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________________ गो० जीवकाण्डे काम्मणकाययोगिगळ अनाहारकरपरिमाणमक्कुं । तद्राशिविरहितमप्प संसारिराशि आहारकर परिमाणमक्कुमवे ते दोडे काम्मँणकाययोगकालं समयत्रयमकुं । औदारिकमिश्र - कालमंत मुंहत्तंमकुं । तत्कायकालं संख्यातगुणमक्कुं । कूडि त्रिसमयाधिक संख्यातगुणितांतम्मुंहत्तंमक्कु ३ मिदु प्रक्षेपकयोगमक्कुमंतागुत्तं विरलु 'प्रक्षेपक योगोदधृत मिश्रपेड: २१४ ८९८ ३ ५ प्रक्षेपकाणां गुणको भवेत्सः । येबी सूत्राभिप्रायदिदं त्रैराशिकं माडपडुगुं । २१।५ । फ १३ - । इस ३ । लब्धमनाहारकर प्रमाणमक्कुं । १३ । ३ मत्तं प्र २१ । ५ । फ १३- । इ ३ ३ २१।५ १५ २ १ । ५ । लब्धमाहारकर प्रमाणमक्कुं १३ ।२१।५ वैक्रियिकाहारकंगळगं यथायोग्यमरि३ २३।५ पडुगुं । कार्मणका योगि जीवराशिः अनाहारकपरिमाणं भवति । तद्विरहितसंसारिराशिः आहारकपरिमाणं १० भवति । तद्यथा — योगकालः कार्मणस्य त्रिसमयाः । औदारिक मिश्रस्य अन्तर्मुहूर्तः । औदारिकस्य ततः संख्यातगुणः । मिलित्वा त्रिसमयाधिकसंख्यातगुणितान्तर्मुहूर्तः । ३- १- " प्रक्षेपयोगोद्धृतमिश्रपिण्डः प्रक्षेपकाणां २ ३ ४ 3 3 गुणको भवेदिति प्र २१५ । फ१३ - इ स ३ । लब्धमनाहारकजीवप्रमाणं १३ - ३ पुनः २ १ । ५ । ३२१।५ फ १३- । इ२१ । ५ । लब्धमाहारकजीवप्रमाणं ज्ञातव्यम् ||६७१ ॥ योगमार्गणा में कार्मणकाय योगियोंका जितना प्रमाण कहा है, उतना ही अनाहारकोंका प्रमाण है । संसारीराशिमें से अनाहारकोंका प्रमाण घटानेपर आहारकोंका परिमाण होता है । जो इस प्रकार है - कार्मणयोगका काल तीन समय है । औदारिक मिश्र काययोगका काल अन्तर्मुहूर्त है । औदारिक काययोगका काल उससे संख्यातगुणा है । सब मिलानेपर तीन समय अधिक संख्यात गुणित अन्तर्मुहूर्त काल होता है । करण सूत्र में कहा है- प्रक्षेपको २० मिलाकर मिले हुए पिण्डसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उसे प्रक्षेपकसे गुणा करनेपर अपनाअपना प्रमाण होता है । सो उक्त तीनों योगोंके कालोंको मिलानेपर तीन समय अधिक संख्यात अन्तर्मुहूर्त काल हुआ। इसका भाग कुछ हीन संसारीराशिमें देनेपर जो प्रमाण आवे, उसे तीन गुणा करनेपर अनाहारक जीवोंका प्रमाण होता है। शेष सब संसारी आहारक जीव हैं । वैक्रियिक और आहारकवालोंका यथायोग्य जानना । उनके अल्प होने से २५ यहां उनकी मुख्यता नहीं है ||६७१ || १३- । २१ । ५ वैक्रियिकाहारकयोर्यथायोग्यं ३२१।५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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