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________________ जिन सूत्र भाग : 1 अर्चना है। इलाही सारी दुनिया को मैं कैसे राजदां कर लूं! 'तेरी दिव्य आग में जल-जलकर राख हुआ जा रहा हूं।' कैसे सभी को इस राज में भागीदार बना लूं! सभी पूछते हैं, घबड़ाना मत। धन्यवाद देना उसे। सौभाग्य कि तुम्हें उसने 'क्यों रो रहे हो? क्यों गा रहे हो, क्यों नाच रहे हो?' 'क्यों' इस योग्य समझा कि तुम्हें जलाये! धन्यभाग कि तुम पर उसकी तो खड़ा ही है। जरा भी तुमने अन्यथा किया, लोगों से भिन्न नजर गई कि तुम्हें जलाए! क्योंकि इस जलन में ही, इस मिटने में किया कि लोगों ने पूछा, 'क्यों?' लोग चाहते हैं, तुम ठीक वैसे ही नये का सूत्रपात है। सूर्योदय होगा। घबड़ाना मत। पीड़ा भी ही रहो जैसे वे हैं, रत्ती भर भेद न हो; तुम मूर्तिवत, यंत्रवत चलते हो तो रो लेना, आंसू बहा लेना; पर यह आकांक्षा मत करना कि रहो भीड़ के साथ। जब तुम रोओगे, गाओगे, कभी मस्ती में बंद कर, रोक! हंसोगे—यह सब होगा, क्योंकि भीतर की यात्रा तुम्हें सभी भावों जीसस तक को ऐसी घड़ी आ गई थी। सूली पर लटके हुए, | में से गुजारेगी। हर भाव का तीर्थ मिलेगा। कभी-कभी ऐसा भी आखिरी क्षण में, ऊपर की तरफ आंख उठाकर उन्होंने कहा कि होगा कि तुम बिलकुल पागल मालूम पड़ोगे-हंसोगे भी, 'हे परमात्मा, यह क्या दिखला रहा है? बंद कर!' सूली पर रोओगे भी, साथ-साथ। किसको न लगेगा ऐसा! लेकिन फिर उनको होश आ गया, सबब हर एक मुझसे पूछता है मेरे रोने का सम्हल गए, तत्क्षण बात बदल दी। वक्त पर बदल दी, ठीक इलाही सारी दुनिया को मैं कैसे राजदा कर लूं! क्षण में बदल दी, अन्यथा चूक जाते। तत्क्षण फिर आंखें ऊपर मैंने पूछा कि है मंजिले-मकसूद कहां उठाईं और कहा, 'हे परमात्मा, क्षमा कर! तेरी मर्जी पूरी हो! | खिज्र ने राह बतलाई मुझे मयखाने की। अगर तू जलाना चाहता है तो यही शुभ होगा! अगर तू मिटाना | -पूछा मैंने कि वह आखिरी मंजिल कहां है, तो सदगुरु ने चाहता है, सूली देना चाहता है, तो जरूर यही मेरे हित में होगा! मुझे राह बताई मधुशाला की। मेरे कल्याण को तू मुझसे बेहतर जानता है! तेरी मर्जी पूरी हो!' । मैंने पूछा कि है मंजिले-मकसूद कहां थक गई है जुबां तो चुप होकर खिज्र ने राह बतलाई मुझे मयखाने की। काम में आंसुओं को लाए हैं। -मस्ती की, बेहोशी की, प्रेम की, प्रार्थना की। रो लेना। कहते न बने, कहना मुश्किल हो जाये, आंसुओं से | खोओ अपने को! जब मैं कहता हूं, जलोगे, उसका इतना ही कह देना। मगर विपरीत की प्रार्थना मत करना। पीड़ा को भोग अर्थ है कि मिटोगे, डूबोगे। धीरे-धीरे तुम पाओगे, पुराने से लेना। जलन को स्वीकार कर लेना। संबंध टूट गया और एक नई ही चेतना का जन्म हुआ है। इस लोग समझाएंगे। लोग कहेंगे, लौट आओ, भले-चंगे थे। चेतना में मस्ती भी होगी, होश भी होगा। इस चेतना में ऐसी यह क्या झंझट मोल ले ली? | मस्ती होगी कि जिसमें होश है। इस चेतना में बेहोशी भी होगी: मीरा को समझाया लोगों ने। चैतन्य को समझाया लोगों ने। जैसा महावीर कहते हैं, निवृत्ति संसार से, प्रवृत्ति स्वयं से। इस बुद्ध को समझाया लोगों ने, 'लौट आओ! यह क्या पागलपन बेहोशी में संसार के प्रति बेहोशी होगी, परमात्मा के प्रति होश सवार हुआ है? अपनी बुद्धि को सम्हालो!' सारी दुनिया होगा। 'पर' के प्रति बेहोशी होगी, 'स्व' के प्रति होश होगा। बद्धिमान है। बाहर से तो तुम देखोगे, लुट गए; और भीतर से अनंत धन तुम्हें तो तुम जब विरह में रोओगे और जब उसकी आग तुम्हें | उपलब्ध हो जाएगा, खजाने उपलब्ध हो जाएंगे। जलाएगी, और जब तुम्हारा हृदय कटेगा इंच-इंच, हर कोई फिर नज़र में फूल महके दिल में फिर शमएं जलीं तुमसे पूछेगा, 'क्या हुआ है?' तुम न तो लोगों की सुनकर फिर तसव्वुर ने लिया उस बज्म में जाने का नाम। लौटना, न लोगों को समझाने लग जाना। क्योंकि कुछ बातें हैं, परवाने को देखा है? जलता है। फिर शमा जलती है, फिर जो समझने-समझाने की नहीं हैं। दीया जलता है, फिर परवाना आया! कितनी बार जल चुका है, सबब हर एक मुझसे पूछता है मेरे रोने का लेकिन फिर-फिर आ जाता है, फिर शमा में खो जाता है। 2221 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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