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________________ उठो, जागो--सुबह करीब है। जीता है भाषा से, जुड़ता है भाषा से। फिर भी उसकी प्रेयसी उसे परमात्मा मानने लगती है। तो अगर संस्कृत का त्याग करने का परिणाम यह हुआ कि जैन हिंदू धर्म | प्रेम शब्द का बहुत उपयोग करो तो परमात्मा को इनकार न कर से बिलकुल साफ अलग टूट गये। पाली का प्रयोग करने के सकोगे। क्योंकि प्रेम शब्द का इशारा ही और की तरफ है। प्रेम कारण बौद्ध जैनों से भी टूट गये, ब्राह्मणों से भी टूट गये। तीर है, निशाना कहीं और है : निकलेगा तुम्हारे हृदय से, लगेगा दोनों ने वर्गों का विरोध किया, तो ही तो वे आकर्षित कर सके किसी और हृदय में। वैश्य को। यद्यपि वैश्य आकर्षित हो गया, लेकिन बड़े मजे की तो प्रेम तो खतरनाक है—ध्यान। प्रेम तो खतरनाक बातें हैं, दुनिया में संस्कार बड़ी मुश्किल से जाते हैं। अभी भी है-अहिंसा। प्रेम तो खतरनाक है, क्योंकि प्रेम के साथ जैन मंदिर में शूद्र को प्रवेश नहीं है। और महावीर कहते हैं, न परमात्मा आता है और परमात्मा के साथ हिंदुओं की पूरी कोई शूद्र है, न कोई ब्राह्मण है, न कोई वैश्य है, न कोई क्षत्रिय जीवन-चिंतना जुड़ी है। इसलिए महावीर को परमात्मा भी है। उनकी सारी क्रांति वर्ण-विरोधी है। लेकिन फिर भी वर्ण | इनकार कर देना पड़ा, प्रेम भी इनकार कर देना पड़ा, प्रार्थना भी जाता नहीं। इनकार कर देनी पड़ी, पूजा, अर्चना, धूप-दीप सब इनकार कर तुमने देखा, अगर कोई ब्राह्मण ईसाई हो जाये, तो वह ईसाई देना पड़ा। सब भांति व्यक्ति अपने में भीतर चला जाये, बाहर होकर भी ब्राह्मण रहता है। ईसाइयों को मैं जानता हूं। उनमें कोई जाये ही नहीं। परमात्मा भी बहिर्यात्रा है। इस कारण महावीर ने अगर ब्राह्मण के वर्ग से ईसाई हुआ है और कोई अगर शूद्र के वर्ग | अहिंसा शब्द का उपयोग किया। से ईसाई हुआ है, तो वह जो ब्राह्मण ईसाई है, शूद्र ईसाई से ऊपर लेकिन अहिंसा बहुत कमजोर शब्द है; प्रेम के सामने टिकता रहता है। ब्राह्मण ईसाई शूद्र ईसाई से विवाह नहीं करता। नहीं, बहुत लंगड़ा है। उनकी जरूरत थी। उनकी मजबूरी थी। संस्कार बड़े गहरे बैठ जाते हैं! लेकिन प्रेम के पास पैर हैं। तो जब महावीर ने वर्णों की व्यवस्था तोड़ दी, तो उन्होंने तुम जरा किसी स्त्री से कहो कि मेरा तुझसे अहिंसा का संबंध आश्रम की व्यवस्था भी तोड़ दी; क्योंकि वह वर्णाश्रम एक ही हो गया है, तब तुम्हें पता चलेगा! वह दुबारा तुम्हारी शकल न प्रत्यय था—चार वर्ण, चार आश्रम। जब महावीर ने वर्ण की देखेगी। किसी स्त्री से अहिंसा का संबंध! उसका मतलब इतना व्यवस्था तोड़ी तो उन्होंने आश्रम की भी व्यवस्था तोड़ दी। यह हुआ कि हम तुम्हें मारेंगे भी नहीं, कष्ट भी न देंगे। खतम, संबंध तोड़ना जरूरी था, नहीं तो हिंदू ढांचा पकड़े रहता; उससे छूटना पूरा हो गया! दोगे क्या? यह तो न देने की बात हुई। दुख न मुश्किल था। जब तुम किसी एक सागर में पैदा होते हो तो तुम्हें दोगे, समझ में आया। मारोगे नहीं, यह भी समझ में आया। अपना द्वीप बनाना पड़ता है। तो उन्होंने कहा कि न कोई ब्रह्मचर्य | लेकिन इतने पर कोई संबंध निर्भर होते हैं? का सवाल है, न कोई गृहस्थ का सवाल है, न कोई वानप्रस्थ अहिंसा संबंध तोड़ने की व्यवस्था है, जोड़ने की नहीं। का, न कोई संन्यस्त का; और जब तुम संन्यस्त होना चाहते हो | इसलिए महावीर का अनुयायी टूट जाता है, सबसे टूट जाता है। तभी हो सकते हो। इस तरह उन्होंने दोनों ही व्यवस्थाएं तोड़ दीं। अहिंसा जोड़ ही नहीं सकती। अहिंसा में कोई सीमेंट नहीं है। फिर उन्होंने नये शब्द खोजे, नयी भाषा खोजी।। अहिंसा में योग नहीं है। प्रेम शब्द बहुत खतरनाक है। क्यों? क्योंकि प्रेम के साथ ही अब तुम चकित होओगे, महावीर ने योग शब्द का उपयोग तत्क्षण परमात्मा प्रवेश करता है। तुमने कभी देखा, एक नहीं किया। और भी तुम हैरान होओगे कि महावीर ने 'अयोग' साधारण स्त्री को भी तुम प्रेम करने लगो तो उसमें देवी का शब्द का उपयोग किया है। जुड़ना नहीं है, टूटना है, अयोग। तो आविर्भाव हो जाता है। एक स्त्री एक साधारण-से पुरुष के प्रेम जब महावीर का ज्ञानी परम अवस्था को उपलब्ध होता है तो में पड़ जाये तो उसे परमात्मा मानने लगती है। जहां प्रेम आता है, उसको वे कहते हैं, 'अयोगी, केवली'। जो सब तरह से सबसे वहां पीछे से परमात्मा आ जाता है। साधारण जीवन में, जहां कि टूटकर अकेला हो गया : अयोगी, केवली। योग पाप है, क्योंकि तुम भलीभांति जानते हो कि यह आदमी परमात्मा नहीं है, लेकिन योग में तो बात ही जुड़ने की है। जुड़ना तो है ही नहीं, क्योंकि 3491 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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