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________________ जिन सत्र भाग सांझ ही सांझ है। आदमी के जगत में सुबह होती है सिर्फ सांझ उजाड़ रेगिस्तान जैसा था। एक उसे पाने के बाद का दुख। को लाने के लिए। आदमी के जगत में जन्म होता है केवल मृत्यु | क्योंकि पाने के बाद, और पाने की अदम्य लालसा जगती है। की तरफ जाने के लिए। यहां जन्म भी मौत की तरफ एक कदम यह कोई ऐसी बात थोड़े ही है कि पूरी हो जाती है कभी। है। यहां सुख भी केवल दुख को पाने की व्यवस्था है। परमात्मा परमात्मा कुछ ऐसा थोड़े ही है कि पा लिया, पा लिया। इधर तो के जगत में फिर कोई सांझ नहीं है, वह तो सदा ही मौजूद है। पाया कि और भी पाने की आकांक्षा जगती है। यह तो सागर उलटा उधर नकाब तो परदे इधर पड़े अंतहीन है। इसका कोई कूल-किनारा नहीं है। आंखों को बंद जलवए-दीदार ने किया। जाहिरा दुनिया जिसे महसूस कर सकती नहीं तुम किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो? उसका ही जलवा है। उसके | हो गई है मुझमें इक ऐसी कमी तेरे बगैर।। ही दर्शन की रोशनी है सब तरफ। तुम किसे खोजते हो? कहीं। मगर यह तो जानने के बाद की बात है। जानने के पहले तो हमें उसकी रोशनी के कारण तुम आंखें बंद किये तो नहीं बैठे? पता ही नहीं कि हम क्या खो रहे हैं। जानने के पहले तो हमें पता उलटा उधर नकाब तो परदे इधर पड़े। ही नहीं है कि हम सम्राट हैं और भिखारी की तरह भटक रहे हैं। परमात्मा जैसे ही अपना घूघट उठाता है, तुम्हारी आंखें बंद हो जानने के बादजाती हैं। जाहिरा दुनिया जिसे महसूस कर सकती नहीं उलटा उधर नकाब तो परदे इधर पडे हो गई है मुझमें इक ऐसी कमी तेरे बगैर आंखों को बंद जलवए-दीदार ने किया। तुझसे छुटकर कितना फीका पड़ गया है रंगेगुल उसकी रोशनी तुम झेल नहीं पाते, आंख बंद कर लेते हो। हो गई बेले की कलियां सांवली तेरे बगैर जिस दिन तुम उसकी रोशनी झेल पाओगे, कंकड़-पत्थर में भी कल जहां जर्रा-जर्रा तूरदर आगोश था उसे छिपा पाओगे। कंकड़-पत्थर मानकर तुमने अपनी आंखें आज इस घर में नहीं है रोशनी तेरे बगैर बंद कर ली हैं। फिर से खोलो। आंख खोलो! दर्शन को दिल नहीं झुकता है पहले की तरह सजदों के साथ उपलब्ध होओ! नामुकम्मिल है मजाके-बंदगी तेरे बगैर। जिन्होंने उसे पाया है, वे कहते हैं : दो दुख हैं जीवन में। एक, और तो और, प्रार्थना में भी मन नहीं लगता अब। जिसने उसे पाने के पहले; एक, उसे पाने के बाद। पाने के पहले का | परमात्मा की एक झलक पा ली, फिर प्रार्थना में भी मन नहीं दुख नकारात्मक है। पाने के बाद का दुख बड़ा विधायक है। लगता; क्योंकि प्रार्थना में भी उसकी कमी ही खलती है। पाने के बाद के दुख में बड़ा रस है। उस पीड़ा में बड़ी मधुरता है, दिल नहीं झुकता है पहले की तरह सजदों के साथ मधुरिमा है। इसलिए तो नारद कहते हैं, भक्त भगवान से प्रार्थना नामुकम्मिल है मजाके-बंदगी तेरे बगैर। करता है : 'मेरे विरह को मत मिटा देना।' यह पाने के बाद की किसी को दिखाई भी न पड़ेगा बाहर से। परमात्मा को पाना, पीड़ा है। तब एक खेल शुरू होता है। वह खो-खोकर | संसार में कुछ पा लेने जैसी बात नहीं है। एक मकान बना लिया, फिर-फिर पाता है; आंख बंद-बंद करके फिर खोलता है। बना लिया–बात खतम हो गई। एक पत्नी से विवाह करना तुमने कभी खयाल किया! कोई बहुत चमत्कारी अनुभव होता था, रचा लिया–बात खतम हो गई। परमात्मा से तो सिर्फ बात हो, बड़ी गहन सुबह हुई हो, सूरज निकला हो, बड़ा प्रीतिकर हो शुरू होती है, खतम कभी नहीं होती। इसलिए तो कहता हूं: वातावरण तम देखते हो, फिर तम आंख बंद करके, फिर सुबह ही सबह है, सांझ नहीं आती। यात्रा का प्रारंभ तो है, फिर खोलकर देखते हो। एक क्षण को आंख बंद कर लेते हो ताकि अंत नहीं है। सागर में उतरते तो हैं, लेकिन फिर किनारा नहीं खो जाये, ताकि आंख ताजी हो जाये। फिर देखते हो। मिलता। लेकिन तब एक तरफ तो पीड़ा भी सालती है कि और परमात्मा को जिन्होंने पाया है, वे कहते हैं : दो दुख हैं। एक तो मिल जाये, गहन अतृप्ति जगती है, एक दिव्य असंतोष पैदा होता उसे पाने के पहले का दुख। वह कुछ भी नहीं है। वह तो सिर्फ है; और दूसरी तरफ हर तरफ से उसकी झलक भी आने लगती 1201 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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