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________________ जिन सूत्र भाग : 1 जुड़ना ही तो संसार है। संसार से टूट जाने में असली बात है। निकले। तो नोह ने अपनी पत्नी से पूछा, 'यह मामला क्या है? तो अहिंसा से संबंध तोड़ा जा सकता है, जोड़ा तो नहीं जा मैंने पहले कहा था कि दो-दो लेना, एक-एक लेना।' उसने सकता। अहिंसा सिकोड़ सकती है, फैला तो नहीं सकती। कहा, 'लिये तो इतने ही थे, मगर इतने हो गए सात दिन में।' । अहिंसा तुम्हें अपने में बंद कर देगी, खोलेगी तो नहीं। अहिंसा में एक जोड़ा काफी है। उतने बचाने से सारी प्रकृति, सारी पृथ्वी कोई द्वार-दरवाजे नहीं हैं, दीवाल है। इसलिए जितने तुम | बच गई। अहिंसा जैसे शब्दों से भरोगे, उतने ही तुम पाते जाओगे कि तुम | जीवन का स्वभाव फैलाव है। प्रेम में फैलाव है; अहिंसा में सूखने लगे, तुम्हारे पत्ते कुम्हलाने लगे, शाखाएं गिरने लगीं, तुम सिकुड़ाव है। इसलिए मैं तो प्रेम शब्द को ही पसंद करता हूं। सिकुड़ने लगे, तुम लौटने लगे। तुम्हारा फैलाव खो गया। अहिंसा प्रेम का एक छोटा-सा अंग है। जिससे हम प्रेम करते हैं, तुम्हारे जीवन का अभियान खो गया। उसे हम दुख नहीं देना चाहते—यह बात ही साफ है। जिससे तो अगर जैन सिकुड़ गये तो कुछ आकस्मिक नहीं है। फैलने हमारा प्रेम का संबंध है, उससे हमारा अहिंसा का संबंध तो हो ही का उपाय न था। गया। लेकिन जिससे हमारा अहिंसा का संबंध है, उससे प्रेम का नकार को कभी जीवन की व्यवस्था मत बनाना, क्योंकि जीवन | संबंध हो गया—यह जरूरी नहीं है। प्रेम अहिंसा से बड़ी बात का स्वभाव फैलाव है। यहां सब चीजें फैलती हैं। एक छोटे से है। जिससे हम प्रेम करते हैं, उसे हम कैसे दुख पहुंचायेंगे? उसे बीज को डाल दो, एक बड़ा वृक्ष हो जाता है। उस वृक्ष में फिर दुख पहुंचाकर तो अपने को ही दुख पहुंच जाता है। भूल-चूक से करोड़ों बीज लग जाते हैं। एक बीज करोड़ बीज हो जाता है। अगर पहुंच भी जाता हो, तो भी हम क्षमा-याची होते हैं, सुधार करोड बीजों को फैला दो, परी पथ्वी वक्षों से भर जायेगी। एक | की कोशिश करते हैं। अहिंसा अपने से सध आती है: जहां प्रेम बीज से यह पूरी पृथ्वी हरी हो सकती है। आया, अहिंसा पीछे से अपने आप आ जाती है। तुम जरा देखो तो जीवन का ढंग। ईसाई कहते हैं, अदम और तो मैं तो कहता हूं, प्रेम को बढ़ाओ। वह व्यक्तियों पर सीमित हव्वा, एक जोड़ा भगवान ने पैदा किया था, फिर उससे ये सारे न रहे; फैलता जाये, वृक्षों, पशु-पक्षियों को भी घेर ले। चार अरब मनुष्य पैदा हुए। बस एक जोड़ा काफी था। और जब मैं कहता हूं, परमात्मा को प्रेम करो, तो मेरा इतना ही यहूदियों की कथा है कि परमात्मा बहुत नाराज हो गया था एक अर्थ है कि यह जो दिखाई पड़ रहा है-दृश्य-इसको इतना बार। लोग भ्रष्ट हो गये थे। तो उसने सारी पृथ्वी को महाप्रलय | प्रेम करो कि इस सभी में तुम्हें अदृश्य की प्रतीति होने लगे। में डुबा दिया। लेकिन एक भक्त था उसका : नोह। उसने नोह से | पत्ते-पत्ते में वह दिखाई पड़ने लगे। कहा कि तुझे हम बचा लेंगे। लेकिन नोह ने प्रार्थना की कि माना अहिंसा अपने से आ जायेगी। अहिंसा के लिए अलग से कि लोग बुरे हैं, गलत हो गये हैं; लेकिन इतने नाराज न हों, कुछ शास्त्र बनाने की कोई जरूरत नहीं है। तो बचा लें, बीज तो बचा लें। तो परमात्मा ने कहा, 'अच्छा! तू माना कि प्रेम शब्द के अब भी गलत अर्थ लिये जायेंगे, लेकिन एक-एक पशुओं का एक-एक जोड़ा अपनी नाव में रख लेना। फिर भी मैं मानता हूं कि प्रेम ज्यादा जीवंत शब्द है। गलत भी वह नाव भर बचेगी।' बस एक जोड़ा काफी था। लेकिन बड़ी अर्थ लिये जायेंगे, तो भी चुनने योग्य है। गलत अर्थ तो अहिंसा मधुर कहानी है। नोह और उसकी पत्नी दरवाजे पर खड़े हो गये के भी लिये गये। और शब्द नकारात्मक था, मुर्दा था तो और नाव में, उन्होंने कहा, आ जाओ एक-एक जोड़ा। तो हाथी गलत अर्थ मुर्दे पर इकट्ठे हुए। बड़ी सड़ांध पैदा हो गई। जीवंत आया, ऊंट आये, घोड़े आये, गधे आये-सब आये। फिर कोई शब्द हो तो थोड़ा-बहुत गलत अर्थ लेने में बाधा डालेगा, जब प्रलय समाप्त हो गया, सात दिन के बाद सारी पृथ्वी डूब | इनकार करेगा। एक पत्थर पड़ा हो, उसको तुम छैनी उठाकर गई, सिर्फ नोह की नाव बची। फिर पृथ्वी उभरी, फिर किनारे | काटने लगो, तो वह कुछ बाधा न डालेगा। एक जिंदा बच्चा हो नाव लगी। फिर वे दोनों दरवाजे पर खड़े हो गये, फिर एक-एक | तो उछलेगा-कूदेगा, चीखेगा-चिल्लायेगा। मोहल्ले-पड़ोस के को निकाला। लेकिन वे बड़े हैरान हुए, चूहे कोई दस-पच्चीस लोगों को इकट्ठा कर लेगा अगर छैनी उठाओगे उसके ऊपर। 350/ Janin Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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