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ALL जिन सत्र भागः 1
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बीच में मत लाना।
कौन राजी होगा इस आदमी से? क्योंकि तुम चाहते हो, कुछ अगर तुम संकीर्ण हो तो तुम्हें किसी न किसी का साथ मिल | बंधी हुई लकीर मिल जाये। लेकिन महावीर कहते हैं, सभी बंधी जायेगा, क्योंकि संकीर्ण लोग चारों तरफ मौजूद हैं। मुझसे जैन लकीरें, सभी संकीर्णताएं उस परम सत्य को प्रगट नहीं कर भी नाराज हो जाता है, क्योंकि मैंने कृष्ण की बात की; मुझसे हिंदू | | पातीं। एक अर्थ में वह है और एक अर्थ में नहीं है। भी नाराज हो जाता है, क्योंकि मैंने महावीर की बात की मुझसे जैसे कोई तुमसे पूछे, शून्य है? क्या कहोगे? एक अर्थ में है; बौद्ध नाराज हो जाता है कि क्यों मैंने महावीर की चर्चा की; अगर कहो कि नहीं है तो पूरा गणित गिर जायेगा। एक अर्थ में मुझसे जैन नाराज हो जाता है कि बुद्ध की बात क्यों उठाई! है। और एक अर्थ में नहीं है, क्योंकि शून्य का मतलब ही होता है
मुझसे तो साथ-संग वही दे सकता है जिसकी नजर संकीर्ण न | कि जो नहीं है। और अगर दोनों बातें एक साथ सच हैं तो फिर हो। और मैं तुमसे यह कहना चाहता हूं कि मैं परंपरा के भी पक्ष तीसरी बात भी ठीक है कि दोनों है। लेकिन दोनों बातें एक साथ में हूं और क्रांति के भी पक्ष में हूं। तब और अड़चन हो जाती है। सच कैसे हो सकती हैं? कोई चीज या तो होती है या नहीं होती। तब परंपरावादी मुझसे नाराज हो जाता है कि क्रांति की तुम बात | तो महावीर कहते हैं, दोनों असत्य भी हैं। ऐसा वे बढ़ते चले करते हो; और क्रांतिवादी नाराज हो जायेगा कि तुम परंपरा की जाते हैं। और प्रत्येक वक्तव्य के साथ वे स्यात लगाते हैं, बात करते हो। लेकिन मैं असल में चाहता हूं कि तुम्हारी नजर परहैप्स। यह बड़ी अनूठी बात है। वे कहते हैं, स्यात।। पर कोई भी सीमा न रह जाये; तुम्हारी सब सीमाएं टूट जाएं; तुम | तुम सुनने आते हो कोई मत। तुम अनिश्चित हो। तुम्हें पता विशाल हो जाओ; तुम खुले आकाश के नीचे खड़े हो जाओ; नहीं, क्या है, क्या नहीं है। तुम चाहते हो, कोई आदमी जो कोई घेरा न रहे! बड़े से बड़ा घेरा भी आखिर घेरा है। और टेबिल ठोककर कह दे कि हां, ईश्वर है। और इतने जोर से कहे आत्मा का तभी जन्म होता है जब तुम्हारी दृष्टि सभी दृष्टियों से कि तुम घबड़ा जाओ और मान लो। लेकिन महावीर कहते हैं, मुक्त हो जाती है। उस अवस्था को महावीर ने सम्यक दृष्टि कहा | स्यात; वे तुम्हें सांत्वना नहीं देते। वे कहते हैं, हो भी सकता है, है-जब कोई दृष्टि नहीं पकड़ती।
न भी हो। इसमें कोई झिझक नहीं है। इसलिए महावीर ने अपने विचार-दर्शन को अनेकांत कहा है। अनेकों को ऐसा लगेगा, शायद महावीर को पता नहीं है। अनेकांत का अर्थ होता है। जिसने कोई एकांतिक दृष्टि नहीं कहते हैं 'शायद'? लेकिन महावीर को पता है, इसलिए कहते पकड़ी। महावीर ने जिस दर्शन को जन्म दिया, उसका नाम हैं स्यात। क्योंकि जो पता है वह इतना बड़ा है कि उसके संबंध में स्यातवाद है। तुम महावीर से कुछ पूछो तो वे सात भंगियों में कोई भी वक्तव्य एकांगी हो जाता है। उसके संबंध में सभी उत्तर देते हैं। तुम उनसे पूछो, ईश्वर है? तो वे कहते हैं, है; और वक्तव्य एक साथ ही सार्थक हो सकते हैं। तब एक वक्तव्य तत्क्षण कहते हैं, नहीं है। और वे कहते हैं, दोनों है, और कहते हैं | दूसरे वक्तव्य को काटता जाता है। तुम्हारे पास कुछ सिद्धांत दोनों नहीं है। और ऐसा उत्तर देते चले जाते हैं। सात दृष्टियां हो नहीं बचता, आखिर में तुम ही बचते हो। तुम्हारी बुद्धि के पास सकती हैं ईश्वर के बाबत, वे सातों दृष्टियों का एक साथ उपयोग कोई दृष्टिकोण नहीं बचता, केवल देखने की क्षमता बचती है। करते हैं। वे तुम्हें कोई जगह नहीं देना चाहते। तुमने पूछा, ईश्वर __इससे बड़ी क्रांति कभी घटी नहीं। इसलिए क्रांतिकारियों ने है? महावीर कहते हैं, है। इसके पहले कि तुम उठो और सोचो अगर महावीर को अपना चौबीसवां तीर्थंकर स्वीकार किया तो | कि बस फैसला हो गया, वे कहते हैं रुको, नहीं है। तुम सोचोगे, कुछ आश्चर्य नहीं है। तुम्हें अड़चन होती है सोचने में कि क्रांति,
चलो यह भी ठीक है-नहीं है तो भी बात साफ हो गई। उठने | मूर्ति-भंजन और उसमें भी फिर चौबीसवें तीर्थंकर! क्योंकि तुमने लगे, वे कहते हैं, बैठो, दोनों है, है भी और नहीं भी। अब तुम सोचा है और समझा है अब तक कि क्रांति कोई नई चीज है। जरा अड़चन में पड़े। लेकिन वे अभी भी नहीं रुकते. वे बढ़ते ही | क्रांति और परंपरा ऐसे हैं, जैसे तुम्हारे दो पैर। सभी क्रांतियां चले जाते हैं। कहते हैं, दोनों है। चौथा उनका उत्तर है, दोनों नहीं। अंततः परंपरा बन जाती हैं और सभी परंपराएं प्रारंभ में क्रांतियां है। और ऐसा सात भंगियों में सप्त-भंग!
थीं। क्रांति परंपरा का पहला कदम है और परंपरा क्रांति की
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