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________________ ऐसे ही सब बैठे हैं अपने दरवाजों पर, राह में आंखें बिछाए, उसकी, जो न कभी आया है और न कभी आएगा। बंद करो दरवाजे । उठो, बहुत देख चुके यह राह ! तुम जिसकी राह देख रहे हो, वह है ही नहीं। उसके आने का कोई सवाल नहीं है। वासनाओं से जिसने आनंद के आने की राह देखी है वह गलत की राह देख रहा है, जो आ ही नहीं सकता। वासना का स्वभाव आनंद नहीं। सिर्फ आशा बंधाती है । वासना ढपोरशंख है। तुमने कहानी सुनी है? एक आदमी ने शिव की बड़ी भक्ति की। जब उसकी भक्ति पूरी हो गई, शिव ने कहा, तू वरदान मांग ले। उस आदमी ने कहा, 'मैं क्या मांगूं ! आप ही जो उचित हो, दे दें।' शिव ने उठाकर अपना शंख दे दिया और कहा, यह शंख है, इससे तू जो भी मांगेगा मिल जायेगा । तू कहेगा कि एक मकान मिल जाये, एक मकान मिल जायेगा। तू कहेगा, धनी वर्षा हो जये, धन की वर्षा हो जायेगी। उस आदमी ने तत्क्षण — शिव को तो भूल ही गया - प्रयोग किया कि हीरे-जवाहरात बरस जाएं, बरस गए। घर, आंगन, द्वार सब भर गए। यह खबर धीरे-धीरे आसपास फैलने लगी। क्योंकि अचानक वह आदमी ऐसी शान से रहने लगा कि दूर-दूर तक उसकी सुगंध फैल गई। एक संन्यासी उसके दर्शन को आया। वह रात ठहरा। संन्यासी ने कहा कि मुझे पता है कि तुम्हें शंख मिल गया है, क्योंकि मुझे भी मिल गया है। मैंने भी शिव की भक्ति की थी। मगर तुम्हारा शंख मुझे पता नहीं, मेरा शंख तो महाशंख है। इससे जितना मांगो, दुगना देता है । कहो लाख मिल जायें दो लाख ...। तो उसने कहा, देखें तुम्हारा शंख ! लोभ बढ़ा। इतना सब मिल रहा था उसे, लेकिन फिर भी लोभ पकड़ा। उसने कहा, | देखें तुम्हारा शंख । उस संन्यासी ने शंख दिखलाया और संन्यासी ने शंख से कहा कि एक करोड़ रुपये चाहिए। शंख बोला, एक क्या करोग, दो ले लो! वह भक्त तो... कहा कि बस ठीक है। आप तो संन्यासी हैं, आपको क्या करना ! छोटे शंख से भी काम चल जायेगा, छोटा मेरे पास है। छोटा तो उसने संन्यासी को दे दिया। संन्यासी तो भाग गया उसी रात उसने सुबह उठते ही से पूजा-प्रार्थना की, अपने महाशंख को निकाला और कहा, 'हो जाये करोड़ रुपयों की वर्षा!' शंख बोला, दो करोड़ की कर दूं? मगर हुआ कुछ भी नहीं। उस आदमी ने Jain Education International वासना ढपोरशंख ह कहा, 'अच्छा दो करोड़ की सही ।' उसने कहा, अरे, चार की कर दूं? मगर हुआ कुछ नहीं। वह आदमी थोड़ा घबड़ाया । उसने कहा कि भई करते क्यों नहीं... चार ही सही। उसने कहा, 'अरे, आठ की कर दें न... !' ऐसा ही ढपोरशंख था वह । उससे कुछ हुआ नहीं, वह दुगना करता जाता...! वासना ढपोरशंख है। राग ढपोरशंख है। वह तुमसे कहता है कि होगा, होगा; जितना मांग रहे हो उससे ज्यादा होगा। तुम्हारे सपने से भी बड़ा सपना पूरा कर के दिखला दूंगा। क्या तुमने खाक आशा की है! जो तुम्हें दूंगा, तुम चकित हो जाओगे । तुमने इसकी कभी आशा भी नहीं की थी, सोचा भी न था । ये सब बातें हैं। अनुभव तो कुछ और कहता है। अनुभव तो कहता है, न दो की वर्षा होती है, न चार की वर्षा होती है, न आठ की वर्षा होती है। लेकिन आशा बड़ी होती चली जाती है। आशा कहे चली जाती है, 'अरे! और कर दूं ! तुम घबड़ा क्यों रहे हो ? अगर इतने दिन बेकार गये, कोई फिक्र नहीं, आगे देखो, भविष्य में देखो! अतीत का हिसाब मत रखो। सूरज ऊगेगा! चंदा चमकेगा ! जरा आगे देखो!' आशा तुम्हें आगे खींचे लिये चली जाती है। इसलिए महावीर कहते हैं, 'राग की उत्पत्ति... ।' जहां से आशा का जन्म होता है, वहीं समझने की जरूरत है, वहीं जागने की जरूरत है। वहीं आशा को मत सहारा देना। कहना, 'ठीक ढपोरशंख, तुझे जो कहना हो, कह। हम कुछ मांगते ही नहीं। न हम लाख मांगते न दो लाख मांगते। हमने मांग ही छोड़ दी । ' थोड़े दिन में तुम पाओगे कि जब तुम न मांगोगे तो ढपोरशंख दुगना न कर पाएगा। क्योंकि वह दुगना तभी करता है, जब तुम मांगते हो। तुम न मांगो तो वह चुप हो जाएगा। तुम न मांगो तो वासना आशा न बंधाएगी। तुम मांगते हो, इसलिए बंधाती है। भूल तुम्हारे मांगने में हो जाती है। तुमने मांगा कि तुम आशा के चक्कर में पड़े। आशा कहती है, दुगना दिला देंगे ! जड़ से महावीर पकड़ते हैं। 'हिंसा करने के अध्यवसाय से ही कर्म का बंध होता है । फिर कोई जीव मरे या न मरे, जीवों के कर्म-बंध का यही स्वरूप है।' यह बड़ा बहुमूल्य सूत्र है । इस सूत्र को गीता के परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत क्योंकि गीता का सारा संदेश यही है । कृष्ण अर्जुन को कहते हैं, न कोई मरता है न कोई मारता है, तो तू For Private & Personal Use Only 285 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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