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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ५३९ तवृद्धिगळप्प प्रक्षेपकंगळारुमं प्रक्षेपकप्रक्षेपकंगळ् पदिनदुमं पिशुलिगळिप्पत्तुमं पिशुलिपिशुलिगळ् पदिनदुमं चूणिगळारुमनोंदु चूणिचूणियुमं यथाक्रमदिदं केळगे केळरो स्थापिसुवुदितनंतभागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सूच्यंगुलासंख्यातभागमानंगळेळवरोळं बेक्य्दु तंतम्म जघन्यंगळ केळगे केळगे तंतम्म प्रक्षेपकंगळु गच्छमात्रंगळप्पुववं स्थापिसि यवर केळगे प्रक्षेपकप्रक्षेपकंगळु रूपोनगच्छेय एकवारसंकलनधनमात्रंगळप्पुववं स्थापिसुवुदवर केळगे पिशुलिगळु द्विरूपोनगच्छेय द्विकवार- ५ संकलनधनमात्रंगळप्पुववं स्थापिसि यवर केळगे पिशुलिपिशुलिगळु त्रिरूपोनगर्छय त्रिकवारसंकलनधनमात्रंगळप्पुववं स्थापिसि यवर केळगे चूणिगळु चतुरूपोनगच्छेय चतुर्वारसंकलनधनमात्रंगळप्पुववं स्थापिसि यवर केळगे चूणिचूणिगळू पंचरूपोनगच्छेय पंचवारसंकलनधनमात्रंगळप्पुववं स्थापिसुवुदितु स्थापिसुतं पोगुत्तिरलु चरमाननंतभागवृद्धियुक्तस्थानविकल्पदोळु तज्जघन्यमुपरि न्यस्य तदधस्तनभागे तद्वृद्धेः पञ्च प्रक्षेपकान् दश प्रक्षेपकप्रक्षेपकान् दश पिशुलीन पञ्च १० पिशुलिपिशुलीन् एकं चूणि च अधोधो न्यस्येत् । षष्ठविकल्पे तज्जघन्यमुपरि न्यस्य तदधस्तनभागे तद्वृद्धेः षट् प्रक्षेपकान् पञ्चदश प्रक्षेपकप्रक्षेपकान् विंशति पिशुलीन् पञ्चदश पिशुलिपिशुलीन् षट् चूर्णीन् एकं चूणिचूणि च अधोधो न्यस्येत्, एवमनन्तभागवृद्धियुक्तस्थानेषु सूच्यङ्गलासंख्येयभागमात्रेषु सर्वेष्वपि स्वस्वजघन्यानामधोधः स्वस्वप्रक्षेपकान् गच्छमात्रान् न्यस्येत्, तेषामधः प्रक्षेपकप्रक्षेपकान् रूपोनगच्छस्य एकवारसंकलनधनमात्रान् न्यस्येत् । तेषामधः पिशुलीन् द्विरूपोनगच्छस्य द्विकवारसंकलनधनमात्रान् न्यस्येत् । तेषामधः पिशुलिपिशुलीन् १५ त्रिरूपोनगच्छस्य त्रिकवारसंकलनधनमात्रान् न्यस्येत्, तेषामधः चूर्णीन् चतुरूपोनगच्छस्य चतुर्वारसंकलनधनमात्रान् न्यस्येत् । तेषामधः चूणिचूर्णीन् पञ्चरूपोनगच्छस्य पञ्चवारसंकलनधनमात्रान् न्यस्येत् । एवं गत्वा छह प्रक्षेपक-प्रक्षेपक, चार पिशुलि और एक पिशु लि-पिशुलि स्थापित करें। पाँचवें विकल्पमें जघन्यको ऊपर स्थापित करके उसके नीचे-नीचे उसकी वृद्धिके पाँच प्रक्षेपक, दश प्रक्षेपकप्रक्षेपक, दस पिशुलि, पाँच पिशुलि-पिशुलि और एक चूर्णि स्थापित करे। छठे विकल्पमें २० जघन्यको ऊपर स्थापित करके उसके नीचे-नीचे उसकी वृद्धिके छह प्रक्षेपक, पन्द्रह प्रक्षेपकप्रक्षेपक, बीस पिशुलि, पन्द्रह पिशुलि-पिशुलिा, छह चूर्णि और एक चूर्णि-चूणि स्थापित करे । प्रकार सच्यंगलके असंख्यातवें भाग मात्र अनन्त भाग वृद्धि युक्त सब पर्याय समास ज्ञानके स्थानोंमें अपने-अपने जघन्यके नीचे-नीचे अपने-अपने प्रक्षेपकोंको गच्छ प्रमाण स्थापित करना। उनके नीचे प्रक्षेपक-प्रक्षेपक एक कम गच्छके एक बार संकलन धन मात्र २५ स्थापित करना । उनके नीचे पिशुलि दो हीन गच्छके दो बार संकलन धन मात्र स्थापित करना। उनके नीचे पिशुलि-पिशुलि तीन हीन गच्छके तीन बार संकलन धन मात्र स्थापित करना । उनके नीचे चूणि चार हीन गच्छके चार बार संकलन धनमात्र स्थापित करना । उनके नीचे चूर्णि-चूर्णि पाँच हीन गच्छके पाँच बार संकलन धन मात्र स्थापित करना । इसी प्रकार क्रमसे एक हीन गच्छका एक-एक अधिक बार संकलन चूर्णि-चूणि ही अन्त पर्यन्त ३० जानना । अनन्त भाग वृद्धि युक्त स्थानोंमें अनन्तका जो स्थान है, उनमें से जघन्यको ऊपर स्थापित करना। उसके नीचे क्रमानुसार प्रक्षेपकोंको सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र इस प्र १. म केलगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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