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________________ गया। बच्चे जो ऊधम कर रहे थे घर में, वह भी सन्नाटा हो गया, वे भी कहीं निकल गये। पास-पड़ोसियों ने द्वार - दरवाजे बंद कर लिये। तो उसने समझा कि निश्चित ही सितार में कुछ भूल है। जिस दुकान से सितार खरीद लाई थी, फोन किया कि आदमी भेजो, सितार में कुछ गड़बड़ है। आदमी आया, ठोक-पीटकर सब उसने कहा, बिलकुल ठीक है। आदमी वापस पहुंचा भी नहीं था कि फिर फोन... उसने कहा, 'भई इतनी जल्दी कैसे बिगड़ गया ?' उसने कहा कि न बजाओ तो सब ठीक रहता है, लेकिन बजाओ कि सब गड़बड़ ! तब उस आदमी को समझ में आया । उसने कहा कि 'देवी! बजाना भी आता है ?' | सितार की भूल नहीं है - बजाना आता है कि नहीं ! कहते हैं, परम संगीतज्ञ, जिनको बजाने की कला आ जाती है, अगर बर्तनों को भी बजा दें तो सितार बज उठते हैं; कंकड़-पत्थरों को टकरा दें तो स्वरों का आरोह-अवरोह हो जाता है । सितार की भूल नहीं है। जीवन की कहीं कोई भूल नहीं है । बजाना न आया। थोड़ा बजाने की फिक्र करो और बजाने का पहला सूत्र है : स्वीकृति । सब, जो परमात्मा ने दिया है, उसका कुछ न कुछ उपयोग है, निरुपयोगी तो हो ही नहीं सकता अस्तित्व में । होगा ही क्यों ? फिर तो अस्तित्व न होगा, अराजकता होगी। सब उपयोगी है। और जल्दी मत करना काटने-पीटने की कि यह गलत है, इसे अलग कर दो; यह गलत है, इसे अलग कर दो जैसे क्रोध है : अगर तुम क्रोध को काट डालो ... अब वैज्ञानिकों के पास उपाय हैं कि शरीर की कुछ ग्रंथियां काट डाली जायें तो आदमी का क्रोध समाप्त हो जाता है। कुछ ग्रंथियां काट डाली जायें तो कामवासना समाप्त हो जाती है। तुम देखते ही हो, सांड कैसे बैल हो जाता है! ग्रंथि काट दी तो बड़ी सरल बात है यह तो । फिर ब्रह्मचर्य के लिए इतना उपद्रव क्यों मचाना। यह इतना सीधा हो जाता है कि सांड देखते-देखते बैल हो जाता है। तो जरा-सी ग्रंथियां काट डालो। क्रोध की भी ग्रंथियां हैं, उसके भी हारमोन हैं— काट डालो ! आज नहीं कल, खतरा है कि दुनिया की सरकारें आदमी से क्रोध की, बगावत की ग्रंथियों को काट देंगी। तो फिर कोई शोरगुल न होगा। फिर कोई हड़ताल न होगी । फिर कोई बगावत, विद्रोह न होगा, कोई क्रांति न होगी । लेकिन तुम जरा सोचो, जिस आदमी के जीवन से क्रोध की Jain Education International तुम मिटो तो मिलन हो ग्रंथि कट जाती है, उसके जीवन में करुणा पैदा नहीं होती, सिर्फ क्रोध का अभाव हो जाता है। उस आदमी का जीवन पहले से बदतर हो जाता है। अब क्रोध भी न रहा । रूखा - रूखा, सूखा-सूखा अब कोई चीज उसे उद्वेलित नहीं करती, लेकिन करुणा का जन्म नहीं होता। क्योंकि करुणा तो तब पैदा होती है जब तुम क्रोध की वीणा को बजाना सीख जाते हो। वीणा तोड़ दी तुमने क्रोध की, तो क्रोध तो न होगा। जैसे कि अगर तुम वीणा फेंक आये बाहर, तो विसंगीत पैदा न होगा, लेकिन संगीत भी पैदा न होगा। क्रोध अगर तोड़ दो तो क्रोध तो पैदा न होगा, लेकिन करुणा भी पैदा न होगी, क्योंकि करुणा उसी वीणा का संगीत है। सजे हुए हाथ, सधे हुए हाथ उसी वीणा पर करुणा को बजाते हैं - बुद्ध, महावीर- र - जिस वीणा पर तुम क्रोध बजाते हो । सधे हुए हाथ उसी जीवन ऊर्जा से निर्विचार बजाते हैं, जिसमें तुम केवल विचारों की उलझन में पड़ जाते हो। सधे हुए हाथ इसी शरीर में अशरीरी को खोज लेते हैं, जिसमें तुम केवल हड्डी-मांस-मज्जा पाते हो । भूल वीणा की नहीं है, इतना स्मरण रखना । चूकने का कोई कारण नहीं है, जरा साज को सम्हालना है। 'बेदार' वह तो हरदम सौ-सौ करे है जलवे इस पर भी गर न देखे तो है कसूर तेरा। परमात्मा तो कितने-कितने ढंग से नाचता है तुम्हारे चारों तरफ ! 'बेदार' वह तो हरदम सौ-सौ करे है जलवे । इस पर भी गर न देखे तो है कसूर तेरा। और जैसा मैं देखता हूं, यह किसी एक ही व्यक्ति का प्रश्न नहीं है - 'ईश्वर बाबू' ने पूछा है - सबका है। जैसा मैं देखता हूं, हर आदमी मंजिल के सामने ही बैठा रो रहा है कि मंजिल कहां, कि किस मार्ग से जायें ! हसरत पे उस मुसाफिरे - बेकस के रोइये जोक के बैठ जाता हो मंजिल के सामने। तुम्हें देखकर हंसी भी आती है, रोना भी आता है। रोना आता है कि तुम बड़े परेशान हो रहे हो। हंसी आती है कि व्यर्थ परेशान हो रहे हो। सामने ही द्वार है। मंजिल के सामने ही थककर बैठे हो। कहीं चलकर जाना नहीं है। कहीं उठकर भी नहीं जाना है। क्योंकि मंजिल तुम्हारे बाहर नहीं है, तुम्हारे भीतर है, तुम्हारा For Private & Personal Use Only 127 www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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