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________________ RE आत्मा परम आधार है इधर भी सीमा है, उधर भी सीमा है; इधर रास्ता है, उधर नदी आत्मा में ही 'है' पन छिपा है। वह उसका स्वभाव ही है। है। कुछ सीमा हो सकती है। जहां-जहां सीमा हो सकती है, उसे बाहर से रखने की जरूरत नहीं। कर्सी में है' पन नहीं छिपा वहां परिभाषा हो सकती है। हम कह सकते हैं, इन सीमाओं के है। वह उसका स्वभाव नहीं है। एक बार शून्य से आई है, एक भीतर जो है, वह मेरा मकान है। बार फिर शून्य में चली जायेगी। आत्मा न आई है न गई है, तो लेकिन आत्मा की या सत्य की तो कोई सीमा नहीं है। आत्मा परिभाषा नहीं हो सकती। कहां है-यह कहना तो कठिन है; क्योंकि 'कहां' का तो फिर आत्मा के संबंध में क्या हो सकता है? महावीर कहते हैं, मतलब होगाः स्थान-निर्देश। और आत्मा स्थान में नहीं है। वर्णन हो सकता है। वर्णन बड़ी अलग बात है। डिसक्रिप्शन; आत्मा कब है-यह भी कहना संभव नहीं है; क्योंकि 'कब' | डेफिनीशन नहीं। का तो अर्थ होगा : समय में निर्देश। आत्मा समय में भी नहीं है। वर्णन का अर्थ होता है: हम सिर्फ इशारे कर सकते हैं कि ऐसा आत्मा कालातीत है, क्षेत्रातीत है। न वह समय के भीतर है न है, ऐसा है, ऐसा है। जिन्होंने जाना है, वे ही वर्णन कर सकते स्थान के भीतर है-और दो ही उपाय हैं जिसके द्वारा परिभाषा हैं। जिन्होंने नहीं जाना है, वे जानने की यात्रा पर जा सकते हैं; होती है। लेकिन वर्णन को सुनकर ही उनकी समझ में कुछ भी न आयेगा। जैसे अगर कोई पूछे कि तुम कब पैदा हुए, कहां पैदा हुए, तो | वर्णन से प्यास पैदा हो सकती है। परिभाषा हो जाती है। तुम कहते हो, फलां गांव में स्थान बता तुम अंधेरे में हो, तो प्रकाश का मैं वर्णन कर सकता हूं: उससे दिया; फलां घर में, फलां परिवार में स्थान बता दिया; फलां तुम्हारी समझ में नहीं आयेगा कि प्रकाश क्या है। इतना ही समझ तारीख को, सुबह या सांझ या दुपहर, फलां घड़ी-मुहूर्त में आयेगा-वह भी अगर तुम साहसी हो, दांव पर लगाने की में-समय बता दिया। परिभाषा हो गई। समय और स्थान का | हिम्मत रखते हो, जोखिम का बल है और अभियान पर निकलने ठीक-ठीक निर्देश कर दिया। तो जहां समय और स्थान की अभीप्सा है तो इतना ही समझ में आयेगा कि कुछ है जो | एक-दूसरे को काटते हैं, दोनों की रेखायें जहां कटती हैं, वह बिंदु | मैंने अब तक नहीं जाना; और यह आदमी जो इसे जान चका है. तुम्हारी परिभाषा हो गई। | बड़ा आनंदित मालूम होता है, प्रसन्न मालूम होता है; मैं भी लेकिन आत्मा का न तो कभी जन्म हुआ, न कभी अंत होता, न जानूं। और निश्चित ही यह आदमी इस अंधेरे को भी जानता है, किसी स्थान में आत्मा को कभी पाया गया है, न वह स्थान में क्योंकि मेरे पास बैठा है; और इस आदमी ने कुछ और भी जाना होती। टाइम-स्पेस, समय और स्थान दोनों के पार है, तो है जो अंधेरे से ज्यादा है; भरोसा करूं। परिभाषा कैसे? आत्मा है-ऐसा कहा जा सकता है। लेकिन इसलिए श्रद्धा का बड़ा मल्य है। विज्ञान में श्रद्धा का कोई परिभाषा नहीं की जा सकती। वस्तुतः तो 'आत्मा है', ऐसा मूल्य नहीं है; क्योंकि विज्ञान वर्णन नहीं करता, परिभाषा करता कहने में भी भल हो जाती है। क्योंकि 'है' अलग से जोड़ना है, व्याख्या करता है। तो विज्ञान में कोई श्रद्धा की जरूरत नहीं ठीक नहीं है। आत्मा के होने में ही सम्मिलित है 'है'। है। संदेह करो खूब, तो भी विज्ञान तुम्हें समझा देगा कि यह रही जैसे हम कहें कुर्सी है, तो ठीक है; क्योंकि एक दिन कुर्सी नहीं व्याख्या, यह रही परिभाषा, यह प्रयोगशाला-कर डालो। थी और एक दिन फिर नहीं हो जायेगी। दो 'नहीं' के बीच में धर्म के साथ कठिनाई है; प्रयोगशाला तो है, लेकिन भीतर है, 'है' की सुविधा है। 'है' के होने के लिए दो 'नहीं' दोनों तरफ बाहर नहीं है। मेरी प्रयोगशाला में मैं तुम्हें ले जा नहीं सकता! चाहिए। एक दिन कुर्सी नहीं थी, अब कुर्सी है; फिर एक दिन लाख चाहूं, लाख पुकारूं, लेकिन मेरी प्रयोगशाला में तुम न आ की 'नहीं' हो जायेगी-तो 'है' कहने में कुछ अर्थ है। सकोगे। तुम्हारी प्रयोगशाला में मैं नहीं आ सकता। यह आत्मा को 'है' कहने में क्या अर्थ है? सदा थी, सदा है, प्रयोगशाला अत्यंत निजी है। सदा रहेगी। जो कभी 'नहीं हुई ही नहीं, उसे 'है' भी क्या | विज्ञान की प्रयोगशालाएं सामहिक हैं। विज्ञान की टेबल पर कहना? तो आत्मा है, इसमें भी पुनरुक्ति है। रखकर कोई चीज जांची-परखी जाये तो सभी देख सकते हैं। 369 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibray.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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