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________________ ५५७ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका उक्कस्ससंखमेत्तं तत्तिचउत्थेक्कदालछप्पण्णं । सत्तदसमं व भागं गंतूण य लद्धियक्खरं दुगुणं ॥३३१॥ उत्कृष्टसंख्यातमात्र तत्रिचतुत्कचत्वारिंशत् षट्पंचाशत् सप्तदशमं वा भागं गत्वा च लब्ध्यक्षरं द्विगुणं ॥ रूपाधिककांडकगुणितांगुलसंख्यातभागमात्रवारंगळननंतभागवृद्धिस्थानंगळु २ २ मवर ५ a a मध्यदोछ सूच्यंगुलासंख्यातभागमात्रवारंगळनसंख्यातभागवृद्धिस्थानंगळु सलुत्तिरलु २ तदुभय वृद्धियुक्तजघन्यद एकवारं संख्यातभागवृद्धिस्थानमुत्पन्नमक्कु ज १५ मुंद मत्तं मुं पेळ्द क्रमवृद्धिद्वयसहचरितंगळोळु संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानंगळुत्कृष्टसंख्यातमात्रंगळ सलुत्तमिरलु अल्लि प्रक्षेपकवृद्धियं कूडुत्तिरलु लब्ध्यक्षरं सर्वजघन्यमप्प पर्यायमें ब श्रुतज्ञानं साधिकमागि द्विगुणमक्कुमेके दोडे प्रक्षेपकदुत्कृष्टसंख्यातभाज्यभागहारंगळनपत्तिसि कूडिदोडे अदक्क द्विगुणत्वसंभव- १० रूपाधिककाण्डकगुणितामुलासंख्यातभागमात्रवारान् अनन्तभागवृद्धिस्थानेषु अङ्गुलासंख्यातभागमात्रवारान् असंख्येयभागवृद्धिस्थानेषु च गतेषु तदुभयवृद्धियुक्तजघन्यस्य एकवारं संख्यातभागवृद्धिस्थानमुत्पद्यते ज १५ अग्रे पुनः प्रागुक्तक्रमवृद्धिद्वयसहचरितेषु संख्यातभागवृद्धियुक्तस्थानेषु उत्कृष्टसंख्यातमात्रेषु गतेषु १५ तत्र प्रक्षेपकवृद्धिषु युतासु लब्ब्यक्षरं सर्वजघन्यपर्यायाख्यं श्रुतज्ञानं साधिकद्विगुणं भवति । कुतः ? प्रक्षेपकस्य उत्कृष्टसंख्यातभाज्यभागहारानपवर्त्य युते तस्य द्विगुणत्वसंभवात् तत्त्रिचतुर्थं पूर्वोक्तसंख्यातभागवृद्धियुक्तोत्कृष्ट- १५ एक अधिक सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागसे गुणित अंगुलके असंख्यात भाग बार अनन्त भाग वद्रियोंके होनेपर तथा अंगलके असंख्यात भाग बार असंख्यात भाग वढिके हो नेपर उन दोनों वृद्धियोंसे युक्त जघन्य पर्याय ज्ञानका एक बार संख्यात भाग वृद्धि युक्त स्थान उत्पन्न होता है। आगे पुनः पूर्वोक्त अनन्त भाग वृद्धि और असंख्यात भाग वृद्धिके साथ संख्यात भाग वृद्धिसे युक्त स्थानों के उत्कृष्ट संख्यात मात्र होनेपर उनमें प्रक्षेपक वृद्धियोंको २० जोड़नेपर लब्ध्यक्षर नामक सर्व जघन्य पर्याय श्रुतज्ञान साधिक दुगुना होता है। कैसे होता है यह बतलाते हैं-पूर्ववृद्धिके होनेपर जो साधिक जघन्य ज्ञान हुआ उसे अलग रखकर उस साधिक जघन्य ज्ञानमें उत्कृष्ट संख्यातका भाग देनेपर प्रक्षेपक होता है । तथा उत्कृष्ट संख्यात मात्र प्रक्षेपक है क्योंकि गच्छमात्र प्रक्षेपक वृद्धि होती है सो यहाँ उत्कृष्ट संख्यात मात्र संख्यात वृद्धि के स्थान हुए इसलिये उत्कृष्ट संख्यात मात्र प्रक्षेपक बढ़ाने है। सो यहाँ २५ उत्कृष्ट संख्यात मात्र प्रक्षेपक होनेसे उत्कृष्ट संख्यात ही गुणाकार हुआ। इस तरह गुणाकार भी उत्कृष्ट संख्यात और भागहार भी उत्कृष्ट संख्यात; क्योंकि साधिक जघन्य ज्ञानमें उत्कृष्ट संख्यातका भाग देनेसे प्रक्षेपक होता है । सो गुणाकार और भागहारका अपवर्तन करने पर साधिक जघन्य ज्ञान रहा । उस अलग रखे साधिक जघन्य ज्ञानमें मिलाने पर जघन्य ज्ञान साधिक दूना होता है। तथा 'तत्तिचउत्थ' अर्थात् पूर्वोक्त संख्यात भाग वृद्धि युक्त उत्कृष्ट ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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