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________________ तो ध्यान रखना, मौन सिर्फ न बोलना भर न हो; नहीं तो वही होगा: क्रोध काट डाला, काम की ग्रंथि काट डाली। काम की ग्रंथि गई तो ब्रह्मचर्य पैदा होने का उपाय भी गया। क्रोध की ग्रंथि गई तो करुणा भी न आई। ऐसा मौन मत कर लेना कि सिर्फ न बोलने पर आग्रह हो कि बोलते नहीं हैं। तो फिर तुम्हारे भीतर जिंदगी सड़ने लगेगी, प्रवाह बंद हो जाएगा। तुम एक पोखर हो जाओगे, सरिता न रहोगे। जल्दी ही कीचड़ मच जायेगी। जल्दी ही तुम अपनी कुंठा में सड़ोगे। क्योंकि जीवन संबंधों में है। कोई फिक्र नहीं, हजार ढंग हैं बोलने के बोलना ही थोड़े ही सब कुछ है! किसी का हाथ ही हाथ में ले लो तो क्या तुम बोले नहीं? किसी की तरफ भरी हुई आंखों से देखा तो क्या तुम बोले | नहीं ? किसी के पास चुपचाप बैठे रहे, लेकिन बंद नहीं; खुले, बहते तो क्या तुम बोले नहीं ? सच तो यह है कि जीवन में जो भी महत्वपूर्ण है, ऐसे ही बोला जाता है। जब दो प्रेमी गहन प्रेम में होते हैं तो चुप बैठ जाते हैं। जब प्रेमी बातचीत करने लगें तो समझना कि पति-पत्नी हो गये। पति-पत्नी चुप नहीं बैठ सकते, | क्योंकि चुप बैठें तो दोनों बंद हो जाते हैं; दोनों बंद हो जाते हैं तो बोझिल हो जाते हैं । तो पत्नी कहने लगती है, 'चुप क्यों बैठे हो ? क्या मतलब?' तो कुछ भी बोलो! बोल जारी रखो, ताकि कहीं ऐसा न हो कि एक-दूसरे की मुर्दानगी और एक-दूसरे की ऊब प्रगट हो जाये। तो बोलते हैं, चेष्टा करके बोलते हैं। नहीं बोलना हो, बोलते हैं। कुछ भी बात ले आते हैं- खबर, समाचार — उसकी चर्चा चलाने लगते हैं। न पत्नी को उस में रस है, न पति को रस है; न पत्नी सुन रही है, न पति बोल रहा है लेकिन वाणी चल रही है। दोनों आसपास शब्दों का जाल बुनते हैं, ताकि कहीं धोखा न टूट जाये, कहीं भ्रम न मिट जाये, कहीं ऐसा न हो जाये कि पता चले कि हम टूट गये, अलग-अलग हो गये ! मेरे एक मित्र हैं। हिमालय की यात्रा को जाते थे। तो मुझसे | कहा, आप चलें। मैंने कहा कि हिमालय की यात्रा पर जाते हो, अच्छा है। तुम पति-पत्नी जा रहे हो, मुझे क्यों और बीच में लेते हो ? मेरे होने से बाधा पड़ेगी। उन्होंने कहा, आप भी क्या बात करते हैं! तीस साल हो गये शादी हुए, अब क्या बाधा खाक पड़ेगी? अब तो हालत ऐसी है कि अगर तीसरा आदमी मौजूद न हो तो हमारी समझ में नहीं आता, क्या करें! इसलिए तो Jain Education International तुम मिटो तो मिलन हो आपसे प्रार्थना कर रहे हैं कि आप चलो, तो थोड़ा रस रहेगा। किसी न किसी को तो ले जाना ही पड़ेगा। पति-पत्नी सदा किसी एक को और साथ ले लेते हैं। दोनों के बीच जरा बातचीत चलाने को सेतु बन जाता है। यह बोलना कोई बोलना है ? लेकिन दो प्रेमी चुपचाप बैठ जाते हैं। देखते हैं चांद को आकाश में। या सुनते हैं हवा की सरसराहट! या देखते हैं चुपचाप तारों को। कुछ बोलते नहीं। लेकिन खुले हैं। बहते हैं एक-दूसरे में, ऊर्जा मिलती है। मिलन होता है। एक गहन तल पर गहन संभोग होता है। पर चुप! शब्द बाधा डालते हैं। जब कोई प्रेमी किसी प्रेयसी से बहुत कहने लगे, बार-बार कहने लगे कि मैं तुझे प्रेम करता हूं, तब समझना कि प्रेम जा चुका, अब बातचीत है। अब प्रेम नहीं है, इसलिए बातचीत से परिपूर्ति करनी पड़ती है। नहीं तो प्रेम काफी है, कहने की जरूरत नहीं है। तो मैं तुमसे कहता हूं, मौन तो आये, लेकिन जीवंत आये, बहता हुआ आये । तुम्हारा प्रवाह न मिटे । तुम बंद न होओ। तुम खुलो । तो फिर मौन भी बंटे। यह मैं तुमसे जो बोल रहा हूं, क्या तुम सोचते हो, बोल रहा हूं? अपना मौन बांट रहा हूं। क्योंकि तुम मेरे मौन को सीधा न समझ सकोगे, शब्दों की सवारी से बांट रहा हूं। शब्दों के ऊपर सवार होकर जो आ रहा है, वह मौन है। घुड़सवार को देखना, घोड़े को ही मत देखते रहना । शब्दों पर जो सवारी करके आ रहा है, जरा उसे देखो! तुम्हें जो मैं देना चाहता हूं, वह शब्द नहीं है। तुम्हें जो देना चाहता हूं, वह मेरा मौन है। तो मौन ही बांटो। कहीं छुपता है कुछ ! अगर जीवंत मौन हो तो मौन ही दिखाई पड़ने लगता है, सघन हो जाता है। जहां से गुजरोगे, दूसरा आदमी चौंककर सुनने लगेगा मौन को जरा पा से ! 'बेदार'! छुपाए से छुपते हैं कहीं तेरे चेहरे से नुमायां हैं आसार मुहब्बत के । कहीं प्रेम छुपा ! कितना छिपाओ, आंख की झलक, चेहरे का रंग-ढंग, ओंठों की मुस्कुराहट; कितना छिपाओ, चाल की गति, उठने-बैठने का प्रसाद, सब तरफ जैसे प्रेमी के आसपास कुछ सूक्ष्म घुंघरू बजते हैं ! 'बेदार'! छुपाए से छुपते हैं कहीं तेरे For Private & Personal Use Only 131 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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