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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
तिरलु पर्य्यायसमासषष्ठ श्रुतज्ञानविकल्पमक्कु ज १६ १६ १६ १६ १६ १६ मितु सूच्यंगुलासंख्यातैकभागमात्रानंतैक भागवृद्धियुक्तस्थानंगळु सर्व्वमु नडसल्पडुवुवल्लि तद्वृद्धिगळ्ये तज्जघन्यं
१६ १६ १६ १६ १६ १६
ते पर्यायसमासषष्ट तज्ञानविकल्पः ज १६ १६ १६ १६ १६ १६ एवं सूच्यङ्गुला संख्यातैक
१६ १६ १६ १६ १६ १६ भागमात्राणि अनन्तैकभागवृद्धियुक्तस्थानानि सर्वाण्यानेतव्यानि ।
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उसी में मिलाने पर पर्याय समास ज्ञानका भेद होता है । यहाँसे अनन्त भाग वृद्धिका प्रारम्भ हुआ । इसी प्रकारच्यंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण अनन्त भाग वृद्धि होनेपर जो पर्याय समास ज्ञानका भेद हुआ, उसमें पुनः असंख्यातसे भाग देनेपर जो परिमाण आया, उसको उसी भेद में मिलाने पर दूसरी असंख्यात भाग वृद्धिको लिये पर्याय समास ज्ञानका भेद होता है ।
इसी क्रम से सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण असंख्यात भाग वृद्धिके पूर्ण होनेपर १० जो पर्याय समास ज्ञानका भेद हुआ, उसमें अनन्तका भाग देनेपर जो परिमाण आवे, उसको उसी में मिलानेपर पर्याय समास ज्ञानका भेद होता है । यहाँ पुनः अनन्त भाग वृद्धिका प्रारम्भ हुआ सो सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण अनन्त भाग वृद्धि के पूर्ण होनेपर जो पर्याय समास ज्ञानका भेद हुआ, उसको उत्कृष्ट संख्यातसे भाग देनेपर जो परिमाण आया, उसको उसीमें मिलानेपर प्रथम संख्यात भाग वृद्धिको लिये पर्याय समासका भेद होता है । १५ इससे आगे पुनः अनन्त भाग वृद्धि प्रारम्भ होती है। सो जैसे पूर्व में कहा है, उसीके अनुसार वृद्धि जानना | इतना विशेष है कि जिस भेदसे आगे अनन्त भाग वृद्धि होती है, उसी भेदमें जीवराशि प्रमाण अनन्तका भाग देनेपर जो परिमाण आवे, उसे उसी भेदमें मिलानेपर अनन्तरवर्ती भेद होता है । तथा जिस भेदसे आगे असंख्यात भाग वृद्धि होती है, वहाँ उसी भेदको असंख्यात लोक प्रमाण असंख्यातसे भाग देनेपर जो परिमाण आवे, उसको उसी २० भेद में मिलानेपर उससे अनन्तरवर्ती भेद होता है । तथा जिस भेदसे आगे संख्यात भाग वृद्धि हो, वहाँ उसी भेदको उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण संख्यात से भाग देनेपर जो परिमाण आवे, उसे उसी भेद में मिलानेपर उससे आगेका भेद होता है । तथा जिस भेदसे आगे संख्यात गुण वृद्धि होती है, वहाँ उस भेदको उत्कृष्ट संख्यातसे गुणा करनेपर उस भेदसे अनन्तरवर्ती भेद होता है । जिस भेदसे आगे असंख्यात गुण वृद्धि होती है, वहाँ उसी भेदको असंख्यात लोकसे २५ गुणा करनेपर उससे आगेका भेद होता है । जिस भेदसे आगे अनन्त गुण वृद्धि होती है, वहाँ उसी भेदको जीवराशि प्रमाण अनन्तसे गुणा करनेपर उससे आगेका भेद होता है; इस प्रकार षट्स्थान पतित वृद्धिका क्रम जानना ।
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यहाँ जो संख्या कही है सो सब संख्या ज्ञानके अविभागी प्रतिच्छेदोंकी जानना । तथा जो यहाँ भेद कहे हैं, उनका भावार्थ यह है कि जीवके पर्याय ज्ञानसे यदि बढ़ता हुआ ३० ज्ञान होता है, तो पर्याय समासका प्रथम भेद ही होता है । ऐसा नहीं है कि किसी जीव के पर्यायज्ञानसे एक-दो अविभाग प्रतिच्छेद बढ़ता हुआ भी ज्ञान हो ।
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