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________________ जिन सूत्र भागः1.1 हो। कहते हो, बड़ा बुरा हुआ! लेकिन कभी अपना चेहरा आईने यानी लड़ना है दूसरे से। एक-एक इंच जमीन के लिए लड़ना में देखा, जब तुम कहते हो, बड़ा बुरा हुआ, तो कैसी रसधार | है। एक-एक इंच पद के लिए लड़ना है। एक-एक इंच धन के बहती है! तुम कभी गए, जब किसी को लाटरी मिल गई हो, तब | लिए लड़ना है। तुम कहने गए कि बहुत अच्छा हुआ? । महावीर इस पहले सूत्र में ही तुम्हें मौत का पहला पाठ देते हैं। जब कोई सुखी होता है तब तुम अपना सुख प्रगट करने नहीं वे कहते हैं, जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए भी जाते; तब तो ईर्ष्या पकड़ती है, जलन पकड़ती है। अंगारे छाती चाहो। चाह मरेगी ऐसे। फिर चाह जी न सकेगी। चाह की जड़ में बैठ जाते हैं। फफोले उठ आते हैं भीतर, घाव महसूस होते हैं, ही काट दी। जो तुम अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए पीड़ा होती है कि फिर कोई आगे निकल गया। तब तो तुम दूसरी | भी चाहो। बातें करते हो। तुम तो कहते हो, धोखेबाज है, बेईमान है। तब जरा सोचो तुम चाहते थे कि एक महल बन जाए-दूसरों के तो तुम परमात्मा से कहते हो, 'यह क्या हो रहा है तेरे जगत में? | लिए भी! उस चाह में ही तुम पाओगे कि तुम्हारे महल बनाने की अन्याय हो रहा है। यहां पापी और व्यभिचारी जीत रहे हैं और चाह गिर गई। तुम चाहते थे, ऐसा हो वैसा हो, वही सबको भी पुण्यात्मा हार रहे हैं।' पुण्यात्मा यानी तुम! पापी यानी वे सब हो जाए–अचानक तुम पाओगे, पैरों के नीचे से किसी ने जमीन जो जीत रहे हैं! खींच ली। तुमने कभी खयाल किया, जब भी कोई जीत जाता है, तुम और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, वह दूसरों के लिए भी मत अपने को समझाते हो, सांत्वना देते हो कि जरूर किसी गलत चाहो। लोगों ने अपने लिए तो स्वर्ग की कल्पनाएं की हैं, और ढंग से जीत गया होगा, कोई बेईमानी की होगी, रिश्वत दी होगी, | दूसरों के लिए नर्क का इंतजाम किया है। जब भी तुम सोचते हो चालबाजी की होगी, कोई रिश्तेदारी खोज ली होगी कहीं। अपने लिए तो स्वर्ग में सोचते हो, कल्पना करते हो। नहीं, अगर एक महिला मेरे पास आई। उसका बच्चा फेल हो गया। वह | तुम अपने लिए नर्क नहीं चाहते तो दूसरे के लिए भी मत चाहो। कहने लगी कि बड़ा अन्याय हो रहा है। ये सब शिक्षक और यह क्यों महावीर इस सूत्र को इतना मूल्य देते हैं? यह उनका सब शिक्षा की व्यवस्था, सब धोखेबाज, बेईमान हैं। जिन्होंने आधार-सूत्र है। यह बड़ा सीधा और सरल दिखता है ऊपर, शिक्षकों को रिश्वतें खिला दीं, वे तो सब उत्तीर्ण हो गए, मेरा लेकिन इसका जाल बहुत गहरा है और सूत्र बड़ी गहराई में तुम्हारे लड़का फेल हो गया। मैंने कहा, इसके पहले भी तेरा लड़का अचेतन को रूपांतरित करने वाला है। अगर तुम एक सूत्र को भी पास होता आया था, तब तू कभी भी न आई कहने कि मेरा पालन कर लो तो तुम्हें पूरा धर्म उपलब्ध हो जाएगा। अपने लिए लड़का पास हो गया, जरूर किसी न किसी ने रिश्वत खिलाई | वही चाहो जो तुम दूसरे के लिए भी चाहते हो और जो तुम अपने होगी। जब तेरा लड़का पास होता है, तब अपनी मेहनत से पास लिए नहीं चाहते वह दूसरे के लिए भी मत चाहो-अचानक तुम होता है; जब दूसरों के लड़के पास होते हैं, तब रिश्वत से पास | पाओगे, तुम्हारे जीवन की आपाधापी खो गई। अचानक तुम होते हैं! पाओगे, प्रतिस्पर्धा मिट गई, महत्वाकांक्षा को जगह न रही, बीज तुमने कभी देखे ये दोहरे मापदंड? जब तुम सफल होते हो तो सूखने लगे, जलने लगे। होना ही था, तुम प्रतिभाशाली हो। और जब दूसरा सफल होता यही जिन शासन है। है, बेईमान! कहीं कोई धोखे का रास्ता निकाल लिया। कोई | एतियगं जिणसासणं। यही तीर्थंकर का उपदेश है। जिन्होंने चालबाजी कर गया। जब तुम हारते हो तो अपने पुण्यात्मा होने | जीता है स्वयं को, उनका यह उपदेश है। की वजह से हारते हो। और जब दूसरा हारता है तो पापी है, 'अध्रुव, अशाश्वत और दुखबहुल संसार में ऐसा कौन-सा अपने कर्मों की वजह से हारता है। तुमने कभी ये दोहरे मापदंड | कर्म है जिससे मैं दुर्गति में न जाऊं?' देखे? पर यह मापदंड ठीक हैं फैलाव के रास्ते पर, क्योंकि महावीर पूछते हैं, अध्रुव, अशाश्वत... । सभी चीजें प्रतिक्षण फैलाव यानी प्रतिस्पर्धा। फैलाव यानी गलाघोंट संघर्ष। फैलाव बदली जाती हैं। यहां कुछ भी तो शाश्वत नहीं। पानी पर खींची Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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