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________________ 2015 पलकन पग पोंछं आज पिया के हो और फिर भी तुम्हारे लिए सही न हो। क्योंकि परमात्मा असली नहीं है। एक-एक व्यक्ति को अनूठा रचता है, एक-एक व्यक्ति को परमात्मा दोबारा कोई चीज बनाता नहीं। परम कलाकार है! अद्वितीय रचता है। यही तो मनुष्य की महिमा है। ऐसा थोड़े ही है कि जगत चुक गया है, कि अब उसे कुछ सूझता मनुष्य की तो छोड़ दो फिक्र, एक पत्ते को इस बगीचे से तुम नहीं, कि फिर महावीर को बना दे, फिर राम को बना दे, फिर खोज लो, फिर वैसा पत्ता तुम सारी पृथ्वी पर खोजकर भी दूसरा कृष्ण को बना दे। न पा सकोगे। देखा तुमने, न महावीर दुबारा, न कृष्ण दुबारा, न राम दुबारा! एक कंकड़ उठा लो मार्ग से, फिर अनंत-अनंत चांद-तारों पर जो एक बार आता है, फिर दोबारा पर्दे पर आता ही नहीं। इसे भी खोजते रहो तो ठीक वैसा कंकड़ तुम्हें दुबारा न मिलेगा। स्मरण रखना। परमात्मा कोई फोर्ड-कार बनानेवाली असेंबली-लाइन नहीं है। तुम भी नये हो। सीख सबसे लेना, मानना अपनी। सुनना कि एक-सी कारें। परमात्मा कोई मैकेनिक नहीं है, तकनीशियन सबकी, अंतिम निर्णय हृदय से लेना। नहीं है-कलाकार है। तो अगर वैराग्य की बातें सुनकर शिथिलता और उदासी आती जितना बड़ा कवि होगा, उतना ही दुबारा किसी गीत को नहीं है; हृदय का फूल खिलता नहीं, कुम्हलाता है; कली फूल नहीं दोहराता। जितना बड़ा चित्रकार होगा, दुबारा फिर उसी चित्र को बनती, उलटा फूल अपनी पंखुड़ियां बंद कर लेता है-जैसे नहीं बनाता। दुबारा अगर बना भी ले वैसा चित्र तो आनंद | साझ सूरज के डूब जाने पर बहुत-से फूल अपनी पंखुड़ियां बंद अनुभव नहीं करता। कर लेते हैं तो समझ लेना, यह सत्य तुम्हारा सूरज नहीं। यह ऐसा हुआ कि एक आदमी ने पिकासो का एक चित्र खरीदा। होगा सत्य किसी और का, क्योंकि कुछ फूल हैं जो सूरज के कई लाख रुपये का चित्र था। तो स्वभावतः वह पता कर लेना | डूबने पर ही खिलते हैं। रातरानी है। उसका होगा, तुम्हारे लिए चाहता था कि चित्र नकली तो नहीं है। तो वह पिकासो के पास नहीं है। तुम्हारा रास्ता फिर बिलकुल साफ है। ही उस चित्र को लेकर गया। और उसने पिकासो से कहा कि मैं जहां तुम्हें आनंद की झलक मिले, साहस करके वहां जाना। यह खरीद रहा हूं, लाखों रुपये का मामला है, मैं इतना पूछने | जरूरी नहीं है कि हर बार तुम वहां आनंद पाओगे, यह मैं नहीं आया हूं कि यह असली है? तुम्हारा ही बनाया हुआ है, किसी कह रहा हूं। बहुत बार तुम पाओगे वहां कुछ भी न था, राख का की नकल तो नहीं? ढेर था। लेकिन तब भी अनुभव होगा। तब भी जीवन में प्रौढ़ता पिकासो ने उस चित्र की तरफ बड़ी बेरुखी से देखा और कहा, | आयेगी। राख का ढेर देखकर समझ आयेगी। आगे राख के ढेर नकली है, किसी और का बनाया है। पिकासो की प्रेयसी मौजूद पहचानने की कला आयेगी। दुबारा धोखा मुश्किल होगा। थी और वह बड़ी चकित हुई, क्योंकि यह चित्र उस प्रेयसी के तीसरी बार धोखा असंभव हो जायेगा। फिर एक ऐसी घड़ी आ सामने ही बनाया गया था। और पिकासो ने ही बनाया था। | जायेगी कि कितना ही लोभक दृश्य हो, तुम दूर से भी पहचान उसने कहा कि शायद तुम भूल रहे हो, शायद तुम्हारी स्मृति तुम्हें पाओगे कि कहां राख है, कहां अंगार है; कहां जीवन है, कहां धोखा दे रही है। यह चित्र तुमने मेरे सामने बनाया है। यह सब बुझा-बुझा है।। तुम्हारा ही बनाया हुआ है। - भूल-भूल करके ही आदमी सीखता है। गलत को गलत जान पिकासो ने कहा, मैंने बनाया है, लेकिन फिर भी नकली है। लेना सही की तरफ जाने का उपाय है। भ्रांत को भ्रांत पहचान क्योंकि इसे मैं पहले भी बना चुका हूं। इसको असली कहना | लेना, निर्धांत होने की व्यवस्था है। ठीक नहीं है, आथैटिक नहीं है। एक दफा जो बना चुके, बात तो मैं तुमसे कहता नहीं कि तुम जल्दी भाग जाना, मेरी मानकर पुरानी हो गई। अब उसे कोई दूसरा नकल करे या मैं खुद ही | भाग जाना। तुम तो अपने ही अनुभव से जाना। होगा सुख, तो उसकी नकल करूं, इससे क्या फर्क पड़ता है? लेकिन यह चित्र | स्वर्ग का रास्ता बनेगा। नहीं होगा सुख, तो अनुभव जगेगा। मैं पहले भी बना चुका हूं। यह सिर्फ प्रतिध्वनि है, छाया है; एडीसन एक प्रयोग कर रहा था। उसमें सात सौ बार हारा। 4351 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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