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________________ कम से कम मुझे कहा तो होता! तुमने मुझे इस योग्य भी न लेकिन वे ऐसे रहने लगे उस महल में जैसे न हों। चलते जैसे समझा ! इसी बात का मुझे दुख रहा है। छाया चलती हो, धूल भी न हिलती। उठते-बैठते, लेकिन किसी यशोधरा ने बारह वर्ष बाद कहा कि तुमने मुझ पर इतना भी के बीच में न आते। घर के, परिवार के, लोगों को पता ही न भरोसा न किया। इतना तो सम्मान दिया होता मुझे भी! मुझ से चलता कि वे हैं या नहीं हैं! ऐसे चुप हो गये। ऐसे गुमसुम हो पूछ तो लिया होता! मैं रोकती, फिर भी तुम्हें जाना होता तो तुम | गये। ऐसे 'ना' हो गये। शून्यवत घूमने लगे उस घर में। गये होते! लेकिन तुमने यह कैसे मान लिया कि मैं रोकती ही? | आखिर घर के लोगों ने भाई से कहा, बड़े भाई से, कि अब व्यर्थ क्या जरूरी था कि रोकती ही? मेरे मन में यह घाव की तरह रहा है रोकना। यह तो जा ही चुका। रोककर भी हम क्या रोकें? हम है कि तुमने मुझसे पूछा भी नहीं, रात तुम चोर की तरह भाग | सोचते हैं कि यह है, मगर है नहीं। महीनों बीत जाते हैं, किसी गये! जिसके साथ संबंध जोड़ा था, जिसके साथ प्रेम के नाते को पता ही नहीं चलता, न किसी बात में भाग लेता, न किसी बनाये थे, उससे कम से कम पूछ तो लेते, विदा तो ले लेते! चर्चा में भाग लेता, न अपना कोई मंतव्य देता, न किसी को बाधा महावीर ने ऐसा न किया। महावीर जाना चाहते थे और मां से डालता। तो अब 'न होने' का और क्या अर्थ होता है? होने से पूछा। स्वाभाविक, जिसने जीवन दिया, अब जीवन को छोड़ते | सार क्या है? हम इसे व्यर्थ रोक रहे हैं और हम व्यर्थ ही पाप के हैं, कम से कम उससे तो पूछ लें! भागी हो रहे हैं। और मां ने कहा कि नहीं, मेरे सामने यह बात ही मत उठाना। तो भाई और परिवार के लोग इकट्ठे हुए। उन्होंने महावीर से मैं मर जाऊंगी दुख से। उसका पाप तुम्हीं को लगेगा। फिर | कहा, तुम जा ही चुके हो, अब हम तुम्हें न रोकेंगे। ऐसे उन्होंने तुम्हारी अहिंसा कहां रहेगी? घर छोड़ा। घर छोड़ने के बहुत पहले महावीर ने घर छोड़ दिया तो महावीर, कहते हैं, चुप हो गये। यह बड़ी अनूठी घटना है था। घर से निकलने के बहुत पहले, घर से निकल गये थे। और मनुष्य के इतिहास की, कि महावीर ने फिर विवाद भी न किया, मैं जानता हूं कि अगर भाई ने न कहा होता तो वे सदा घर में रहे तर्क भी न किया, दुबारा आग्रह भी न किया। जब मां मर गई, आते। क्या फर्क पड़ता था? इसलिए महावीर का वैराग्य बड़ा मरघट से लौटते वक्त अपने बड़े भाई को कहा कि अब क्या गहन है। वह भगोड़ापन नहीं है। वह क्रांति है, रूपांतरण है। खयाल है? अब तो जा सकता हूं? फिर जंगल भी चले गये। बारह वर्ष एक गहरा प्रशिक्षण था। घर भी न आ पाये थे। जंगल में बहुत साधा। बहुत निखारा अपने को। सब तरह से बड़े भाई ने कहा कि तुम थोड़ा सोचो तो! मां को दफनाकर शन्य किया। शब्द गंवाये। मौन में उतरे। शब्द छोड़ ही दिये। लौट रहे हैं, अभी घर भी नहीं पहुंचे हैं, छाती पर पत्थर पड़ा है, वाणी खो ही गई। तब फिर वापिस लौटे। क्योंकि जंगल में पाया तुम्हें त्याग की पड़ी है। यह कोई मौका है? । जा सकता है, लेकिन बांटना तो बस्ती में ही होगा। वृक्षों, महावीर ने कहा, 'इससे और अच्छा मौका कहां होगा?' पशुओं के पास पाया जा सकता है, देना तो मनुष्य को ही होगा। इसको वे कहते हैं, वैराग्य की जहां भी संभावना हो उसको और जब मिलता है तो देना होगा। महावीर ने धन ही नहीं छोड़ा; सम्मान देना। मृत्यु से बड़ी वैराग्य की संभावना क्या होगी। मां | जब उन्होंने परम धन पाया, उसको भी लुटाया। एक बार छोड़ने मर गई, इससे बड़ी और क्या जगानेवाली घटना हो सकती है? | का मजा आ जाये तो परम धन पाकर भी आदमी लुटाता है। जब मां मर गई, मुझे जन्म देनेवाली मर गई, तो मैं भी मरूंगा। 'अपने राग-द्वेषात्मक संकल्प ही सब दोषों के मूल हैं, जो इस मुझे जन्म देनेवाली न बच सकी तो मेरे बचने का क्या उपाय है? | प्रकार के चिंतन में उद्यत होता है तथा इंद्रिय-विषय दोषों के मूल उसी शृंखला की कड़ी हूं। जाने दो मुझे! भाई ने कहा कि नहीं, नहीं हैं, इस प्रकार का संकल्प करता है, उसके मन में समता तुम न जा सकोगे। जब तक मैं तुम्हें आज्ञा न दूं, न जा सकोगे। उत्पन्न होती है।' बड़े भाई की आज्ञा का खयाल रखना। तत्क्षण भी समता का स्वाद आ जायेगा। तुम जरा घर में कहते हैं, महावीर फिर चुप हो गये। दो-चार वर्ष बीत गये, बैठे-बैठे ऐसे सोचो कि घर के बाहर हो। तुम पत्नी के पास 108 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001818
Book TitleJina Sutra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1993
Total Pages700
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, K000, & K999
File Size25 MB
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