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________________ जिंदगी नाम है रवानी का निश्चित ही परवानों में तर्क, चिंतन, विचारवाले लोग नहीं; नित तुम्हें पुकारा करती हूं अन्यथा कहते, पागल है, दीवाना है। आदमी तो कहते ही हैं। एक बार हृदय में छेद करो यह धर्म का प्रेमी भी परवाने की तरह है। हमें लगता है कि वह क्षण मैं निहारा करती हूं जलने चला, लेकिन परवाने से तो कोई पूछे, उसके भीतर हृदय कृपा करो, बचाओ! जल जाऊं, ऐसी भीख दो! से तो कोई पूछे! फिर नजर में फूल महके दिल में फिर शमएं जलीं 'आप न जानो'-ऐसा कैसे होगा? जिन्होंने मुझसे संबंध फिर तसव्वुर ने लिया उस बज्म में जाने का नाम। | जोड़ा है, कुछ भी उन्हें घटेगा, उसे मैं जानूंगा। संबंध न जोड़ा हो उसे तो याद आते ही अपने प्रेमी की, उसकी बैठक की धुन | तो बात अलग। जिन्होंने मुझसे संबंध जोड़ा है, जिन्होंने इतनी | पड़ते ही चारों तरफ फूल खिल जाते हैं, चारों तरफ दीये जल हिम्मत की है मेरे साथ चलने की—क्योंकि मेरे साथ चलकर जाते हैं। | मिलेगा क्या? न धन, न प्रतिष्ठा, न पद। होगी पद-प्रतिष्ठा, परमात्मा प्रेम की खोज है। इसमें तुम हिसाब मत लाना। इसमें खो जायेगी। लोक-लाज खोनी पड़ेगी। गंवाओगे ही मेरे साथ, तुम पूरे के पूरे जाना। तुम यह भी मत कहना किः दो नैना नहिं कमाओगे क्या? खाइयो, पिया मिलन की आस! तुम इतना भी मत कहना। तुम तो जिसने मेरे साथ चलने की हिम्मत की है और साहस किया तो कहना, सब तरह डुबा दो! यह पिया मिलन की आस इतनी है, उसके भीतर कुछ भी घटे, मुझे पता चलेगा। तंतु जुड़ गए! गहन हो जाए कि आस जैसी भी मालूम न पड़े। आस करनेवाला | उसी को तो मैं संन्यास कहता हूं-मुझ से जुड़ जाने का नाम। कोई न बचे भीतर। वहां तुम्हारे हृदय में कुछ खटका होगा तो मुझे पता चलेगा। तुम्हें जैसे कोई मरुस्थल में भटक गया हो कई दिनों से और जल न भी पता चलेगा, शायद उसके भी पहले पता चल जाए। मिला हो, तो पहले प्यास लगती है। प्यास के साथ भीतर यह 'आप न जानो'- ऐसा होगा नहीं। बस एक शर्त तुम पूरी भाव भी होता है कि मैं प्यासा हूं। फिर प्यास बढ़ती जाती है, कर देना-जुड़ने की—उसके बाद शेष मैं सम्हाल लूंगा। जल नहीं मिलता। फिर धीरे-धीरे प्यास इतनी सघन होने लगती पहली ही शर्त पूरी न हुई तो फिर शेष नहीं सम्हाला जा सकता। है कि भीतर कभी-कभी ऐसा खयाल आता है कि मैं प्यासा हूं, और घबड़ाओ मत। अन्यथा प्यास ही प्यास मालूम पड़ती है। फिर और एक ऐसी सबा ने फिर दरे-जिंदा पे आ के दी दस्तक घड़ी आती है, आखिरी घड़ी, जब सिर्फ प्यास ही रह जाती है, सहर करीब है दिल से कहो न घबराये। यासा भी नहीं रहता। इतनी भी अब शक्ति नहीं बचती कि सुबह की हवा आ गई, कारागृह पर उसने फिर से दस्तक दी! अपने को अलग कर ले और कहे कि मैं प्यास का देखनेवाला हूं, सबा ने फिर दरे-जिंदा पे आ के दी दस्तक कि मैं प्यास का जाननेवाला हूं। प्यास ही हो जाती है। सारा सहर करीब है दिल से कहो न घबराए। प्यासा प्यास में रूपांतरित हो जाता है। पूरे प्राण प्यास में जल इधर मैं आया हूं, तुम्हारे हृदय पर दस्तक दी है। अगर तुम्हें उठते हैं। उसी घड़ी में मिलन होता है, जब तुम पूरे के पूरे डूब सुनाई पड़ गई है-सहर करीब है, दिल से कहो न घबराए। जाओगे! बचाने की आकांक्षा अपने को करना ही मत। दो आंख ये जो पीड़ा के क्षण होंगे, किसी दिन तुम इनके लिए अपने को भी बचाने की आकांक्षा मत करना। क्योंकि सब बचाने की धन्यभागी समझोगे। आज तो पीड़ा होगी ही। राह पर पीड़ा होती आकांक्षा में तुम अपने को ही बचा लोगे। अपने को गंवाना है, है। मंजिल पर पहुंचकर यात्री को पता चलता है कि जो पीड़ा थी खोना है। वह तो कुछ भी न थी; जो पाया है वह अनंत गुना है। खुशबुओं के सफर में गुजरी है आखिरी प्रश्न : चांदनी के नगर में गजरी है। आप न जानो गुरुदेव मेरे! भीख है, बाकी जिंदगी है वही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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