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________________ अध्यात्म प्रक्रिया है जागरण की सब दृष्टि की बात है। तुम दृष्टि को भीतर मोड़ लो, एक गहन याद रखोगे; रखोगे, रखोगे, धीरे-धीरे याद पकेगी, मजबूत संतुलन पैदा होता है, जहां बुरा और अच्छा सब मिट जाता है, न होगी। फिर बीज से ही वह जो गलत है, तुम्हारे भीतर प्रवेश न कोई मित्र न कोई शत्रु। कर पायेगा। 'जान या अजान में कोई अधर्मकार्य हो जाये तो अपनी आत्मा उसके चक्कर में दुबारा तो मैं आने का नहीं को तुरंत उससे हटा लेना चाहिए। फिर दूसरी बार वह कर्म न ढूंढती फिरती है क्यों गर्दिशे-दौरां मुझको। किया जाये।' -अब संसार के चक्कर में दुबारा आने का नहीं है। एक बार जान या अजान में अधर्मकार्य हो जाये तो तुरंत, उसे पूरा भी | होश सम्हला, फिर कितना ही ढूंढे संसार की विपत्तियां तुम्हें, मत करना! अगर क्रोध करने के क्षण में आधा वचन बोले थे फिर कितना ही लोभ के विषय तुम्हारे चारों तरफ खड़े रहें, और गाली का और याद आ जाये तो आधा ही बोलना और क्षमा मांग कामवासना के लिए कितनी ही अप्सराएं तुम्हें निमंत्रण देती लेना; उसे पूरा भी मत करना। रहें-नहीं, फिर तुम न जा सकोगे। जो जागने लगता है, होश अगर वासना में एक कदम उठ गया था और दूसरा उठने को करने लगता है, अपने जीवन की स्थिति को जांचने-परखने था और याद आ जाये तो जो नहीं उठा है, उसे मत उठाना; जो लगता है, स्वाभाविक है कि जहां आग है वहां से हाथ खींच ले। उठ गया है, उसे वापिस मोड़ लेना। इश्क बाबस्तए-जंजीरे-जुनूं कब है 'रविश' बहुत सम्हलकर चलोगे तो ही पहुंच पाओगे। रास्ता बड़ा _हस्ने-खुदबी की तमन्ना है तो खद होश में आ। कंटकाकीर्ण है, चढ़ाव भारी है और तुम्हारी आदत उतरने की, । तुम्हारी अंतरात्मा, तुम्हारा गहन हृदय किसी जंजीर में बंधा फिसलने की है। तुम तो धर्म से भी फिसलने का उपाय खोज | हुआ नहीं है। तुम्हारा प्रेम कारागृह में बंद नहीं है। सिर्फ तुम लेते हो। बेहोश हो। अगर वास्तविक सौंदर्य का अनुभव करना है तो बस एक व्यक्ति ने डाक्टर से पूछा, 'आखिर मझे हआ क्या है?' । एक काम कर लो'आप बहुत अधिक खाते हैं', कहा डाक्टर ने, 'बहुत शराब हुस्ने-खुदबी की तमन्ना है तो खुद होश में आ। पीते हैं, और सुस्त हैं, महाकाहिल, महासुस्त हैं। यही आपकी | -बस होश में आ जाओ। बेहोशी ही तुम्हारा कारागृह है। बीमारी है।' वही तुम्हारी जंजीरें हैं। उस आदमी ने कहा, 'डाक्टर साहिब! कृपा करके इसे अपनी महावीर का सर्वाधिक जोर होश पर है। बेहोशी पाप है, होश डाक्टरी भाषा में लिख देंगे, जिससे मैं दफ्तर से एक महीने की पुण्य है। छुट्टी प्राप्त कर सकू!' 'संपूर्ण परिग्रह से मुक्त, शांतिभूत, शीतिभूत, प्रसन्नचित्त सुस्त है, शराब पीता है, अतिशय खाता है उसमें से भी एक श्रमण जैसा मुक्ति-सुख पाता है, वैसा सुख चक्रवर्ती को भी नहीं महीने की छुट्टी निकालने की आशा रखता है, तो और सुस्ती मिलता।' बढ़ेगी, और खायेगा, और पीकर पड़ा रहेगा। लेकिन डाक्टरी अगर तम सम्राट भी हो जाओ सारे संसार के, छहों द्वीप के भाषा में लिख दें, क्योंकि सुस्ती से तो बात चलेगी नहीं। चक्रवर्ती हो जाओ, तो भी तुम उस सुख को न पा सकोगे जो उस शास्त्र तुम्हारे लिए डाक्टरी भाषा सिद्ध होते हैं। तम उनमें से भिक्ष को मिलता है, उस श्रमण को, या उस ब्राह्मण को जो अपना मतलब निकाल लेते हो। उनसे भी फिसल जाते हो। परिग्रह से मुक्त, लोभ से मुक्त, शीतिभूत, भीतर शांत हुआ, जान या अजान में कोई अधर्मकार्य हो जाये तो अपनी आत्मा | न मकाइ अधमकाय हो जाये तो अपनी आत्मा | शीतल हुआ, प्रसन्नचित्त! को तुरंत उससे हटा लेना चाहिए। फिर दूसरी बार वह कार्य न ये सारे सूत्र बड़े बहुमूल्य हैं। जीवन में तुमने अभी गर्मी जानी किया जाये। और एक बार जहां भल दिखाई पड़ गई हो, आधे में | है, शीत नहीं जानी। जीवन का तमने एक ही काल जाना दिखाई पड़ी हो, तो वहीं से लौट आना चाहिए। और फिर दुबारा | है-ऊष्ण; अभी शीतल क्षण नहीं जाने। अभी तुम उबले हो, स्मरण रखना चाहिए कि इस यात्रा पर दुबारा कदम न उठे। ऐसा | जले हो, शांत नहीं हुए, ठंडे नहीं हुए। धीरे-धीरे अपने को 247 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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