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________________ ५५८ गो० जीवकाण्डे मुळ्ळ्दरिदं तत्रिचतुत्थं मुंपेळ्दसंख्यातभागवृद्धियुक्तोत्कृष्टसंख्यातमात्रस्थानंगळ त्रिचतुर्थभागस्थानंगळु सलुत्तं विरलल्लिय प्रक्षेपकमुं प्रक्षेपकप्रक्षेपकमें बेरडु वृद्धिगळं जघन्यदोळिक्कल्पडुत्तिरलु लब्ध्यक्षरं द्विगुणमक्कुमदेते दोडे प्रक्षेपकप्रक्षेपकद रूपोनगच्छदेकवारसंकलनधनप्रमितद ज १५ । ३ । १५ । ३ ऋणमं बेरिरिसि ज १।३ अपत्तितधनमिदु ज ९ इदरोळोंदु रूपं१५ । १५ । ४।२।४।१ १५ ३२ तगेडु धनम बेरिरिसूिदु ज १ शेषापर्वात्ततधनं ज १ इदं प्रक्षेपकवृद्धियोळु ज ३ कूडिदोडे ३२ संख्यातमात्रस्थानानां त्रिचतुर्थभागस्थानानि नीत्वा तत्र प्रक्षेपकः प्रक्षेपकप्रक्षेपकश्चेति वृद्धिद्वये जघन्यस्योपरि युते लब्ध्यक्षरं द्विगुणं भवति । तद्यथा प्रक्षेकप्रक्षेपकस्य रूपोनगच्छस्य एकवारसंकलनधनप्रमितस्य ज १५ ३ । १५ ३ ऋणं पृथककृत्य १५ १५ ४ २ ४१ ज १ ३ शेषमपवर्त्य ज ९ एकरूपं पृथग न्यस्य ज १ शेषे ज ८ अपवर्त्य ज १ प्रक्षेपकवृद्धौ ज ३ १५ ३२ ३२ ३२ ३२ १० संख्यात मात्र स्थानोंको चारसे भाग देकर उनमें-से तीन भाग प्रमाण स्थानोंके होनेपर प्रक्षे पक और प्रक्षेपक-प्रक्षेपक इन दोनों वृद्धियोंको साधिक जघन्य ज्ञान में जोड़नेपर लब्ध्यक्षर ज्ञान साधिक दूना होता है । कैसे, सो कहते हैं-पूर्व वृद्धि होनेपर जो साधिक जघन्य ज्ञान हुआ उसमें दो बार उत्कृष्ट संख्यातसे भाग देनेपर प्रक्षेपक-प्रक्षेपक होता है। सो एक हीन गच्छका संकलन धन मात्र प्रक्षेपक-प्रक्षेपककी वृद्धि यहाँ करनी है। पूर्वोक्त करण सूत्रके १५ अनुसार उस प्रक्षेपक-प्रक्षेपकको एक हीन उत्कृष्ट संख्यातके तीन चौथाई भागसे और उत्कृष्ट संख्यातके तीन चौथाई भागसे गुणा करना और दो और एकसे भाग देना। ऐसा करनेपर साधिक जघन्यका एक हीन तीन गुणा उत्कृष्ट संख्यात और तीन गुणा उत्कृष्ट संख्यात तो गुणाकार हुआ तथा दो बार उत्कृष्ट संख्यात और चार दो, चार एक भागहार हुआ । एक हीन सम्बन्धी ऋणराशि साधिक जघन्यको तीनका गुणाकार और उत्कृष्ट संख्यात तथा २० बत्तीसको भागहार करनेपर होती है। उसको अलग रखकर शेषका अपवर्तन करनेपर साधिक जघन्यको नौसे गुणा और बत्तीससे भाग प्रमाण हुआ। साधिक जघन्यका चिह्न जं ऐसा है सो ज हुआ। विशेषार्थ-यहाँ दो बार उत्कृष्ट संख्यातका गुणाकार और भागहारका अपवर्तन किया । गुणाकार तीन-तीनको परस्पर में गुणा करनेसे नौका गुणाकार हुआ और चार, दो, २५ चार एक भागहारको परस्परमें गुणा करनेसे बत्तीस भागहार हुआ। ऐसे ही अन्यत्र भी जानना । अस्तु। __ इस ज में एक गुणाकार साधिक जघन्यका बत्तीसवाँ भाग है ज ३। इसको अलग रखकर शेष साधिक जघन्यको आठकागुणाकार और बत्तीसका भागहार रहा। इसका अपवर्तन करनेपर साधिक जघन्यका चौथा भाग रहा ज१। प्रक्षेपक गच्छ प्रमाण है सो ३. साधिक जघन्यको एक बार उत्कृष्ट संख्यातका भाग देनेपर प्रक्षेपक होता है उसको उत्कृष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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