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________________ तुम मिटो तो मिलन हो परमज्ञान को उपलब्ध हुआ, निर्वाण पा लिया उसने, खो गया यह कोई कंजूसी नहीं है। अर्थशास्त्र से इसका कोई लेना-देना सब भांति, बचा वही जो सदा है तो कहते हैं, देवलोक में नहीं है। इसका संबंध तो बड़े अध्यात्म से है। प्रत्येक चीज का देवता आतुर हुए तोझान को देखने को—होना ही चाहिए। सम्मान! तो भोजन करते वक्त भोजन को भी नमस्कार कर के ही क्योंकि देवता कितने ही सुंदर हों, अभी बादल ही हैं; कितने ही भोजन शुरू करना है। भोजन करते वक्त पहले परमात्मा को स्वर्णमंडित हों, अभी बादल ही हैं; कितने ही सुखमय हों, अभी भोग लगा देना है, तब भोजन शुरू करना है। आज फिर उसने सपने में ही हैं। उत्सुक हुए तोझान का चेहरा देखने को। जब भी अवसर दिया! आज फिर घड़ी आई भोजन की! एक दिन और कोई बुद्धत्व को उपलब्ध होता है तो देवता उत्सुक होते हैं। मिला ! उसकी अनुकंपा अपार है-ऐसे भाव से।। उनको भी आकांक्षा जगती है। क्योंकि यह परम घटना घटी। तो तो किसने फेंके ये चावल के दाने? आश्रम में ऐसा कभी भी न देवता आये तोझान के आश्रम में। उन्होंने सब तरफ से चेष्टा की हुआ था। तो तोझान के मन में विचार उठा देखकर, किसने फेंके तोझान को देखने की, पहचानने की; लेकिन कोई चेहरा दिखायी ये चावल के दाने, किसने फेंके ये गेहूं। कहते हैं, उसी वक्त न पड़े। आकाश का कहीं कोई चेहरा है! बादल हो तो रूप-रंग, देवताओं ने उसके दर्शन कर लिये। क्योंकि जब विचार उठा तो रेखा, आकृति...। आकाश तो निराकार है। तोझान तो बादल घिरा। जब बादल घिरा तो आकृति आ गई। उस वक्त आकाश हो गया। उन्होंने सब तरफ से...उसके भीतर गये, पकड़ लिया देवताओं ने तोझान को। एक क्षण को ही उठी लहर, बाहर गये, सब तरफ से खोजा, कुछ भी न पाया। सन्नाटा है, | पर उठ गई। एक क्षण को कुछ सघन हो गया, भीतर एक तनाव अनंत सन्नाटा है, शून्य है! वे बड़े चिंतित हुए कि क्या हमें दर्शन आ गया : किसने, क्यों फेंके ये? यह कैसी गैर-सावधानी है? न होंगे। उसी में से गुजरते थे और उसके दर्शन न हो रहे थे। उसी| यह कौन है जो असावधानी से जी रहा है? एक प्रश्न उठ गया। के आसपास परिक्रमा कर रहे थे और उससे पहचान न हो रही एक समस्या आ गई। एक चिंता आ गई। बादल घिरे। क्षणभर थी! भीतर-बाहर आ जा रहे थे, लेकिन सब सूना सन्नाटा था। को सब अंधेरा हो गया। उस क्षण में देवताओं ने दर्शन कर मंदिर ही बचा था, प्रतिमा तो खो गई थी–दर्शन किसके हों! लिये। फिर खुल गये बादल। राम बचा था, धनुष-बाण खो गये थे, प्रतिमा खो गई थी। कृष्ण तोझान हंसा। उसने कहा, 'तो अच्छा, यह शरारत है।' बचा था, बांसुरी न बची थी, गीता न बची थी। गीता पर रखी उसने देवताओं से कहा, 'अच्छा तो यह शरारत है!' क्योंकि बांसुरी खो गई थी। जब तोझान का चेहरा आया और देवताओं ने तोझान को देखा, आखिर देवताओं में जो सब से ज्यादा कुशल था, उसने कहा, । तो तोझान ने भी देवताओं को देख लिया। उसने कहा, 'अच्छा, 'ठहरो! कुछ उपाय करना पड़ेगा। ऐसे तो दर्शन न होंगे।' तो यह तुम्हारी शरारत है!' तोझान घूमने निकला था। सुबह की बेला! नया-नया ऊगा जरा-सा विचार, और तनाव पैदा हो जाता है। निर्विचार, कि सूरज! पक्षियों के गीत! तोझान लौट रहा था आश्रम की तरफ। आकाश पैदा हो जाता है। उस चालाक देवता ने आश्रम के चौके से कुछ चावल मुट्ठियों में तो श्याम-श्याम रटने से कुछ भी न होगा। रटन ही तनाव भर लिये, कुछ गेहूं मुट्ठी में भर लिये और आकर तोझान के रास्ते बनेगी, बादल बनेगी। राम चदरिया ओढ़ लेने से कुछ भी न पर उन्हें फेंक दिया। होगा। सब चादर उतार देनी है। __ अब...झेन आश्रम में बड़ी सावधानी बरती जाती है। क्योंकि जिस क्षण तुम्हें पता भी न रहेगा कि परमात्मा की प्रतिमा कैसी, प्रत्येक चीज का अपरिसीम सम्मान है। अन्न तो ब्रह्म है। नाम भी याद न रहेगा कि उसका नाम क्या है, उसका धाम क्या इसलिए कोई झेन साधु, कोई झेन साधक ऐसे चावल और गेहं है, पता-ठिकाना क्या है; जिस क्षण तुम अबझ, को फेंक नहीं सकता रास्ते पर। इसमें कोई अर्थशास्त्र का सवाल आश्चर्यचकित, अवाक, मौन, निराकार में खड़े हो नहीं है। यह कोई गांधीवादी बचायत और किफायत नहीं है। यह जाओगे-फिर कोई सांझ न होगी; फिर सुबह ही सुबह है। सवाल नहीं है। सवाल यह है कि प्रत्येक चीज का समादर है। परमात्मा के जगत में सुबह ही सुबह है; आदमी के जगत में 119 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibra y.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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