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________________ जिन सूत्र भागः 1 गुरु गोविंद दोइ खड़े, काके लागू पांव। अस्तित्व में लीन हो रहा है और एक गहन चुप्पी घेरती जा रही फिर कबीर कहते हैं, गुरु के ही पैर लगे। है। बस अब तो एक कोने में बैठकर अस्तित्व की लीला 'बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताए।' निहारती रहूं और वक्त आए तो उसमें लीन हो जाऊं। पास में इसके दो अर्थ हो सकते हैं, दोनों महत्वपूर्ण हैं। एक अर्थ तो क्या बचा है! यह हो सकता है कि जब कबीर बिगूचन में पड़ गए तो गुरु ने बहुत शुक्रिया, बड़ी मेहरबानी गोविंद की तरफ इशारा कर दिया कि गोविंद के ही पैर लगो।। मेरी जिंदगी में हुजूर आप आए, बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताये...वह मुक्त कर दिया कदम चूम लूं या आंखें बिछा दूं चिंता से। कहा कि फिक्र न कर मेरी, गोविंद के पैर लग। करूं क्या, यह मेरी समझ में न आए। एक अर्थ तो यह हो सकता है, जो कि सीधा-साधा है। इससे भी महत्वपूर्ण अर्थ है दूसरा, वह यह है कि...बलिहारी गुरु ___ मैं कहता हूं, जो हो बांटो। नाच हो तो नाच। गीत हो तो गीत। आपकी गोविंद दियो बताये...कबीर कहते हैं, पैर तुम्हारे ही | मस्ती हो तो मस्ती। अगर चुप्पी घनी हो रही है तो चुप्पी बांटो! लगूंगा, क्योंकि तुम्हारी ही बलिहारी है कि तुमने गोविंद को | मौन भी बांटो। बताया। फिर गोविंद के तो पैर अब लगते ही रहेंगे, लगते ही बड़ी संपदा है मौन की। मस्ती से भी बड़ी मस्ती है मौन की! रहेंगे, अब तो पैरों में ही पड़े रहेंगे। लेकिन तुम्हारे पैर अब दोबारा नाच से भी गहन नाच है मौन का। गीत से भी गीत, गीत से भी न मिलेंगे। गहन गीत है गीत मौन का-बांटो उसे! गुरु जा रहा है, गोविंद आ रहा है। गुरु विदा हो रहा है। चुप्पी का अर्थ यह थोड़े ही है कि उसे सम्हालकर बैठो। तो सदगुरु वही है जो तुम्हें मिटाए, तुम्हारे हृदय के सिंहासन पर | चुप्पी की कंजूसी हो गई। बैठ जाए-बस उस क्षण तक जब तक तुम तैयार नहीं हो, ध्यान रखना, जीवन में शुभ भी हम इस ढंग से कर सकते हैं सिंहासन तैयार नहीं है, फिर हट जाए। असदगुरु वही है जो तुम्हें कि अशुभ हो जाये और अशुभ भी इस ढंग से कर सकते हैं कि हटाए, तुम्हारे सिंहासन पर बैठ जाए और फिर हटेन। फिर कहे, | शुभ हो जाये-सारी कला यही है। इसी कला को जिसने जान छोड़ो भी अब परमात्मा-अरमात्मा की बातचीत! तो यह तो एक | लिया उसने धर्म को जान लिया। झट से छटे. दसरी में पड़ गए। यह तो अपनी झंझट से छटे तो अब एक तो मौन है जो कंजसी का मौन है। एक तो मौन है कि दूसरे की झंझट में पड़ गए। इससे तो पहली ही झंझट ठीक थी, | जो अपने-आप को बंद कर लेने का मौन है कि हट जाओ दूर कम से कम अपनी तो थी। सबसे-सबसे तोड़ लेनेवाला मौन है। अपने में बंद हो जाओ 'गम नहीं है लाख तूफानों से टकराना पड़े मोनोड बन जाओ, लीबनेस के। सब द्वार-दरवाजे बंद कर दो, मैं हूं वह किश्ती कि जिस किश्ती के साहिल आप हैं।' खिड़कियां बंद कर दो। कोई हवा न आये, कोई रोशनी न आये। एक ही तूफान है और वह तूफान है मूर्छा का! एक ही न अपनी आवाज किसी तक जाये, न किसी की आवाज अपने अंधड़ है, आंधी है और वह अंधड़, आंधी है मूर्छा का, तक आये। तो यह मौन तो मरघट का मौन होगा। इसका गुण प्रमाद का, सोए-सोए होने का। उससे ठीक से टकराओ! निद्रा अलग होगा। यह गुण शुभ नहीं है। यह मौन तो मौत जैसा मौन से टकराकर ही जागरण पैदा होता है। निद्रा से टकराकर होगा। इससे सड़ी लाश की बदबू आयेगी। ही-उसी टकराहट में, उसी घर्षण में-जागरण पैदा होता है। __ इसलिए तुम बहुत-से त्यागी, तपस्वी, मौनियों के पास जाकर, वही जागरण किनारा है। मुनियों के पास सिर्फ लाश की सड़न पाओगे। मौन वहां खिल न पाया, फूल न बना। मौन वहां केवल अभाव रहा। मौन का अर्थ आखिरी प्रश्न: आप कहते हैं कि तुम्हारे पास जो है उसे वहां इतना ही रहा कि बोलते नहीं हैं। यह भी कोई मौन हुआ जो बांटो। मगर ऐसा हो रहा है कि संगीत, नृत्य, मस्ती सब | बोल न सके। मौन तो बोलता है—मौन से भी बोलता है। 1300 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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