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________________ ५६६ गो. जीवकाण्डे = a इंती प्रकारदिदमसंख्यातलोकमात्रवारषट्स्थानवृद्धिर्गाळद संवृद्धंगळप्पनंतभाग'२२२२२ वृद्धियुक्तजघन्यज्ञानविकल्पं मोदल्गोंडु सर्वचरमोव्वंकवृद्धियुक्तसर्बोत्कृष्टज्ञानावसानमाद असंख्यातलोकमात्रंगळप्प ज्ञानविकल्पंगळे नितोळवनितुं पर्यायसमासज्ञानविकल्पंगळप्पुवे बुदत्यं । उवरि इल्लिद मेले अक्षरगं अक्षरगतज्ञानमप्प श्रुतज्ञानमं वक्ष्यामि पेळ्द। अनंतरमक्षरगतश्रुतज्ञानमं पेकदपं। चरिमुव्वंकेणवहिद अत्थक्खरगुणिदचरिममुब्वंकं । अत्थक्खरं गाणं होदित्ति जिणेहि णिद्दिद्वं ॥३३३।। चरमोर्वकेनापहृतार्थाक्षर गुणितचरमउव्वंकः । अक्षरंतु ज्ञानं भवतीति जिननिद्दिष्टं ॥ पायसमासज्ञानविकल्पंगळ संबंधिगळप्पसंख्यातलोकमात्रवारषट्स्थानंगळोळु भागवृद्धिगुणवृद्धियुक्तास्थानंगळोळु तवृद्धिनिमित्तंगळप्प संख्याताऽसंख्यातानंतंगळवस्थितंगळु प्रतिनियतप्रमाणंगळप्पुरदं चरमषट्स्थानद चरमोव्वंकदिदं मुंदणष्टांकवृद्धियुक्तस्थानमाक्षरश्रुतज्ञानमप्पुरिदमा पूर्वप्रतिनियताष्टांकप्रमाणमल्तीयष्टांक विलक्षणमप्पुदंदु पेन्दपं । असंख्यातलोक षट्स्थानवारा भवन्ति २ २ २ २ २ एवमनेन प्रकारेण असंख्यातलोकवारषट्स्थानवृद्धिसंवृद्धा a a a a अनन्तभागवृद्धियुक्तजघन्यज्ञानविकल्पमादिं कृत्वा सर्वचरमोर्वङ्कवृद्धियुक्तसर्वोत्कृष्टज्ञानावसाना असंख्यातलोक१५ मात्रा ज्ञानविकल्पा यावन्तस्तावन्तः पर्यायसमासज्ञानविकल्पा भवन्ति इत्यर्थः । इत उपरि अक्षरगतं श्रुतज्ञानं वक्ष्यामि ।।३३२॥ अथाक्षरगतं श्रुतज्ञानं प्ररूपयति पर्यायसमासज्ञानविकल्पसम्बन्धिषु असंख्यातलोकमात्रवारषट्स्थानेषु भागवृद्धिगुणवृद्धियुक्तेषु तवृद्धिनिमित्तसंख्यातासंख्यातानन्ता अवस्थिताः प्रतिनियतप्रमाणा भवन्ति इति चरमषट्स्थानस्य चरमोर्वङ्कतो ऽग्रेतनमष्टाङ्कवृद्धियुक्तस्थानं अर्थाक्षरश्रुतज्ञानं भवति इति तत्पूर्वकप्रतिनियताष्टाङ्कप्रमाणं अत्रतनाष्टाङ्कविल. क्षणमिति कथयति बार षट्स्थान वृद्धिसे बढ़े हुए पर्याय समास ज्ञानके विकल्प होते हैं । सो अनन्त भाग वृद्धिसे युक्त जघन्य ज्ञानके विकल्पसे लेकर सबसे अन्तिम उर्वक नामक अनन्त भाग वृद्धि युक्त सबसे उत्कृष्ट ज्ञान पर्यन्त असंख्यात लोक मात्र ज्ञानके विकल्प होते हैं। वे सब पर्याय समास ज्ञानके विकल्प हैं । यहाँसे आगे अक्षरात्मक श्रुतज्ञानको कहेंगे ॥३३२॥ अब अक्षरश्रुतज्ञानको कहते हैं पर्याय समास ज्ञानके विकल्प सम्बन्धी असंख्यात लोक मात्र षट्स्थान भाग वृद्धि और गुणवृद्धिको लिये हुए हैं। उनमें वृद्धिके निमित्त संख्यात, असंख्यात और अनन्त अवस्थित हैं, उनका प्रमाण निश्चित है। अर्थात् संख्यातका प्रमाण उत्कृष्ट संख्यात मात्र, असंख्यातका प्रमाण असंख्यात लोक मात्र और अनन्तका प्रमाण जीवराशि मात्र निश्चित ३० है। अन्तिम षस्थानका अन्तिम उर्वक जो अनन्त भाग वृद्धिको लिए हुए पर्याय समास ज्ञानका सर्वोत्कृष्ट भेद है, उससे आगेका अष्टांक अर्थात् अनन्त गुण वृद्धि युक्त स्थान अर्था ०५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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