर आता है। निर्वाण शब्द का अर्थ अलग है, क्योंकि उनकी जीवन-दृष्टि | तो पहली तो घटना घटती है साक्षी-भाव में दर्शन की। दूसरी अलग है। महावीर कहते हैं, दीया नहीं बुझता। दीया तो बुझेगा | घटना घटती है बोध की, ज्ञान की-समझ में आया। तीसरी ही नहीं कभी; यह ज्योति तो सदा रहनेवाली है। सिर्फ दीये की | घटना घटती है चारित्र्य की। क्योंकि जो समझ में आ गया, ज्योति से धुआं नहीं उठता।
उससे विपरीत करोगे कैसे? 'वाण' का अर्थ होता है वासना। 'निब्बाण' का अर्थ होता अगर तुम जैन मुनियों से पूछो तो वे अकसर उलटी व्याख्या है: वासनारहित हो जाना। तुमने देखा, ईंधन जलाते हो : लपटें कर रहे हैं। वे चरित्र को पहले रखते हैं जबकि किसी सूत्र में भी उठती हैं, धुआं भी उठता है। अगर ईंधन गीला हो तो धुआं महावीर ने चरित्र को पहले नहीं रखा; चरित्र को अंतिम रखा है। बहुत उठता है; अगर ईंधन सूखा हो तो कम उठता है। अगर पहला दर्शन, फिर ज्ञान, फिर चरित्र। अगर जैन मुनि ईंधन बिलकुल सूखा हो तो धुआं उठ ही नहीं सकता; क्योंकि वह कहता है: 'चरित्र! पहले चरित्र को सुधारो। जब चरित्र धुआं आग के कारण नहीं उठता, लकड़ी के गीलेपन के कारण सुधरेगा तो ज्ञान होगा। चरित्रहीन को कहीं ज्ञान हुआ है? और उठता है; लकड़ी के कारण नहीं उठता, वह जो लकड़ी में पानी | जब ज्ञान होगा तब कहीं दर्शन उपलब्ध होगा।' उसने सारी बात छिपा है, उसके कारण उठता है।
उलटी कर ली। तो महावीर कहते हैं कि जब ऐसी सूखे ईंधन जैसी व्यक्ति की लेकिन महावीर के शब्दों में कहीं भी चरित्र पहले नहीं चेतना हो जाती है, जिसमें वासना का कोई गीलापन नहीं रहा, | आता-आ नहीं सकता। पहले तो मूर्छा तोड़नी जरूरी है। | सूख गई पोर-पोर, वासना-मात्र सूख गई, हरी वासना जरा भी दर्शन यानी मूर्छा का टूट जाना; देखने की क्षमता आ जाना; न रही-तब लपट तो उठती है, लेकिन धुआं नहीं उठता। आंख का खुल जाना। आंख खुली कि अनुभव में आना शुरू
उस निर्धूम लपट का नाम निर्वाण है। वासना के गिर जाने का होता है कि क्या है सत्य। वह जो 'क्या है सत्य', उसकी नाम निर्वाण।
अनुभूति है, उसका नाम ज्ञान है। बुद्ध के हिसाब से तो आत्मा के मिट जाने का नाम निर्वाण, तो ज्ञान शास्त्र से नहीं मिल सकता। महावीर के हिसाब से वासना के मिट जाने का नाम निर्वाण। इसलिए महावीर ने ज्ञान को दर्शन के बाद रखा है। ज्ञान तो ' 'मार्ग है उपाय, मोक्ष है फल।' और इन दो बातों में, महावीर मिल सकता है केवल ध्यान से, शास्त्र से नहीं। और चारित्र्य कहते हैं, सारी बात हो गई।
कभी भी अभ्यास करने से नहीं पैदा हो सकता। अभ्यास से तो 'दर्शन, ज्ञान, चारित्र्य तथा तप को जिनेंद्रदेव ने मोक्ष का मार्ग | जो पैदा होता है, वह आदत है। कहा है। शुभ और अशुभ भाव मोक्ष के मार्ग नहीं हैं। इन भावों चारित्र्य तो तब पैदा होता है जब तुम्हारे भीतर दृष्टि इतनी सघन से तो नियमतः कर्म-बंध होता है।'
होती है कि तुम उसके विपरीत नहीं चल पाते।। फिर मार्ग क्या है?
मैंने सुना है, एक बिच्छू ने एक केंकड़े से कहा कि मुझे नदी के 'दंसणाणचरित्ताणि...'
| उस पार जाना है, मित्र! पार करवा दो! उस केंकड़े ने कहा, दर्शन, ज्ञान, चरित्र और तप-ये शब्द बड़े बहुमूल्य हैं। 'तुमने मुझे नासमझ समझा है? बीच रास्ते में मेरी पीठ पर बैठे महावीर का सारा नवनीत इन तीन शब्दों में, त्रिरत्न-दर्शन, डंक मार दोगे, डूब जाऊंगा, मर जाऊंगा।' । | ज्ञान, चरित्र में समाया हुआ है।
बिच्छू ने कहा, 'मालूम होता है तर्क में तुम बहुत कमजोर हो।
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