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________________ जीवन एक सुअवसर है करके दिखाना चाहते थे कि देख लो! तुम अगर गौर से अपनी बिलकुल जरूरी थीं। सचाई को पहचानने लगो तो तुम पाओगेः तप भी आता, संयम संयम पैदा होता है, जो व्यक्ति सच्चा होने लगता है। उसे भी आता। दिखाई पड़ता है, जो मेरे लिए जरूरी है वह करूंगा; जो नहीं सौ में निन्यानबे आकांक्षाएं तुम्हारी बिलकुल व्यर्थ हैं। वे तुमने | जरूरी है वह नहीं करूंगा। और ऐसा व्यक्ति धीरे-धीरे भीड़ के न मालूम कैसे उधार ले ली हैं। संक्रामक रोग की तरह तुम्हें लग | बाहर हो जाता है। इस अकेले हो जाने का नाम ही संन्यास है। गई हैं। दुख आएगा तो तुम स्वीकार करोगे। और बहुत-से सुख भीड़ में ही होता है, लेकिन अकेला हो जाता है। अपने ढंग से जो सुख नहीं हैं, तुम दूसरों के कारण ही भोगे चले जाते हो। । जीता है। और अपने ढंग को किसी हालत में भी समझौता नहीं मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन जा रहा था। पूछा, 'कहां जा रहे करता। कुछ भी हो जाए, सत्य की आकांक्षा करनेवाला हो?' उसने कहा, 'शास्त्रीय संगीत सुनने जा रहा हूं।' मैंने समझौतावादी नहीं होता। वह आगे-पीछे नहीं देखता, वह यह कहा, 'लेकिन तुम जानते नहीं।' उसने कहा, 'अब क्या करें! हिसाब नहीं लगाता कि इसके क्या परिणाम होंगे। वह कहता है, सभी जा रहे हैं, न जाओ तो ऐसा लगता है कि शास्त्रीय संगीत जो भी परिणाम होंगे उसका तप झेल लूंगा; जो भी खोना पड़ेगा, नहीं आता। हालांकि कुछ समझ में नहीं आता मेरे। अभी से डरा | उसका संयम हो जाएगा। लेकिन जो मैं हूं, उससे अन्यथा मैं नहीं हुआ हूं कि वहां करूंगा क्या। मुझे तो उलटी घबड़ाहट होती है। होना चाहता। जब आऽऽऽऽ करने लगते हैं, मुझे ऐसा लगता है कि अब पता एक बड़ी क्रांति घटती है, जब तुम अपने से राजी होते हो। जब नहीं कब यहां से निकलना हो पाएगा।' उसने बताया मुझे कि तुम अपने से राजी होते हो तो तुम अपने भीतर उतरने लगते हो। पहले भी एक दफा ऐसा हो चुका है: मैं गया था शास्त्रीय संगीत जब तुम अपने से राजी होते हो और यहां-वहां नहीं दौड़ते और सुनने और जब संगीतज्ञ बहुत आऽऽऽऽ करने लगा तो मैं रोने दूसरों का अनुगमन नहीं करते तो तुम अपने में डूबने लगते हो, लगा। तो मेरे पड़ोस के लोगों ने पछा कि अरे मुल्ला! हमने तो एक डुबकी लगती है। उस डुबकी के माध्यम से तुम अपनी कभी सोचा भी न था कि तुम इतने संगीत के पारखी हो! सतह से ही परिचित नहीं होते, अपने भीतर की गहराइयों से ' उसने कहा, 'पारखी-वारखी कुछ नहीं; यही हालत मेरे बकरे परिचित होने लगते हो। की हुई थी। उसी रात मर गया था। यह आदमी बचेगा नहीं। और एक दिन ऐसी भी घड़ी आती है कि तुम अपने केंद्र पर यह बिलकुल मरने के करीब है। इसलिए मुझे याद आ रही है आरोपित हो जाते हो। वही है धर्म, आत्मज्ञान कहो। बकरे की, कि बेचारा बकरा, इसी तरह शास्त्रीय संगीत 'सत्य में तप, संयम और शेष समस्त गुणों का वास होता है। करते-करते..!' | जैसे समुद्र मछलियों का आश्रय है, वैसे ही सत्य समस्त गुणों का ___ मगर जाना पड़ रहा है, क्योंकि सारा मोहल्ला-पड़ोस जा रहा | आश्रय है।' है। इज्जत का सवाल है। सत्य जैसे सागर है, सभी नदियां उसी में गिर जाती हैं, ऐसे ही तुमने कभी गौर किया अपने को! तुम बहुत-सी चीजों में सत्य जीवन का परम आचरण है; धर्म का पर्यायवाची है; और सम्मिलित हुए हो, जहां तुम कभी जाना न चाहते थे, लेकिन क्या सभी गुण उसी में गिर जाते हैं। करते! तुम भीड़ के हिस्से हो! तुमने कभी-कभी अपनी जरूरतों लेकिन लोग उलटा कर रहे हैं। लोग कहते हैं, तप साध रहे हैं, को भी कुर्बान किया है-उन बातों के लिए जो तुम्हारी जरूरतें न संयम साध रहे हैं क्योंकि सत्य पाना है। महावीर कहते हैं, थीं। तुमने गहने खरीद लिए हैं, पेट को भूखा रखा है। तुमने सत्य साधो, तो संयम और तप अपने से आ जाते हैं। अब इतनी बड़ा मकान बना लिया है, बच्चों के लिए औषधि नहीं जुटा सीधी-सी बात भी कैसे चूक जाती है! ऐसा लगता है, लोग पाए। तुमने कार खरीद ली, बच्चों को शिक्षा नहीं दे पाए। चूकना ही चाहते हैं। अब इतना साफ-सा वचन है। 'सच्चाम्मि तुमने कभी गौर किया है कि तुम वे चीजें कर गुजरे, जो न करते वसदि तवो'...लेकिन किसी जैन मुनि से पूछो, तो वह कहेगा, तो चल जाता; और उन चीजों को न कर पाए जो कि करनी | 'तप करोगे तो ही सत्य मिलेगा। तपश्चर्या के बिना कहीं सत्य 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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