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________________ ९२२ गो० जीवकाण्डे एकेंद्रियादिजातिनामकर्मोदयजनितजीवपर्यायक्किद्रियव्यपदेशमक्कुमा यिद्रियमार्गणेगळेकेंद्रियादिपंचप्रकारमप्पुवु। मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळु पर्याप्तापर्याप्तकद्वित्रिचतुःपंचेंद्रियंगळय्दुमप्पुवु। सासादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थानदोळु एकेंद्रियादिपंचेंद्रियपय्यंतमादय्दुमपर्याप्तजीवंगळं पर्याप्त५ पंचेंद्रियजीवंगळुमप्पुवु । मिश्रगुणस्थानदोळु पर्याप्तपंचेंद्रियमो देयक्कुं । असंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानदोळु पर्याप्ताऽपर्याप्तसंज्ञिपंचेंद्रियजीवंगळेयप्पुवु । देशसं यतगुणस्थानदोळु पर्याप्तपंचेंद्रियमो देयककुं। प्रमतगुणस्थानदोळु पर्याप्तपंचेंद्रियमो देयक्कुमल्लि आहारकऋद्धियुक्तनोळ तद्ऋद्धचपेक्षायदं पर्याप्तापर्याप्ताहारकशरीरपंचेंद्रियमुमक्कुं। अप्रमत्तगुणस्थानदोळु मेले क्षीण कषायगुणस्थानपर्यंत आरु गुणस्थानंगळोळु प्रत्येकं पर्याप्तपंचेंद्रियमेयक्कुं। सयोगकेवलिगुण१० स्थानदोजुपर्याप्तपंचेंद्रियमेयक्कुमल्लि समुद्घातकेवल्यपेक्षयिदं मुं पेन्दंतऽपर्याप्तपंचेंद्रियमुमक्कुं। अयोगिकेवलिगुणस्थानदोळु पर्याप्तपंचेंद्रियमेयकुंमि । सा । मि । अ । दे। प्र । अ । अ । अ । सू । उ । क्षी । स । अ । पृथ्वीकायादिविशिष्टैकेंद्रियजातिस्थावरनामकर्मोददिदमुं त्रसनामकर्मोदयविदामाद जीवपर्यायक्क कायत्वव्यपदेशमक्कुमा कायत्वमुं पृथ्विकायिकमुमप्कायिकमुं तेजस्कायिक, वातकायिकमुं वनस्पतिकायिकमुमेंदुं त्रसकायिक में दितु षड्भेदमक्कुं। मिथ्या दृष्टिगुणस्थानदोळु पर्याप्तापर्याप्त१५ षड्जीवनिकायमक्कं । सासादनगुणस्थानदोळु बादरपृथ्विअब्वनस्पत्यपर्याप्तकायिकंगळं द्वित्रिचतुः पंचेंद्रियासंज्ञि अपर्याप्तत्रसकायिकंगळ संज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तापर्याप्तत्रसकायिकंगळुमितु षड्जीव एकेन्द्रियादिजातिनामोदयजनितजीवपर्यायः इन्द्रियं तन्मार्गणाः एकेन्द्रियादयः पञ्च। ताः मिथ्यादष्टी पर्याप्तापर्याप्ताः पञ्च । सासादने अपर्याप्ताः पञ्च पर्याप्तपञ्चेन्द्रियश्च । मिश्रे पर्याप्तपञ्चेन्द्रिय एव । असंयते स उभयः । देशसंयते पर्याप्तः । प्रमत्ते पर्याप्तः । साहारकधिस्तुभयः । अप्रमत्तादिक्षीणकषायान्तेषु पर्याप्त एव । २० सयोगे पर्याप्तः । समुदघाते तुभयः । अयोगे पर्याप्त एव । पृथ्वीकायादिविशिष्टैकेन्द्रियजातिस्थावरनामोदयत्रसनामोदयजाः षड्जीवपर्यायाः कायाः। ते मिथ्यादृष्टी पर्याप्ता अपर्याप्ताश्च । सासादने बादरपृथ्व्यब्वनस्पतिस्थावरकायाः द्वित्रिचतुरिन्द्रियाऽसंज्ञित्रसकायाश्चा एकेन्द्रिय आदि जातिनामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुई जीवकी पर्याय इन्द्रिय है। उसकी मार्गणा एकेन्द्रिय आदि पाँच हैं। वे पाँचों मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें पर्याप्त-अपर्याप्त होते हैं। २५ सासादनमें अपर्याप्त तो पाँचों हैं,पर्याप्त एक पंचेन्द्रिय ही है। मिश्रमें पर्याप्त पंचेन्द्रिय ही है। असंयतमें पंचेन्द्रिय पर्याप्त-अपर्याप्त दोनों है। देशसंयतमें पर्याप्त है। प्रमत्तमें पर्याप्त है आहारक ऋद्धिवाला दोनों है। अप्रमत्तसे लेकर क्षीणकषाय पर्यन्त पर्याप्त ही है। सयोगकेवलीमें पर्याप्त है, किन्तु समुद्घातमें दोनों है। अयोगीमें पर्याप्त ही है। पृथ्वीकाय आदि विशिष्ट एकेन्द्रियादि जाति और स्थावर नामकर्म तथा त्रसनाम३० कर्मके उदयसे उत्पन्न हुई छह जीवपर्यायोंको काय कहते हैं। वे मिथ्यादृष्टिमें पर्याप्त और अपर्याप्त होते हैं । सासादनमें बादर, पृथिवी,जल और वनस्पति स्थावरकाय तथा दोइन्द्रिय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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