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NEET
प्यास ही प्रार्थना है
से कम रहेंगे तो! बचेंगे तो! दुख ही सही, नर्क ही सही-मगर अपनी शाश्वतता खोजते हो। तुम सोचते हो, चलो और तरह मिटने को तैयार नहीं हैं।
का अमरत्व तो संभव नहीं है, इसी बहाने बच्चों में जीते रहेंगे; और जीवन का परम सत्य यही है कि जब तक तुम अपने को मेरा ही तो खून है; मेरे ही तो जीवाणु हैं! चलो यह देह न रहेगी, पकड़े हो तब तक मिटते रहोगे। और जिस दिन तुम अपने को बच्चों में जीएंगे। छोड़ दोगे और जिस दिन तुम शून्य होने को तैयार हो जाओगे, बाप बेटे में जीता है। मां बेटे में जीती है। ऐसी परंपरा बनती उसी क्षण पूर्ण घटित होता है-तत्क्षण घटित होता है। उस है। 'हम न रहेंगे, हमारा तो कोई रहेगा!' इसलिए तुम 'हमारे' क्रांति में फिर एक क्षण भी प्रतीक्षा नहीं करनी होती। तुम इधर | को पकड़ते हो। पर सारी पकड़ भीतर 'में' की है। जिसने शून्य होने को तैयार हुए कि तुम पूर्ण हुए। फिर कोई बाधा न समझने की कोशिश की, वह धन को नहीं छोड़ेगा। धन छोड़ने रही। कोई भय न रहा तो बाधा कैसी? तुम जब मिटने तक को से क्या लेना-देना है! क्योंकि धन तो गौण है; असली बात तो तत्पर हो गए तो तुम्हारी कोई पकड़ न रही। जो शून्य होने को 'मैं' की पकड़ छोड़ने की है। तुम्हें राजी होना है, ऐसी घड़ी के राजी है वह धन को थोड़े ही पकड़ेगा! जिसने अपने को ही न | लिए कि जहां मैं भी न रह जाऊं, तो भी क्या हर्ज है! क्या हर्ज पकड़ा वह धन को क्या पकड़ेगा! सारी पकड़ के भीतर पहली है? क्या मिटेगा? क्या खो जाएगा? तुम्हारे हाथ में क्या है? पकड़ तो अपनी पकड़ है। तुम धन को किसलिए पकड़ते हो? तुम मुट्ठी खोलने से डरते हो, क्योंकि मैं कहता हूं मुट्ठी खाली है। धन के लिए ही थोड़ी कोई धन को पकड़ता है-अपने को तुम कहते हो, इससे तो मुट्ठी बंधी ही रहे, चाहे तकलीफ होती है पकड़ता है, इसलिए धन को पकड़ता है। क्योंकि धन सुरक्षा देता बांधे रखने में, होती रहे-कम से कम बंधी तो है! लोग कहते है, भविष्य में व्यवस्था देता है। कल घबड़ाहट न होगी, तिजोरी हैं, बंधी लाख की! खाली है, मगर कहते हैं, बंधी लाख की! है, बैंक में बैलेंस है। बीमारी आए, बुढ़ापा आए, कुछ भी हो, । क्योंकि जो दिखाई ही नहीं पड़ता तो मान लो लाख हैं, करोड़ हैं, तो धन सुरक्षा का आश्वासन देता है।
जो भी मानना है मान लो। खोलो, लाख गए! मुट्ठी खाली है! तुम अपने को पकड़ते हो, इसलिए धन को पकड़ते हो। तुम | लेकिन तुम बांधो कि खोलो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, मुट्ठी अपने को पकड़ते हो, इसलिए पत्नी को, बच्चे को पकड़ते हो। खाली है।
उपनिषद कहते हैं, कोई पत्नी को थोड़े ही प्रेम करता है; लोग तुम कहते हो, इससे तो दुख ही बेहतर; सुख का आभास ही अपने को प्रेम करते हैं, इसलिए पत्नी को प्रेम करते हैं। पत्नी तो बेहतर-कम से कम हैं तो! यह अनुयायी की आवाज है। बहाना है।
जिसने पूछा है वह जैन है। यह महावीर की आवाज नहीं है। तुम कहते हो कि तुमसे मुझे प्रेम है। लेकिन तुम्हारे प्रेम का महावीर तो कहते ही यही हैं कि छोड़ो परिग्रह, छोड़ो संसार, अर्थ कितना है? क्या है अर्थ? इतना ही अर्थ है कि तुम्हारे होने छोड़ो वासना; ताकि इस सब छोड़ने में, जो इन सब के पीछे के कारण मैं प्रफुल्लित होता है; तुम हो तो मैं सुख पाता छिपा है और अपने को बचा रहा है, वह तुम्हें प्रगट हो जाए कि हूं-लेकिन तुम साधन हो, साध्य तो मैं ही हूं। तुम अपने बच्चों मूल में तो तुम अहंकार को बचा रहे हो, अपने को बचा रहे हो। को प्रेम करते हो, उनको पकड़ते हो-किसलिए? बुढ़ापे के सब बहाने छोड़ो तो साफ दिखाई पड़ जाएगा कि अपने को सहारे हैं। तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं के लिए कंधा देंगे। भविष्य में बचाने में लगे हो! लेकिन बचाने में सार क्या है? और तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करेंगे। तम तो पूरा न कर बचा-बचाकर तम बचाओगे कैसे? या तो तम बचोगे ही. अगर पाओगे, यह तुम्हें पता है। महत्वाकांक्षाएं अनंत हैं। वासनाएं वह तुम्हारा स्वभाव है और अगर स्वभाव में ही अमरत्व नहीं है दुष्पूर हैं-बहुत हैं। जीवन बड़ा छोटा है : गया-गया, हाथ से तो तुम लाख बचाओ, बच न सकोगे। बहा-बहा है! तुम तो पूरा न कर पाओगे, तुम्हारे बच्चे तुम्हारी इसलिए महावीर कहते हैं : छोड़ो यह आपा-धापी! छोड़ो यह याद पूरी करेंगे; परंपरा को जारी रखेंगे; बाप का नाम बचाएंगे। बचने की आकांक्षा! यह जीवेषणा छोड़ो। जीवेषणा सभी पापों तुम तो जा चुके होओगे, लेकिन बच्चों के सहारे किसी तरह तुम का आधार है। मैं जीना चाहता है. चाहे फिर दसरों को मारकर
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