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________________ जिन सत्र भार अहिंसा है। आत्मा ही अहिंसा है और आत्मा ही हिंसा है। जब वापिस लौटता है झटके के बाद, तो उसे याद नहीं रहती कि वह आत्मा मूर्छित है तो हिंसा; जब आत्मा जाग्रत है तो अहिंसा। अभी थोड़ी देर पहले पागल था, अब उसको पागल रहना है। यह सिद्धांत का निश्चय है।' आदत से संबंध छूट गया। तो अकसर लाभ हो जाता है। अत्ता चेव अहिंसा-आत्मा ही अहिंसा, आत्मा ही हिंसा। अकसर पागल ठीक हो जाता है। लेकिन यह तुम खुद अपने यह सिद्धांत का निश्चय है। लिए कर सकते हो। 'जो अप्रमत्त है वह अहिंसक है।' और हम सब पागल हैं। और हमारा सारा व्यवहार सोया हुआ जो जागा हुआ है, जो होशपूर्वक जीता है, अवेयरनेस, सम्यक है। जिस भांति बन सके, जगाने की चेष्टा अपने को करनी है। बोध, एक-एक कदम बोधपूर्वक रखता है, विवेकपूर्वक रखता कई तरह से झटके दिये जा सकते हैं। कोई भी छोटा स्मरण भी है-वह अहिंसक है। सहयोगी हो सकता है। तुम्हें मैंने माला दी है। इसको ही एक 'जो प्रमत्त है, वह हिंसक है।' जो नशे में जी रहा है, जिसे नयी स्मरण की आदत बना लो कि जब कोई कामवासना उठने ठीक पता भी नहीं है-कहां जा रहे हैं, क्यों जा रहे हैं—चला | लगे, तत्क्षण माला को हाथ में पकड़ लेना। किसी को पता भी न जा रहा है! तुम अपने को पकड़ो। अपने को हिलाओ, डुलाओ, चलेगा। लेकिन उस माला को पकड़ना तुम्हें याद दिला देगा कि जगाओ! झटका दो! अरे! फिर गिरे, फिर गिरने को तैयार हुए। तुम्हें मैंने गैरिक वस्त्र सूफियों में एक प्रक्रिया है-झटका देने की। सूफियों का एक दिये हैं, वे याददाश्त के लिए हैं; अन्यथा गैरिक वस्त्रों से क्या वर्ग साधकों को कहता है कि जब भी तुम्हें लगे कि तंद्रा आ रही | होता जाता है! है, जोर से एक झटका शरीर को दो। जैसे कोई वृक्ष तूफान में एक आदमी शराबी है, वह संन्यास लेने आ गया था। वह हिल जाता है, आंधी में कंप जाता है, धूल-धंवास गिर जाती है, कहने लगा कि मैं शराबी हं, अब आपसे कैसे छिपाऊं! संन्यास ऐसा कभी अपने को झटका दो। भी लेना है। घबड़ाहट यही है कि गैरिक वस्त्रों में फिर तम कभी कोशिश करके देखना। क्षणभर को तम पाओगे एक शराब-घर कैसे जाऊंगा। ताजगी, एक होश, अपनी याद, मैं कौन हं! चैतन्य थोड़ी देर को __ 'वह तेरी फिक्र है। वह हमारी क्या फिक्र है? तू चिंता प्रखर होगा, झलकेगा; फिर खो जायेगा। ऐसे झटके अपने को करना। हमने अपना काम कर दिया, तुझे संन्यास दे दिया। अब देते रहना। इसमें हम क्या फिक्र करें, कहां तू जायेगा कहां नहीं। तेरे पीछे कभी-कभी छोटी चीजें काम की हो जाती हैं। बहुत छोटी चीजें हम कोई चौबीस घंटे घूमेंगे नहीं। अब तू ही निपट लेना।' काम की हो जाती हैं। तो जब भी कोई गाली दे, एक झटका | उसने कहा कि झंझट में डाल रहे हो आप। अपने को देना। इसको धीरे-धीरे अपने जीवन की व्यवस्था बना झंझट तो है। क्योंकि सोए-सोए जीते थे, जागना एक झंझट लेना। कोई गाली देगा, तुम अपने को झटका दोगे। झटका देकर है। पर वह हिम्मतवर आदमी है। साफ-सुथरा आदमी है। तुम पाओगे कि आदत से संबंध छूट गया। यही तो 'इलेक्ट्रो | अन्यथा कहने की कोई जरूरत ही नहीं थी, छिपा जाता। शराब शाक...' मनोविज्ञान इसी को कहता है। आदमी पागल हो पीते हैं, कौन कहता है। लेकिन कुछ दिन बाद आया और उसने जाता है, कोई उपाय नहीं सूझता, कैसे ठीक करें, तो उसके कहा कि मुश्किल हो गई। अब पैर रुकते हैं। ऐसा नहीं कि मस्तिष्क में बिजली दौड़ा देते हैं। होता क्या है? जब बिजली | शराब पीने का मन अब नहीं होता; होता है, लेकिन अब ये तेजी से दौड़ती है तो उसके मस्तिष्क में एक झंझावात आता है। गैरिक वस्त्र झंझट का कारण हैं। वहां पहुंच जाता हूं तो लोग एक झटका लगता है। उस झटके के कारण, वह जो पागलपन | चौंककर देखते हैं जैसे कि कोई अजूबा जानवर हूं। सिनेमा-घर उस पर सवार था, उससे उसका संबंध क्षणभर को टूट जाता है। में खड़ा था कतार में, तो चारों तरफ लोग देखने लगे। दो क्षणभर को वह भूल जाता है कि मैं पागल हूं। सातत्य टूट जाता आदमियों ने आकर पैर छू लिये तो मैं भागा कि अब यहां...जहां है, कंटीन्यूटी टूट जाती है। फिर उसे याद नहीं रहती। फिर जब लोग पैर छू रहे हैं, अब यहां सिनेमा में जाना योग्य नहीं है। 290 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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