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________________ जिन सत्र भागः 11 उनका जीवन अभय हुआ है। तुम घबड़ाए हो, धन छिन न | है, वह कुछ और है। तुम्हारी समझ के संग्रह का नाम तुम्हारा जाए! तो धन भी हो, धन से ज्यादा तो घबड़ाहट आ जाती है कि शास्त्र, तुम्हारा धर्म, तुम्हारी सभ्यता, संस्कृति है। छिन न जाए! महावीर ने धन छोड़ा, इतना ही मत देखो; साथ ही निश्चित ही, कल ही मैं आपसे कहता था कि चौबीसों तीर्थंकर घबड़ाहट भी तिरोहित हो गई है। जब धन ही न रहा तो छिनने की | जैनों के क्षत्रिय हैं। युद्ध के मैदान से आए। युद्ध की पीड़ा और बात ही कहां उठती है! महावीर ने वह सब छोड़ दिया जिसके युद्ध की हिंसा और युद्ध की व्यर्थता देखकर आए। उनकी साथ भय आता हो; वह सब छोड़ दिया जिसके साथ चिंता अहिंसा भय की अहिंसा नहीं है, कायर की अहिंसा नहीं आती हो। है-महावीरों की अहिंसा है। देखकर कि हिंसा में तो कायरता लेकिन ध्यान रखना, छोड़ने पर जोर नहीं है। पाया! ही है, उन्होंने हिंसा का त्याग किया। लेकिन फिर क्या हुआ? चिंतामुक्त जीवन-दशा पायी। अपूर्व शांति पायी। अभय जैन धर्म बना तो वणिकों से, वैश्यों से। जैनियों में तुम्हें क्षत्रिय न पाया। सत्य प्रगट हुआ महावीर से। ऐसा बहुत कम हुआ है। मिलेगा। सब दुकानदार हैं। कैसी दुर्घटना घटी। जिनके सब महावीर को अगर गौर से समझो तो पहली बात तो यह तीर्थंकर क्षत्रिय हैं, उनके सब अनुयायी दुकानदार हैं! नहीं, समझनी चाहिए कि महावीर के पास कोई भी कारण नहीं है। जिन्होंने पकड़ा है उन्होंने कुछ और अर्थ से पकड़ा है। उन्होंने जीसस का सम्मान है-सूली कारण है। जीसस अगर सूली पर कहा, न किसी को मारेंगे, न कोई हमें मारेगा; न झगड़ा-झांसा न चढ़े होते, न चढ़ाए गए होते, ईसाइयत पैदा न होती। इसलिए | करेंगे, न पिटेंगे। उन्होंने 'अहिंसा परमोधर्मः' का उदघोष क्रास प्रतीक बन गया। जीसस के दुख ने करोड़ों लोगों की | किया। उन्होंने कहा, यह बात बड़ी अच्छी है। यह तो ढाल की सहानुभूति को आकर्षित कर लिया। दुख सदा सहानुभूति | तरह है कि हम मरने-मारने में विश्वास ही नहीं रखते। आकर्षित करता है। मगर जरा जैनियों की तरफ देखो, इनकी अहिंसा में अभय है? कृष्ण की बांसुरी के स्वर हैं। पशु भी नाच उठे, पक्षी भी भय ही भय को तिलमिलाता पाओगे। ये भय के कारण आनंदित हुए, दौड़ पड़े स्त्री-पुरुष! महावीर के पास क्या है? न अहिंसक हैं। बांसुरी है, न सूली है। महावीर निपट खड़े हैं नग्न, वस्त्र भी ये डरे हैं कि कोई मारे न, कोई लूटे न, कोई खसोटे न, कोई नहीं। कुछ भी नहीं है, जिस कारण लोग महावीर के पास जाएं। झंझट न करे, तो स्वाभाविक है कि अहिंसा की चर्चा करो। फिर भी लोग गए। फिर भी उन चरणों में लोग झुके हैं। महावीर की अहिंसा मृत्यु के पार जो अनुभव है उससे आती कृष्ण ने तो कहा : 'सर्वधर्मान परित्यज्य, मामेकं शरणं व्रज। है। जैनों की जो अहिंसा है, जीवन का ही अनुभव नहीं, मृत्यु के सब छोड़, मेरी शरण आ!' तो भी अर्जुन झिझका-झिझका अनुभव की तो बात दूर! शरण आया। उसकी झिझक से ही तो गीता पैदा हुई। संदेह करता ही चला गया। एक जैन ने प्रश्न पूछा है कि 'आप कहते हैं कि वह परम महावीर ने कहा : 'किसी की शरण जाने की कोई भी जरूरत | अवस्था तो शून्य की है, तो ऐसे शून्य को पाकर क्या करेंगे? नहीं है। मेरी शरण मत आओ, अपनी शरण जाओ!' फिर भी इससे तो यही जीवन ठीक है। कम से कम सुख-दुख का लोग महावीर के चरणों में आए, जरूर कुछ महिमापूर्ण घटित | अनुभव तो होता है!' । हुआ है! कुछ अनूठा लोगों को दिखा है! जैन धर्म से खो गई वह अनूठी बात–वह दूसरी बात है। शून्य का डर! इससे वे स्वर्ग-नर्क, सुख-दुख, कुछ भी हो उससे महावीर को मत जोड़ो। जैन धर्म तुम्हारा है। जैन धर्म झेलने को तैयार हैं; मिटने को तैयार नहीं हैं। शून्य यानी तुम्हारी व्याख्या है महावीर के संबंध में। जैन धर्म वह नहीं है जो | मिटना! न तुम यहां मिटने को तैयार हो, न तुम वहां मिटने को महावीर ने दिया है। जैन धर्म वह है जो तुमने लिया है। महावीर तैयार हो। बचना चाहते हो। बचाव भय की अभिव्यक्ति है। ने जो कहा है, वह तो कुछ और है। तुमने जो पकड़ा है, समझा अब जिन मित्र ने पूछा है, दुख को भी पकड़ने को तैयार हैं, कम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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