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________________ जिन सूत्र भागः1 स्वभाव है, तुम्हारा स्वरूप है। थोड़े साक्षी को साधो! वीणा हैं कि हम जब तक राजी हो पाते हैं एक बात करने को, तब तक सुमधुर होने लगेगी। तार तालमेल में आने लगेंगे। थोड़े साक्षी | आप जा चुके, आप कुछ और कहने लगे! को साधो, संगीत उठेगा। जैसे-जैसे साधते जाओगे वैसे-वैसे | मुझे रोज ही ऐसा करना पड़ेगा। क्योंकि तुम्हें वहां ले जाना संगीत मधुर, सूक्ष्म होता जायेगा। और ऐसी भी घड़ी आती है-उस ला-मंजिल-उस जगह जिसके आगे फिर कोई और है-तब शून्य का भी संगीत उठता है। आ जायेगी घड़ी, | मंजिल नहीं है। और अंत समय में भी तुम्हारे बीच से मुझे हट क्योंकि मैं देखता हं मंजिल के सामने ही तुम बैठे हो। जाना पड़ेगा, क्योंकि मैं तुम्हारा द्वार हूं, दरवाजा हूं; तुम्हारी मंजिल नहीं। चौथा प्रश्नः गुरु यानी गुरुद्वारा। गुरु का केवल इतना ही अर्थ है कि वह बेमुरौअत बेवफा बेगाना-ए-दिल आप हैं, तुम्हें इशारा कर दे परमात्मा की तरफ और हट जाए। आखिरी आप माने या न मानें मेरे कातिल आप हैं। घड़ी में मैं भी हट जाऊंगा। जब तुम पहुंचने-पहुंचने के करीब सांस लेती हूं तो यह महसूस होता है मुझे, होओगे, तब मुझे हट ही जाना पड़ेगा। अन्यथा मैं तुम्हारे लिए जानती हूं दिल में रखने के ही काबिल आप हैं। दीवाल हो जाऊंगा, दरवाजा नहीं। फिर मैं तुम्हें रोषंगा परमात्मा गम नहीं है लाख तूफानों से टकराना पड़े से। तो मुझे बेवफा होना ही पड़ेगा। मैं हं वह किश्ती कि जिस किश्ती के साहिल आप हैं। 'आप माने या न मानें मेरे कातिल आप हैं'–मानता हूं। यह धंधा ही कातिल होने का धंधा है। तरु ने पूछा है। बिलकुल ठीक है : बेमुरौअत, बेवफा! ठहरा गया है ला के जो मंज़िल में इश्क की मुरौअत की नहीं जा सकती। करूं तो तुम्हें रास्ते पर न ला क्या जाने रहनुमा था कि रहजन था, कौन था! गा। कई बार सख्त होना पड़ता है। कई बार तम्हें गहरी चोट प्रेम की मंजिल पर जो तुम्हें ले आता है, तय करना मुश्किल भी करनी पड़ती है। होता है कि वह पथ-प्रदर्शक था कि लुटेरा था। झेन फकीर डंडा लिये रहते हैं। वे अपने शिष्यों के सिर पर डंडे | ठहरा गया है ला के जो मंज़िल में इश्क की मारते हैं। क्या जाने रहनुमा था कि रहजन था, कौन था! स भी है—सक्षम है. उतना स्थल नहीं है। जब तय करना बहत मश्किल है। क्योंकि प्रेम की मंजिल पर वही लगता है, जरूरत है कि तुम नींद में खोये जा रहे हो, तो डंडा भी ला सकता है जो तुम्हें लूटता भी हो। वहां मार्गदर्शक और लुटेरे मारना पड़ता है। तो बेमुरौअत बिलकुल ठीक है, क्योंकि प्रेम है। एक ही हैं, रहनुमा और रहजन एक ही हैं। तुमसे, इसलिए बेमुरौअत होना ही पड़ेगा। क्योंकि प्रेम है, पूरा प्रयास यही तो है कि तुम्हें मिटा दूं, ताकि तुम 'हो' सको! इसलिए तुम्हें जगाना ही पड़ेगा। और माना कि कई बार जब तुम्हें तुम्हारे अहंकार को तोड़ दूं, ताकि तुम्हारा निरहंकार मुक्त हो जगा रहा हूं, तब तुम कोई मीठा सपना देख रहे हो, तो तुम नाराज सके, उठ सके! तुम्हारे अहंकार की जंजीर टूटे, तो ही तुम्हारे भी होते हो। निरहंकार की स्वतंत्रता का आविर्भाव हो। लेकिन अगर तुम 'बेवफा बेगाना-ए-दिल'–ठीक है। तुम जितने मेरे करीब जन्मों-जन्मों तक जंजीरों में रहे हो, तो जंजीरों को तुमने आभूषण आओगे, उतना मैं पीछे दूर हटता जाऊंगा, क्योंकि तुम्हें और मान लिया है। तो जब मैं तुम्हारे आभूषण तोडूंगा-मैं समझता आगे ले जाना है। इसलिए बहुत बार बेवफा मालूम पडूंगा। हूं जंजीरें, तुम समझते हो आभूषण-तो तुम्हें लगेगा कि यह बुलाऊंगा पास और खुद दूर हट जाऊंगा। पुकारूंगा और जब तो...आए थे गुरु के पास, यह आदमी कातिल सिद्ध हुआ। हम तुम चल पड़ोगे तो तुम पाओगे कि मैं वहां नहीं खड़ा हूं जहां से खोजते थे, कोई जो सांत्वना देगा, इसने और सारी सांत्वनाएं पुकारा था। छीन लीं। हम खोजते थे, कोई जो हमारे शृंगार को और थोड़ा इसलिए बहुत-से मित्र मेरे साथ परेशानी में रहते हैं। वे कहते बढ़ावा देगा, जो हमारे आभूषणों को और थोड़ी सजावट देगा। 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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