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________________ पलकन पग पोंछ आन पिया के कोई कैद समझे मगर हम तो ऐ दिल खुलेगा। और अगर प्रेम सध जाये तो सब सध जाता है। तो मुहब्बत को आजादगी जानते हैं। किरणों के भीतर किरणों के द्वार खुलते जाते हैं। कोई कहता हो कि कैद है...। अगर प्रेम कैद है तो वह प्रेम संत अगस्तीन से किसी ने पूछा कि मुझे एक शब्द में सारा प्रेम ही नहीं। कहीं कुछ भूल हो रही है। तुमने कुछ को कुछ शास्त्र समझा दें, ताकि मैं सदा याद रख सकूँ। तो अगस्तीन ने समझ रखा है। क्योंकि प्रेम ने तो सदा मुक्त किया। प्रेम ने तो बहुत सोचा और कहा कि फिर अगर ऐसा ही कोई शब्द चाहते इतना मुक्त किया कि तुम्हारा परमात्मा पूरा-पूरा निखार को हो, तो प्रेम। इस एक शब्द को याद रखना। इसके विपरीत मत उपलब्ध हो जाता है। जो प्रेम बांध ले वह प्रेम नहीं; जो मुक्त जाना। और सदा इसके अनुकूल व्यवहार करना; शेष सब करे, वही प्रेम है। जो तुम्हारे स्वत्व को प्रगट करे, वही प्रेम है। अपने से सुधर जायेगा। जो तुम्हारे सत्व को निखारे, शुद्ध करे, वही प्रेम है। तुम जरा सोचो। तुम्हारे जीवन में प्रेम आ जाये, मंदिर न भी प्रेम ने कभी किसी को बांधा नहीं। गये तो तुम मंदिर पहुंच जाओगे। तुम्हारे जीवन में प्रेम आ जाये तो जिन लोगों ने कहा है कि प्रेम बंधन है, उन्होंने प्रेम के कुछ और तुमने शास्त्र न भी पढ़े तो तुम शास्त्र पढ़ लोगे। ढाई आखर गलत रूप जाने होंगे। और जिन्होंने सोचा कि प्रेम को छोड़कर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय! प्रेम सम्हल जाये तो कुछ बड़ी हम मुक्त हुए, उन्होंने जिंदगी को गंवाने को जीवन समझ लिया दार्शनिक चर्चाओं में पड़ने की जरूरत नहीं है। होगा। वे सिकुड़नेवाले लोग रहे होंगे। प्रेम अस्तित्वगत धर्म है। ‘एक्ज़ीसटेंशियल'! बाकी सब मेरे देखे, फैलो तो ही तुम परमात्मा तक पहुंचोगे। जितने बकवास है। फैलो, जितने विस्तीर्ण होने लगो, उतना शुभ है। अलम-नसीबों, जिगर-फिगारों चौथा प्रश्न : मुझे समर्पण में बहुत आनंद आता है। मेरी अलम-नसीबों, जिगर-फिगारों प्रार्थना शब्दों-शब्द परमात्मा या आपके लिए होती है। ज्ञान की सुबह अफलाक पर नहीं है। का शब्द अच्छा लगता है, मगर थोड़ा अहंकार जगता है। मेरा -जो दुखी हैं, जो कारागृह में पड़े हैं, जिनके हृदय घायल हैं, प्रतिपल ध्यान में जा रहा है, ऐसा भाव सदा रहता है। तो मैं उनकी सुबह कहीं दूर किसी आकाश पर नहीं है। कौन-सा ध्यान करूं-यह बताने की कृपा करें! जहां पे हम तुम खड़े हैं दोनों सहर का रौशन उफक यहीं है। समर्पण. जिसे सध रहा हो-ध्यान हो गया। और अन्यथा -और जहां हम दोनों खड़े हैं, ठीक इसी जगह सुबह का ध्यान करने की कोई भी जरूरत नहीं है। जिसे शरणागति में मजा सूरज ऊगेगा। जहां हम हैं वहीं सूरज ऊगेगा। आ रहो हो, बस इसी मजे के सहारे को पकड़कर और-और गहरे यहीं पे गम के शरार मिलकर मजे में उतरते जाओ। रोओ, आंसू बहाओ-आनंद से, शफक का गुलजार बन गये हैं। प्रफुल्लता से। यहीं पे कातिल दुखों के तेशे एक मित्र परसों आकर कह रहे थे कि थोड़ी घबड़ाहट होती है, कतार अंदर कतार किरनों क्योंकि जब भी ध्यान करने बैठता हूं, मस्ती आती है तो आंसू के आतिशी हार बन गए हैं! आने लगते हैं और शरीर कंपने लगता है और रोमांच हो जाता जहां हम हैं. जैसे हम हैं. वहीं ठीक हमारी ही मौजदगी और है। तो मैंने पछा. क्या करते हो? तो उन्होंने कहा, मैं रोक लेता हमारी आज की इस स्थिति में, द्वार खुल सकता है। वह द्वार प्रेम हूं जबर्दस्ती। सुशिक्षित व्यक्ति हैं—अब रोएं! और काफी उम्र हो गई है। वृद्ध हैं, कोई पैंसठ के करीब उम्र हो गई है। तुम परमात्मा को आकाश में मत खोजना, अन्यथा भटकोगे | जिंदगीभर कभी रोए नहीं, आंख कभी गीली न की। रोमांच हो व्यर्थ। तुम तो परमात्मा को हृदय के प्रेम में खोजना, तो द्वार जाता है। शरीर कंपने लगता है। कोई समझेगा कि क्या का है। 1445 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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