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________________ जिन सूत्र भागः1 उसके सारे साथी-सहयोगी रुष्ट हो गये, परेशान हो गये। उसके बातों को बीच-बीच में मत डालना। क्योंकि फिर तुम सब विद्यार्थी तो घबड़ा गये कि अब यह कब खतम होगा; क्या पूरा विकृत कर दोगे। एक बार साफ हो गया कि प्रेम की चर्चा तुम्हें जीवन यह एक ही प्रयोग में करते रहना है; सात सौ बार! तीन उमंग से भर देती है तो फिर तुम विरागियों की चर्चा की बात ही साल खराब हो गये! एक दिन उसके सब सहयोगियों ने कहा, छोड़ देना। फिर वह रास्ता तुम्हारे लिए नहीं है। फिर उनकी बात 'आप सुनिये! आप तो रोज सुबह फिर प्रसन्नचित्त आ जाते हैं | तुम्हें झंझट में डाल देगी। प्रेमी की बात बड़ी अलग है। और फिर काम शुरू कर देते हैं। लेकिन हमारा भी सोचिये! यह | इश्क हायल है तेरे मिलने में जिंदगी इसी में गंवानी है? सात सौ दफे हार चुके; अब छोड़िये हमसे ये पर्दा हटाया न गया। भी! कुछ और करिये!' विरागी कहता है कि प्रेम को हटा लो तो परमात्मा से मिल एडीसन ने कहा कि तुमसे किसने कहा कि मैं सात सौ बार हार जाओ। प्रेमी कहता है: इश्क हायल है तेरे मिलने में! लोग चुका? मैं तो हर बार जीत के करीब आ रहा हूं। समझो कि सात कहते हैं कि प्रेम के कारण हम तुझसे नहीं मिल रहे हैं; होगा यही सौ एक दरवाजे हैं उसके, तो सात सौ दरवाजे तो हम खटखटा सही। हमसे यह पर्दा हटाया न गया। लेकिन हम यह पर्दा न चुके; वहां नहीं था द्वार, दीवाल थी। वह दरवाजे झूठे थे! अब | हटा सकेंगे। हम तो, अगर प्रेम के कारण ही तू चूक रहा है तो हम रोज-रोज करीब असली दरवाजे के आ रहे हैं। कितनी देर | चूके चले जायेंगे लेकिन यह प्रेम हमसे न हटाया जायेगा। यह चलेगा! तो सात सौ बार हम असफल हुए, यह तुमसे भक्त के लिए तो प्रेम ही परमात्मा है। ज्ञानी के लिए प्रेम बाधा किसने कहा? हर कदम हमें सफलता के करीब लाया है। हर है। वह प्रेम को कहता है, राग! हटाओ! वैराग्य को जगाओ! विफलता सफलता के करीब लाती है। सात सौ बार के अनुभव तो ही सत्य मिलेगा। ने हमें काफी प्रौढ़ बना दिया है। हमारी परख पैनी हो गई है। प्रेमी और भक्त कहता है, पर्दे को नहीं हटाना, अपने को मिटा अब हमें वो सात सौ मार्ग भटका नहीं सकते। और निश्चित ही | देना है। प्रेम ही प्रेम रह जाये, तुम न बचो! ठीक मार्ग के हम करीब आ रहे हैं। कितनी देर होगा, यह तो इश्क हायल है तेरे मिलने में कहना मुश्किल है। हमसे यह पर्दा हटाया न गया। और कहते हैं, उसके कोई पंद्रह दिन बाद ही एडीसन सफल हो तुझको देखा तो सेर चश्म हुए गया। उसने बिजली का पहला बल्ब बना लिया। आज सारी तुझको चाहा तो और चाह न की। दुनिया उसकी वजह से रोशन है। | -आंखों की सारी भूख मिट गई तुझे देखते ही! तेरी झलक जो बाहर के प्रकाश की खोज के संबंध में सही है, वही भीतर पाते ही! के प्रकाश की खोज के संबंध में भी सही है। तुझको देखा तो सेर चश्म हुए जहां सुख मिले-जाना! तुझको चाहा तो और चाह न की। मैं यहां तुम्हें डराने को नहीं हूं। डरकर कभी कोई जागा? मैं विरागी कहता है, सब चाह छोड़ो तो परमात्मा मिलेगा। प्रेमी तुम्हें घबड़ाता नहीं हूं। मैं तुमसे कहता हूं, जाओ! साहस से, कहता है, उसकी चाह आ गई तो सब चाह अपने से छूट जाती हिम्मत से! होगा सुख तो एक कदम और तुमने प्रभु की तरफ | है; छोड़ने की झंझट प्रेमी को नहीं है। उसकी चाह काफी है। लिया। नहीं होगा सुख, तो भी एक कदम प्रभु की ओर लिया। तुझको देखा तो सेर चश्म हुए एक द्वार बंद हुआ! इस तरफ जाने में कोई सार नहीं। एक रास्ता तुझको चाहा तो और चाह न की। गलत हुआ। सही रास्ते के करीब आने लगे। फिर उसको चाहने के बाद कहीं कोई और चाह बचती है! हृदय की सुनो। तो अगर भक्ति, प्रेम और उत्सव की बात पर ये दोनों अलग-अलग मार्ग हैं। विरागी कहता है, सब सनकर तुम्हारे हृदय में कोई धुन बजती है, तुम्हारे हृदय की वीणा | चाह छोड़ो-इतना कि परमात्मा की चाह भी छूट जाये। वह भी कंपित होने लगती है, तो वही तुम्हारा मार्ग है। फिर वैराग्य की | एक रास्ता है। अचाह में झूब जाओ। परमात्मा तक की चाह न 4361 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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