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________________ ल्पकातिम निष्पत्तिः समा जाकर दिखाया। और सब तो ठीक था, लेकिन लोग बड़े हैरान हाथ से मिटाता हूं। यह भवन फिर कैसे बनेगा? एक हाथ से हुए : उसने दो चर्च बनाये। उन्होंने कहा, दो चर्च का क्या | श्रद्धा की ईंट रखता हूं, दूसरे हाथ से अश्रद्धा का जहर डालता करोगे? एक चर्च समझ में आता है। तो उसने कहा, एक चर्च हूं। एक हाथ से बीज बोता हूं, दूसरे हाथ से अग्नि बरसाता हूं। वह जिसमें मैं जाता हूं और एक चर्च वह जिसमें मैं नहीं जाता हूं। यह भवन, यह बगीचा निर्मित कैसे होगा? थोड़ा सोचो। अकेले एक चर्च से काम न चलेगा, जिसमें तुम तुम कुछ मेरा नुकसान कर रहे हो, ऐसा मत सोचना। तुम जाते हो। वह चर्च भी चाहिए, जिसमें तुम नहीं जाते। मंदिर से अपना ही नुकसान कर रहे हो। तुम अपने भोजन में ही गंदगी काम न चलेगा, मस्जिद भी चाहिए जिसमें तुम नहीं जाते। गिरजे डाल रहे हो। वह तुम्हें ही भोजन करना है। वह तुम्हारे ही खून में से ही काम नहीं चलेगा, गुरुद्वारा भी चाहिए जिसमें तुम नहीं | बहेगा। उससे तुम्हारी ही हड्डी बनेगी। गाली देने से उसका थोड़े जाते। मजा ही क्या है अगर अकेला वही चर्च हो जिसमें तुम ही नुकसान होता है जिसे गाली दी–गाली देनेवाले का नुकसान जाते हो। तो फिर तुम्हारा गलत जो है वह तुम कहां रखोगे? होता है। उसकी जीभ खराब हुई। उसका हृदय धूमिल हुआ। तो अकसर लोग दो गुरु चुनते हैं: एक, जिसके पक्ष में; और | उसके प्राण क्षुद्र हुए। एक जिसके विपक्ष में। दो प्रेमी चुनते हैं: एक को मित्र कहते हैं, पूछा है, 'यह क्या है?' एक को शत्रु। यह तुम्हारे भीतर का सीजोफ्रेनिया, तुम्हारे भीतर का विभक्त ध्यान से देखना, अगर तुम्हारा शत्रु मर जाये तो तुम्हें बड़ी कमी व्यक्तित्व। तुम दो हो, एक नहीं। इस 'दो' को हटाओ और मालूम होगी। तुम बड़े खाली-खाली मालूम पड़ोगे। अब तुम एक को जन्माओ। अन्यथा तुम विक्षिप्त हो जाओगे-ऐसे जैसे क्या करोगे? शत्रु के मरने से भी-जिसको तुम सदा चाहते थे तुम्हारे भीतर दो व्यक्ति हैं और तुम्हारे भीतर एकता नहीं है। कि मर जाये, जिसके लिए तुम प्रार्थना करते थे कि मर जिसने पूछा है, उसे मैं जानता हूं। अगर वह ऐसे ही चलता रहा जाये-वह भी जब मरेगा तो तुम रोओगे भीतर। क्योंकि तुमको | तो आज नहीं कल पागल-घर में होगा, पागलखाने में होगा। लगेगा, अब तुम क्या करोगे? जो तुम शत्रु की तरफ बहा रहे थे, जैसे तुम्हारा एक पैर एक तरफ जाये, दूसरा पैर दूसरी तरफ अब वह कहां जायेगा? फिर तुम्हें कोई शत्रु खोजना पड़ेगा। जाये; एक आंख कुछ देखे, दूसरी आंख कुछ देखे तो तुम लोग बिना शत्र के नहीं रह सकते, क्योंकि उनके भीतर बड़ी धीरे-धीरे खंडित हो जाओगे: तम्हारे भीतर का सर-संगीत खो शत्रुता छिपी है। जायेगा; सामंजस्य, समन्वय टूट जायेगा। तो दो उपाय हैं : या तो तुम एक गुरु और खोज लो, एक चर्च यह एक तरह का पागलपन है। इससे जागो। और इसमें रस और बनाओ जिसमें तुम नहीं जाते, जिसकी तुम नहीं सुनते, | मत लो। क्योंकि प्रश्नकर्ता के प्रश्न से ऐसा लगता है, जैसे वह जिसके तुम दुश्मन हो, जो गलत है, पाखंडी है। और दूसरा कोई बड़ी बहुमूल्य बात कर रहा है। क्योंकि उसने यह भी लिखा उपाय यह है कि तुम्हारे भीतर ये जो गालियां उठ रही हैं, इन्हें है पीछे कि जब मैं इस तरह गालियां इत्यादि देता हूं तो लोग मुझे समझो, देखो, अपने भीतर के कलुष को पहचानो, अपने भीतर 'नासमझ' कहते हैं और मुझे उन पर हंसी आती है। ऐसा लगता के कड़ा-कर्कट को समझो-बझो। है, तुम रस ले रहे हो। कोई हर्जा नहीं। अगर इससे ऊपर न उठ पहला उपाय सार्थक नहीं है, क्योंकि उससे तुम बदलोगे ना सको तो यह भी ठीक है। कम से कम गाली देते हो, तब भी मेरी तुम जैसे हो वैसे ही रहोगे। उससे तो यही बेहतर है कि तुम मुझे याद तो कर ही लेते होओगे, मगर याद करने के बेहतर ढंग हो प्रेम भी किये जाओ और गालियां भी दिये जाओ। क्योंकि यह | सकते हैं। यह याद करने का तुमने बड़ा बेहूदा ढंग चुना। स्थिति ज्यादा दिन न चल सकेगी; तुम्हारा प्रेम ही भीतर सकुचाने मैं तुमसे कहता हूं, अगर अनाप-शनाप बकना हो, गाली देना लगा है; तुम्हारा प्रेम ही भीतर कष्ट पाने लगा है। अच्छा है, हो, तो प्रेम को हटा दो, कम से कम इकहरे इकट्ठे तो रहोगे। कोई फिक्र नहीं। ऐसे ही जीये जाओ। धीरे-धीरे तुम खुद ही अगर प्रेम करना हो तो गाली-गलौज से छुटकारा पा लो। सोचोगे, यह मैं क्या कर रहा हूं! एक हाथ से बनाता हूं, दूसरे क्योंकि मेरा सवाल नहीं है। मुझे गाली देने से मेरा क्या हर्ज है! Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrarorg
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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