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________________ 262 जिन सत्र भाग 1 'बदमाश' शब्द का उपयोग किया तो पांच पैसा जुर्माना; अगर 'गधे' शब्द का उपयोग किया तो दस पैसे जुर्माना, अगर 'साला' शब्द का उपयोग किया तो बीस पैसे जुर्माना, अगर 'हरामजादा' शब्द का उपयोग किया तो चालीस पैसे जुर्माना । पचास पैसे वह अपने बेटे को जेब खर्च के लिए रोज देता है। बेटा हंसने लगा। वह सुनता रहा और देखता रहा और हंसने लगा। तो उसने पूछा, 'तू हंसता क्यों है ? बात क्या है ?' उसने कहा कि मुझे ऐसी भी गालियां आती हैं कि रुपया भी कम पड़ेगा। गालियां तुम्हें आती हैं, तो तुम जिससे भी संबंध बनाओगे उसी की तरफ बहने लगेंगी। जो तुम्हें आता है वही तो बहेगा। गालियां ही तुमने जीवन में सीखी हैं, तो तब जब तुम प्रेम में भी पड़ते हो तो प्रेम में भी तुम्हारी गालियां प्रवाहित होने लगती हैं। आखिर तुम्हीं तो बहोगे न अपने प्रेम में ? तो तुमने जीवनभर में जो दुर्गंध इकट्ठी की है, वह तुम्हारे प्रेमी पर भी तो पड़ेगी। आखिर प्रेम 'तुम' करोगे तो तुम्हारी गालियां कहां जायेंगी ? इसे समझने की कोशिश करना। तुम शायद सोचते हो, तुम शत्रुओं को ही गाली देते हो - गलत । अगर गाली देना तुम्हारी आदत में शुमार है, अगर गाली देने की तुम्हारी भीतर संभावना है, तो शत्रु को तुम प्रगट में देते होओगे, मित्र को तुम अप्रगट में | देते होओगे — मगर दोगे जरूर। जो तुम्हारे पास है वह तो तुम बांटोगे। मित्र को शायद मजाक में दोगे — मगर दोगे जरूर। ऐसे लोग हैं कि जब तक उनमें गाली-गुफ्ता का संबंध न हो तब तक वे मित्रता ही नहीं मानते। जब तक 'आइये', 'बैठिये', 'आप कैसे हैं' इत्यादि शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है, तब तक मित्रता नहीं, परिचय है । जब गाली-गुफ्ता शुरू हो जाती है, तब मित्रता है। मैंने सुना है कि एक बहुत बड़ा आर्किटेक्ट, एक बड़ा शिल्पी समुद्र में जहाज डूबने से, समुद्र में तैरते तैरते एक अनजान द्वीप पर लग गया। अकेला था। वहां द्वीप पर कोई भी न था । बड़ा कुशल शिल्पी था । और कोई काम भी न था उसे। बड़े फल थे, वृक्ष लदे फलों से, तो भोजन की कोई कमी न थी । जंगल में I इसे थोड़ा देखना। यह कैसी मित्रता हुई ? लेकिन तुम्हारी मजबूरी है। जो तुम्हारे पास है, वह तुम्हारी लकड़ियां थीं। सुंदर पत्थर थे। उसने धीरे-धीरे बैठे-बैठे क्या मित्रता पर भी छाया डालेगा। दो तरह के लोग हैं। कुछ लोग हैं जो एक आदमी को मित्र बना लेते हैं और दूसरे को शत्रु बना लेते हैं। वे अपने को बांट लेते हैं। जो-जो बुरा है वह शत्रु की तरफ प्रवाहित करते हैं, नहर खोद लेते हैं; जो-जो अच्छा है, वह मित्र की तरफ प्रवाहित करते हैं, नहर खोद लेते हैं। लेकिन जब तुम मेरे प्रेम में पड़ोगे तो पूरे के पूरे ही पड़ोगे। तब नहर खोदने से काम न चलेगा। तब तुम्हारी गाली भी मेरे पास आयेगी, तुम्हारी प्रार्थना भी मेरे पास आयेगी। तुम्हें जागना होगा ! और गालियों से निस्तार पाना होगा। अन्यथा तुम्हारा प्रेम भी कलुषित हो जायेगा, तुम्हारी प्रार्थना भी कलुषित हो जायेगी। अच्छा है कि इस बहाने तुम्हें तुम्हारी गालियां दिखाई पड़ने लगीं; अब धीरे-धीरे उन गालियों से अपने बंधन को खोलो। अब धीरे-धीरे जागो। क्योंकि वे गालियां तुम्हें उड़ने न देंगी, वजनी हैं; पत्थर की तरह तुम्हारी गर्दन में अटकी रह जायेंगी । मेरे और तुम्हारे बीच पत्थरों की तरह अटकी रह जायेंगी। प्रवाह ठीक से न हो पायेगा। तुम जब भी गाली दोगे, सिकुड़ जाओगे । जब भी गाली दोगे, तुम्हारे भीतर अपराध-भाव उठेगा। जब भी गाली दोगे, ग्लानि मालूम होगी। अच्छा है कि प्रश्न पूछा; कम से कम ईमानदारी तो की। अ इतना और होश सम्हालो । गाली देना बंद करने को नहीं कह रहा हूं मैं, क्योंकि अगर तुमने जबर्दस्ती बंद की तो तुम किसी और को देने लगोगे। तब तुम्हें एक और गुरु चाहिए पड़ेगा, जिसको तुम गाली दो और एक गुरु जिसकी तुम प्रशंसा करो। यही तो लोग कर रहे हैं। अगर महावीर की प्रशंसा करते हैं, तो बुद्ध को गाली देते हैं । गालियां कहां जायें ? नहर खोदनी पड़ती है। अगर राम की प्रशंसा करते हैं तो कृष्ण को गाली देते हैं। अगर कृष्ण की प्रशंसा करते हैं तो राम को गाली देते हैं। लेकिन थोड़ा जागो ! Jain Education International करेगा, बनाना शुरू कर दिया। मकान बनाये। दुकानें बनाईं। चर्च बनाये । वर्षों बाद, कोई बीस वर्ष बाद, जब उसका पूरा नगर आबाद हो गया, तब एक जहाज किनारे लगा कर । तो उस शिल्पी ने कहा जहाज के यात्रियों को, कैप्टन को, कि इसके पहले कि हम छोड़ें, इसके पहले कि मैं जहाज पर सवार हो जाऊं, आओ, मैंने जो बनाया है उसे तो देख लो ! तो उसने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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