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________________ 230 जिन सूत्र भाग: 1 है - वे जीवन से भी निचोड़ लेते हैं सत्य को । वे शास्त्र से भी निचोड़ लेते हैं सत्य को । जो जागकर जीते हैं वे तो छाया से भी मूल को खोज लेते हैं क्योंकि छाया में भी कुछ मिटे से नक्से - पा' कुछ धुंधले हो गये पैरों के चिह्न हैं। अभागे हैं वे, जो जीवन से भी वंचित रह जाते हैं। सौभाग्यशाली हैं वे, जो कि शास्त्रों से भी खोज लेते हैं। इधर महावीर के वचनों पर हम चर्चा कर रहे हैं इसलिए नहीं कि तुम उन्हें मान लो । मानने से कभी कुछ हुआ नहीं। मानना तो कमजोर की आदत है । वह कहता है, 'कौन चले, कौन झंझट करे! ठीक ही कहते होंगे। हम पूजा करने को तैयार हैं। हम शास्त्र को फूल चढ़ा देंगे। कहो, शोभा - यात्रा निकाल देंगे। लेकिन हमसे जीवन बदलने को मत कहो। वह जरा ज्यादा हो गया।' पूजा हमारी तरकीब है शास्त्र से बचने की। मंदिर तुम्हारे धर्म के प्रतीक नहीं; धर्म के साथ तुमने जो चालाकी की है, उसके प्रतीक हैं। मन बड़ा चालाक है । मुल्ला नसरुद्दीन ने अपने नौकर से कहा था कि मेरे जूतों पर पालिश कर दे। 'अरे फजलू, इतनी देर हो गई और अभी तक मेरे जूतों पर पालिश भी नहीं हो पायी ?' 'सरकार ! यह दूसरा बूट हाथों में है।' 'और पहला... ?' नौकर ने कहा, 'उसे इसके बाद हाथ में लूंगा सरकार ।' पहला ! दूसरे के बाद ! मन बहुत चालाक है! बड़ी तरकीबें खोजता है । ऐसी तरकीबें खोजता है कि दूसरे तो धोखा खाते ही हैं, खुद भी धोखा खा 'जाता है। इस मन से थोड़े जागना । मन ही तुम्हें मनन नहीं करने देता है। मन ही तुम्हें उतरने नहीं देता। जहां भी जाते हो, तुम्हारी गंदी छाया पड़ जाती है। शास्त्र पढ़ते हो, तुम्हारी छाया में शास्त्र दब जाता है। शब्द सुनते हो, तुम्हारे पास तक पहुंचते-पहुंचते उनका अर्थ रूपांतरित हो जाता है। ये महावीर के वचन बड़े बहुमूल्य हैं। आज के सूत्र तुम्हारे जीवन को बदल देनेवाले हो सकते हैं। ये तथ्यगत हैं। महावीर का कोई रस सिद्धांतों में नहीं है। महावीर कोई दार्शनिक नहीं हैं। Jain Education International महावीर तो सीधे पथ के वैज्ञानिक खोजी हैं। इन शब्दों को समझना, मनन करना। बन सके, थोड़ा-थोड़ा उतारना । क्योंकि उतारोगे, तभी इनका अर्थ खुलेगा। इनका अर्थ इनके पढ़ने और इनके सुन लेने में नहीं है। इनका अर्थ इनके साथ थोड़ी देर जीने में है। क्षणभर को भी अगर तुम इनके साथ जीये, तो तुम पाओगे इनकी सचाई, इनकी गहनता, इनकी गंभीरता और क्षणभर भी तुम जीये तो ये सत्य तुम्हारी धरोहर हो जायेंगे; ये तुम्हारा हिस्सा हो जायेंगे। ये तुम्हारे खून, हड्डी, मांस-मज्जा में समा जायेंगे। इन्हें समाने देना । पहला सूत्र : ‘ऋण को थोड़ा, घाव को छोटा, आग को तनिक और कसाय को अल्प मानकर मत बैठ जाना। क्योंकि ये थोड़े बढ़कर बड़े हो जाते हैं।' ' ऋण को थोड़ा ... ।' जो भी आदमी ऋण लेता है, पहले थोड़ा ही मानकर लेता है और सोचता है: 'चुका देंगे। इतना सा तो ऋण है। ब्याज भी कुछ ज्यादा नहीं है, चुका देंगे।' जो भी ऋण लेते हैं, इसी आशा में लेते हैं कि चुका देंगे। ऋण चुकता नहीं मालूम होता फिर, बढ़ता जाता है। ब्याज घना होता जाता है। ब्याज ही नहीं चुकता, मूल का चुकाना तो बहुत दूर | और यह साधरण जीवन के ऋण की बात तो छोड़ दो, जो जीवन का बहुत गहरा ऋण है, वह तो कभी चुकता नहीं मालूम पड़ता । ले सभी लेते हैं, फंस जाते हैं। महावीर कहते हैं, सभी ले लेते हैं तो जरूर मन में कोई कारण होगा ले लेने का। सभी सोचते हैं, थोड़ा है। थोड़ा श्रम कर लेंगे, चुक जायेगा । ' ऋण को थोड़ा, घाव को छोटा...।' कितना ही छोटा घाव हो, यह सोच के कि छोटा है, क्या फिक्र करनी है, बैठत जाना, आश्वस्त मत हो जाना, क्योंकि घाव प्रतिपल बड़ा हो रहा है; जैसे छोटा-सा बीज बड़ा वृक्ष हो जाता है। बीज को मिटा देना बड़ा आसान था, वृक्ष को काटना बहुत मुश्किल हो जायेगा। तो जो जानकार हैं, वे ऋण लेते ही नहीं। वे कहते हैं, गरीबी में जी लेंगे; लेकिन ऋण लेकर अमीर होने में कुछ सार नहीं, क्योंकि वह अमीरी ऊपर होगी, धोखे की होगी, भीतर जलन होगी और भीतर दरिद्रता होगी। रूखी रोटी खाकर सो लेंगे, एक बार खा लेंगे, पर ऋण न लेंगे; क्योंकि ऋण बढ़ेगा। शायद पेट में तो रोटी पड़ जायेगी, लेकिन प्राणों की शांति खो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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