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जिन सूत्र भाग: 1
हूं। लेकिन आपके पास ला देने पर वह आदमी मुझसे दूर हो जाता है; जैसे बच्चा बड़ा होने पर मां से दूर निकल जाता है। और तब अपने घर वापिस होते समय मुझे एक तड़प-सी होती है। लेकिन 'तेरी जो मर्जी' कहके गा पड़ती हूं : राम श्री राम,
जय जय राम ।
'प्रतिभा' ने पूछा है।
ऐसा होगा, स्वाभाविक है । जिन्होंने मुझे थोड़ा पीया है, उनके मन में यह भाव जगना स्वाभाविक है कि कोई और भी मुझे पीए। जिसे कोई सरोवर मिल गया है, राह पर किसी प्यासे को देखकर उसका हाथ पकड़ेगा, सरोवर तक ले आना चाहेगा। कभी-कभी तो जबर्दस्ती भी करता हुआ मालूम पड़ेगा। क्योंकि वह जानता है, अभी तुम भला नाराज हो जाओ, सरोवर पर पहुंचकर तुम भी कहोगे, अच्छा किया जबर्दस्ती की।
प्रेम बांटना चाहता है। जो भी मिलता है प्रेम को, बांटना चाहता है। कहीं अगर परमात्मा की खुशबू मिली है तो तुम बांटना चाहोगे। दोनों छोर से मशाल की तरह जलकर बांटना चाहोगे। इसलिए जहां भी कहीं कोई प्यासा मिल जायेगा, तुम्हारे जीवन में एक पूर आ जायेगा। तुम सब कुछ उसमें उंडेल देना चाहोगे। और स्वभावतः तुम जब उसे मेरे पास ले आओगे, तो एक थोड़ी-सी कमी भी मालूम होगी। वह थोड़ी-सी जो अस्मिता बची है, उसके कारण मालूम होती है। क्योंकि जब तुम उसे समझाकर मेरे पास ले आये, तब एक अर्थ में वह तुम्हारे पीछे चल रहा था, तुम्हारी मानकर चला था। जब तुम उसे मेरे पास ला रहे थे तब वह तुमसे आंदोलित और प्रभावित था । फिर जब तुम उसे मेरे पास ले आओगे, स्वभावतः इसलिए तुम उसे लाये भी हो मेरे पास कि वह मुझसे जुड़ जाये, अब वह तुम्हारे पीछे न चलेगा। उसका मुझसे सीधा संबंध हो जायेगा। यही तुमने चाहा भी था, यही तुम्हारी प्रार्थना भी थी। लेकिन फिर भी अस्मिता को थोड़ा-सा धक्का लगेगा कि अरे ! इसको सरोवर मिल गया तो हमें भूल ही गया ! इस अस्मिता को भी जाने देना और गीत बिलकुल ठीक है : 'राम श्री राम, जय जय राम'। इसको गुनगुनाना ! अस्मिता को इतना भी मत बचाना ।
अच्छा अहंकार भी होता है। ध्यान रखना! बुरा अहंकार तो होता ही है, अच्छा अहंकार भी होता है। पवित्र अस्मिता भी
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होती है -- 'पायस इगो' । जब तुम कोई अच्छा काम करते हो तो एक बड़ा सदभाव उठता है कि कुछ किया, कुछ अच्छा किया ! उसे भी छोड़ना है। अंततः उसे भी छोड़ना है। तो अभी जब किसी को ले आयी होगी 'प्रतिभा' और उसे लगा होगा कि वह तो सरोवर से जुड़ गया, अब उसकी कोई फिक्र नहीं करता, तो अभी जो 'राम श्री राम, जय जय राम' कहा है, वह थोड़ी मजबूरी में कहा है, कि ठीक है, अब जो तेरी मर्जी! नहीं, इसको आनंद भाव से कहना बड़ा फर्क पड़ जायेगा। अभी तो कहा है कि जो तेरी मर्जी! लेकिन जब हम कहते हैं 'जो तेरी मर्जी', तभी हम बता रहे हैं कि यह हमारी मर्जी न थी । जो तेरी मर्जी का मतलब ही यही होता है कि ठीक है ! हमारी मर्जी तो न थी यह, लेकिन अब तुम्हारी है तो ठीक है। राम श्री राम, जय जय राम! मगर इसमें मजबूरी है।
नहीं, अब दुबारा जब किसी को लाओ, तो पहले से ही इस भाव से ही लाना है, जानकर ही लाना है, कि वह सरोवर में डूब जाये और तुम्हें भूल जाये। क्योंकि तुम्हें याद रखे तो सरोवर में डूबने में बाधा पड़ेगी। और जब वह सरोवर में डूब जाये, तुम्हें भूल जाये, तो धन्यवाद देना। ऐसा मत कहना कि जो तेरी मर्जी! कहना, 'धन्यवाद ! मेरी प्रार्थना पूरी हुई। इसीलिए तो लाई थी ।' और तब फिर गुनगुनाना : 'राम श्री राम, जय जय राम !' और तब उसका भाव बिलकुल अलग होगा। शब्द तो सभी वही होते हैं भाव बड़े बदल जाते हैं । तब यह अहोभाव होगा । तब यह परमात्मा को धन्यवाद है कि ठीक! तूने बड़ी कृपा की कि मुझे इतनी भी अस्मिता न दी कि मैं रुकावट बनूं।
मेरे पास तुम जब मित्रों को लाओगे तो सभी को ऐसा होगा । मगर पहले से ही यह होशपूर्वक लाना है कि ला ही इसलिए रहे हो कि वे तुम्हें भूलें ।
और यह शिक्षण जरूरी है, क्योंकि यही मुझे भी करना पड़ता है। एक दिन मुझे भी कहना पड़ता है: राम श्री राम, जय जय राम ! क्योंकि मैं जिसकी तरफ ले जा रहा एक दिन वह गये... तो यह प्रशिक्षण जरूरी है। यह जो 'प्रतिभा' ने कहा है, मेरा भी अनुभव है। मगर यही सारी चेष्टा है। यह सफल हो, यही सौभाग्य है।
इस कारण संकोच मत करना कि अब क्या लाना किसी को, जिसको ले जाओ वही दगा दे जाता है। इस कारण रोकना मत,
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