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________________ जिन सूत्र भागः1 पाली बांध ली है। आधा-आधा घड़ी को एक-एक नौकर | सरकार निर्मित करने की कोशिश करता है। मालिक हो जाता है। जब, जो नौकर मालिक होता है, उस वक्त । की तर्के-मय तो मायले-पिंदार हो गया उसकी चलाता है। फिर वह किसी की नहीं सुनता। मैं तौबा करके और गुनहगार हो गया। ठीक कहता है गुरजिएफ। ऐसी ही आदमी की दशा है। और तुमने कभी किसी चीज को न करने की कसम खाई? जब तुम क्रोध में हो, तब क्रोध की चलती है। यह तुम्हारा एक कसम खाते ही उसमें और रस आने लगता है। खाकर कसम नौकर है। और क्रोध में तुम ऐसी बातें कर जाते हो कि घड़ीभर देखो! चाहे इसके पहले कोई रस भी न रहा हो। कसम खाकर बाद जब क्रोध का राज्य जा चुका होगा, तब तुम पछताओगे। | देखो... क्योंकि तब दूसरा मालिक आ गया। वह मालिक कहेगा, 'यह की तर्के-मय तो मायले-पिंदार हो गया। क्या गलती कर ली? बड़ी भूल हो गई।' क्षमा मांगोगे। और जैसे ही कोई चीज त्यागी कि तुम्हारी कल्पना घोड़ों पर इस दूसरे मालिक के प्रभाव में तुम किसी को कह आओगे कि | सवार हो जाती है। और वह सोचती है, 'अरे भोग लो! पता अब कभी क्रोध न करूंगा। नहीं कितना मजा है, नहीं तो दुनिया क्यों इसके खिलाफ है? फिर गलती कर रहे हो। क्योंकि वह जो क्रोध करनेवाला है, कुछ न कुछ राज तो होगा ही। नहीं तो इतने लोग समझानेवाले जब मालकियत में फिर आयेगा, तब यह पश्चात्ताप काम न | हैं, कोई छोड़ता नहीं।' कल्पना घोड़े पर सवार हो जायेगी। आयेगा: यह आश्वासन काम न आयेगा। यह किसी और के | मैं तौबा करके और गनहगार हो गया। द्वारा दिया गया आश्वासन क्रोध क्यों पूरा करेगा? पश्चात्ताप करो। तुम कहो, अब कभी न करेंगे। और तत्क्षण कामवासना उठती है तो तुम उसके प्रभाव में हो जाते हो। फिर तुम्हारे भीतर गुनाह उठने लगेंगे। करने की आकांक्षा प्रबल सुबह उठकर मंदिर चले जाते हो, ब्रह्मचर्य की कसम खाने लगते होगी, जब भी तुम कहोगे अब न करेंगे। हो। भूल गये सांझ। फिर आयेगी सांझ। फिर कामवासना । उपवास करके देखो! उस दिन जैसा भोजन में रस लोगे, वैसा सिंहासन पर बैठेगी। फिर तुम अड़चन में पड़ोगे। कभी न लिया था। उस दिन भोजन ही भोजन करोगे। रात-दिन समझने की कोशिश करो। इन मनों में से कोई भी मन तुम्हारा | सपने ही सपने आयेंगे। जिस चीज को छोड़ोगे उसी की तरफ नहीं है। तुम तो अभी सोये हो। इन मनों में से किसी को चुनना कल्पना रसलीन होने लगती है। नहीं है, क्योंकि इनमें से चुना हुआ तो ठीक वैसा ही रहेगा जैसा संयमी बड़े अंतर्युद्ध में पड़ जाता है, गृहयुद्ध में पड़ जाता है। लोकतांत्रिक सरकार होती है-बहुमत की। लेकिन बहुमत का | ज्ञानी और संयमी में फर्क है। महावीर का जोर ज्ञानी पर है। कोई भरोसा है? आज जो इस पार्टी में है, कल दूसरी पार्टी में हो| महावीर कहते हैं, 'मैं एक है, शुद्ध हूं, ममता-रहित हूं तथा जाता है। आज जो मित्र है, कल शत्रु हो जाता है। वहां तो ज्ञान-दर्शन से परिपूर्ण हूं। अपने इस शुद्ध स्वभाव में स्थित और रूप-रंग रोज बदलते रहते हैं। खेल चलता रहता है। जो तन्मय होकर मैं इन सब परकीय भावों का क्षय करता हूं।' सरकार बनी दिखाई पड़ती है, वह किसी भी क्षण गिर जाती है। महावीर यह नहीं कहते कि मैं परकीय भावों का क्षय करके जिनकी कभी आशा न थी, वे सरकार में पहुंच जाते हैं, मालिक अपने स्वभाव में थिर होता हूं। महावीर कहते हैं, अपने स्वभाव बन जाते हैं। यह चलता रहता है। यह तो सागर में उठती लहरों में थिर होता हूं, इसलिए परकीय भावों का क्षय होता। जैसा खेल है। ___ 'मैं अपने स्वभाव में स्थित और तन्मय होकर...।' तो अगर तुमने कोई कसम खाकर किसी तरह बहमत बना असली सवाल उस एक में तन्मय हो जाने का है; संसार के लिया, तो तुम मुश्किल में रहोगे। वह अल्पमत सदा उपद्रव | त्याग का कम, सत्य के अनुभव, सत्य के रस का ज्यादा है, सत्य खड़ा करता रहेगा। वह आंदोलन चलायेगा। वह झंझट पैदा | के स्वाद का ज्यादा है। करेगा। वह बहुमत को खिसकायेगा। संयमी और ज्ञानी के | 'मैं एक हूं...।' जीवन में यही फर्क है। संयमी अपने भीतर एक लोकतांत्रिक कौन है तुम्हारे भीतर एक? वासनाएं तो अनेक हैं? विचार 4261 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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