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________________ जिन सूत्र भागः1 देखो, मदिरा-पात्र के टूटने की आवाज आने लगी! के साथ एक युवक चल रहा था। उसने कहा, 'यह माजरा क्या शराबे-जीस्त अभी सेर हो के पी भी नहीं है? इस आदमी ने तुम्हें चोट पहुंचाई; तुम उलटे उसकी लकड़ी -अभी मन भरकर पी भी नहीं पाये जीवन के मधु को, | उसको उठाकर दे रहे हो? तुम कुछ कहे ही नहीं?' कि सुन रहा हूं सदाए शिकस्त सागर की। उसने कहा, 'अब कहना क्या है ? रास्ते से गुजर रहा हूं, और -और यह तो मधु-पात्र के टूटने की आवाज आने लगी। एक वृक्ष से शाखा गिर पड़े और मेरा सिर तोड़ दे, तो क्या जन्म के साथ ही तो मधु-पात्र के टूटने की आवाज आने लगती कहूंगा? कुछ भी नहीं कहूंगा। यह क्या कहने की बात है? है। इसके पहले कि मधु-पात्र टूट जाये, पीयो, पिलाओ। लो, संयोग की बात है कि वृक्ष की शाखा ट्टने को थी और हम दो। मिलो-जुलो। फैलो, दूसरों को फैलने दो। गतिमान, | गुजरते थे। हो गया मिलन आकस्मिक, अब कहना क्या है? गत्यात्मक हो तुम्हारा जीवन! कहीं भी जकड़ा न हो; न इस इस आदमी को मारना था किसी को, हम मिल गये। वृक्ष की किनारे न उस किनारे। उठने दो लहरें इस किनारे से उस किनारे शाखा टूटी, समय पर सिर पर पड़ गई। इससे कहना क्या है? तक! आने दो लहरें उस किनारे से इस किनारे तक! तुम दोनों | और यह जो कर सकता था, वही इसने किया है; न कर सकता किनारों के बीच का फैलाव बनो! तब तुम्हारे जीवन में सम्यक होता तो करता ही क्यों? जो इसके भीतर हो सकता था, हुआ धर्म का उदय होता है। है। मैं कौन हं?' 'क्षमा से क्रोध को हरें, क्षमा से क्रोध का हनन करें, नम्रता से यह संसार मेरी अपेक्षा से चले, इससे ही तो क्रोध पैदा होता मान को जीतें, ऋजुता से माया को, और संतोष से लोभ को।' है। जिस-जिस को तुमने अपनी अपेक्षा से चलाना चाहा, उसी 'क्षमा से क्रोध को...।' जब तुम क्रोध करते हो तो क्या कर पर क्रोध होता है। इसलिए जिनसे तुम्हारी जितनी ज्यादा अपेक्षा रहे हो? क्रोध तुम्हारा एक दृष्टिकोण है। क्रोध तुम्हारा ऐसा | होती है, उनसे तम्हारा उतना ही क्रोध होता है। पत्नी पति पर दृष्टिकोण है जो तुमसे कहता है : जो नहीं होना चाहिए था वह | आग-बबला हो जाती है: हर किसी पर नहीं होती हुआ है। किसी ने कुछ कहा, क्रोध का अर्थ है : तुम यह कहते हो | पर होने का सवाल ही कहां है? अपेक्षा ही नहीं है। जिससे कि नहीं यह कहना चाहिए था। तुम्हारी कुछ और अपेक्षा थी। अपेक्षा है...। बाप बेटे पर क्रोधित हो उठता है अपेक्षा है। क्रोध के पीछे अपेक्षा छिपी है। अगर एक कुत्ता आकर भौंक बड़ी आशाएं बांधी हैं इस बेटे से और यह सब तोड़े दे रहा है। जाये तो तुम नाराज नहीं होते; क्योंकि तुम जानते हो कुत्ता है, | सोचा था, यह बनेगा, वह बनेगा, बड़े सपने देखे थे और यह भौंकेगा। लेकिन आदमी आकर भौंक जाये तो तुम नाराज हो सब उलटा ही हुआ जा रहा है। जाते हो। आदमी है तो तुम्हारी बड़ी अपेक्षा थी। __ जिससे तुम्हारी अपेक्षा है, ध्यान रखना वहीं-वहीं क्रोध पैदा क्षमा का अर्थ है : तुम्हारी कोई अपेक्षा नहीं; जो दूसरा कर रहा | होता है। जिनसे तुम्हारे कोई संबंध नहीं हैं, कोई क्रोध पैदा नहीं है, वही कर सकता था, इसलिए कर रहा है। जो गाली दे सकता होता। पड़ोसी का लड़का भी बर्बाद हो रहा है, वह भी शराब था, गाली दे रहा है। जो गीत गा सकता था, गीत गा रहा है। पीने लगा है-मगर इससे तुम्हें चिंता नहीं होती। क्षमा एक दृष्टिकोण है। क्षमा का यह अर्थ है कि हमारी कोई सुना है मैंने एक यहूदी अपने धर्मगुरु के पास गया और उसने अपेक्षा नहीं; हम हैं कौन, जो तुमसे अपेक्षा करें। मैं हूं कौन, जो | कहा, 'मैं बड़ी मुश्किल में पड़ा हूं। मेरा लड़का अमरीका गया तुमसे अपेक्षा करूं कि तुम ऐसा व्यवहार करो तो ठीक, ऐसा न था, लौटकर आया तो वह ईसाई हो गया। मेरा लड़का और करोगे तो मैं क्रोधित हो जाऊंगा! ईसाई! और हम परंपरा से बड़े रूढ़िवादी यहदी हैं। यह बर्दाश्त एक झेन फकीर राह से गुजर रहा था, एक आदमी आकर नहीं हो रहा। आत्महत्या करने का मन होता है।' उसको लट्ठ मार दिया। घबड़ाहट में वह आदमी भागने को था, धर्मगुरु ने कहा, 'बहुत चिंता न करो। मेरी तो सुनो। तुम्हारा उसकी लकड़ी भी हाथ से छूट गई, तो उस फकीर ने लकड़ी तो एक लड़का है। हो गया, कोई बात नहीं है। फिर तुम कोई उठाकर उसको दे दी और कहा, भाई लकड़ी तो ले जा। फकीर धर्मगुरु नहीं हो, मैं धर्मगुरु हूं। मेरे लड़के के साथ भी यही 242 ain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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